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दोहा-संग्रह
By Pallavi
1) रहीम के दोहे2) कबीर के दोहे 3) सूरदास के दोहे4) बिहारी के दोहे5 ) तुलसीदास के दोहे
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जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि! उपयुक्त पंक्तियों में रवि का तात्पर्य सूर्य से है, अर्थात जहां तक सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती, वहां तक एक कवि पहुंच जाता है। कवि की कल्पना शक्ति इतनी अद्भुत होती है कि वह जीवन के उन पहलुओं तक पहुंच जाता है, जहां मानव नहीं पहुंच पाता। अपनी इसी कल्पना शक्ति का प्रयोग करके वह मानव जीवन के गूढ़ रहस्य को भी बड़ी ही आसानी एवं सुंदरता से व्यक्त कर जाता है। ऐसे ही एक कवि की चर्चा आज हम करने जा रहे हैं। वह और कोई नहीं, बल्कि महान कवि...View more

कबीर दास या संत कबीर के दोहे आज भी सबकी ज़ुबाँ पर हैं। जीवन के हर पहलू पर दोहों, साखियों, शबद् के रूप में उनकी वाणी ने समाज को सही दिशा दी है। धर्मिर्पेक्षता की मिसाल बनाने वाले कबीर के दोहों से हम जीवन मूल्यों के अनमोल ख़ज़ाने तक पहुँच सकते हैं, और उनके दिखाये रास्ते पर अग्रसर हो कर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। आइये जानें कबीर दास के दोहों को, और समझें उनके अंदर छुपे गूढ़ रहस्यों को :1 ) अति का भला न बोलना, अति की भली न चुपअति का भला न बरसना, अति...View more

जब-जब रामायण की चर्चा होती है, तब तक मुख पर एक नाम स्वतः ही आ जाता है - और वह है गोस्वामी तुलसीदास जी का। श्री रामचरितमानस की रचना कर रामायण की पावन वाणी को जनसामान्य तक पहुंचाने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वह भारतीय साहित्य के महान साहित्यकार एवं एक श्रेष्ठ साधक थे। तुलसीदास भक्तिकाल के सबसे अधिक विख्यात कवि थे जिन्होंने रामचरितमानस के रूप में एक महान ग्रंथ की रचना की। वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित रामायण की तुलसीदास जी ने सरल एवं सहज भाषा में रचना की, जिसमें उन्होंने दोहे...View more

1) माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रोंदे मोय एक दिन ऐसा आएगा, मैं रो दूंगी तोय प्रस्तुत दोहे में कबीर ने बताया है कि समय सबसे अधिक बलवान होता है । समय के सामने बड़े से बड़े शूरवीर, राजा, बलवान व्यक्ति भी घुटने टेक देते हैं। समय में इतनी शक्ति होती है कि वह राजा को रंक और अमीर को शफीर बना देता है। समय की इसी शक्ति की व्याख्या करते हुए कबीर साहब ने इस दोहे में मिट्टी एवं कुम्हार के प्रसंग का उल्लेख किया है।मिट्टी, जिसे कबीर दास जी ने अवधी भाषा में माटी कहकर संबोधित किया...View more


कबीर के सबद् भी उतने ही सुंदर हैं, जितना कबीर का हृदय था। ये रचनाएँ हमें जीवन का वह ज्ञान प्रदान करती हैं, जो जान कर हम जीवन के यथार्थ से परिचित हो सकते हैं। आइये जानें कबीर द्वारा रचित इन दो सुंदर पदों को, जिनमें साहब ने ईश्वर को पाने, एवं ज्ञान के महत्व की व्याख्या की है। 1 ) संतौ भाई आई ग़्यांन की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी। हिति चित्त की द्वै थूंनी गिरानी, मोह बलिंडा टूटा। त्रिस्नां छांव परि घर ऊपरि, कुबुधि का भाण्डा फूटा। जोग जुगति करि संतौ बांधी,...View more

1 ) सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहिं, सम धीर धरहिं मन माहि। धीरज धरहूँ विवेक विचारि, छोड़ि सोंच सकल हितकारी।। प्रस्तुत दोहे के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने सुख एवं दुख को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में दर्शाया है, जिसमें व्यक्ति को समान आचरण करना चाहिए। गोस्वामी जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सुख के क्षणों में बहुत अधिक प्रसन्न हो जाता है, और दुख आने पर अत्यधिक दुखी हो जाता है, वह मनुष्य जड़ अर्थात मूर्ख है। इस प्रकार का आचरण रखने से व्यक्ति को कष्ट की प्राप्ति होती है एवं ऐसा व्यक्ति सही...View more

जीवन में गुरु के स्थान को ईश्वर से भी ऊंचा बताया गया है। क्योंकि गुरु ही वह व्यक्ति है जो ईश्वर से हमारा परिचय कराते हैं। आज की पीढ़ी गुरु के पद एवं उनकी महानता से अनभिज्ञ दिखाई पड़ती है। ऐसे में हमें आवश्यकता है एक ऐसे मार्गदर्शन की जो हमें सही मायनों में गुरु के व्यक्तित्व का परिचय दें। समस्त सांसारिक विधि विधानओं का बोध कराने वाले, विद्या प्रदान करने वाले, एवं मनुष्य को महान बनाने वाले गुरु के साथ कैसा आचरण हो, उनका आदर कैसे किया जाए, शिष्य के जीवन में गुरु का क्या महत्व है? यह सभी...View more

नमस्कार मित्रों ! आज हम बात कर रहे हैं रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक, महान कवि बिहारीलाल के बारे में। रीतिकाल की रचनाओं में बिहारी लाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनका पूरा नाम बिहारीलाल चौबे था। संत बिहारी का जन्म पिता केशव राय के घर ग्वालियर में हुआ था। उन्होंने अपना बाल्यकाल ग्वालियर में तथा युवावस्था मथुरा में बिताया। बिहारी राजा जयसिंह के राज्य कवि एवं शाहजहां के समकालीन थे। दोनों के रूप में बिहारी ने कई सुंदर रचनाएं की है जिन का संकलन "बिहारी सतसई" के रूप में है। यह उनकी प्रमुख रचना मानी जाती है...View more


मित्रों, हम मनुष्य अपने जीवन में कई लोगों से प्रेम करते हैं। माता-पिता, मित्र, जीवनसाथी, संतान, संबंधी, आस - पड़ोसी, प्रकृति, वस्तु, कई रूपों में प्रेम हमारे जीवन में उपस्थित है। मित्रों, प्रेम वह भावना है जो व्यक्ति को पवित्र, सुखी एवं संपूर्ण बनाती है। वह प्रेम ही है जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है, वह प्रेम ही है जिससे मानवता जैसे मूल्यों का जन्म हुआ है, वह प्रेम ही है, जो सभी संबंधों का आधार है। यदि यह भी कहा जाए कि इस संसार को चलाने वाली शक्ति प्रेम ही है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी प्रेम...View more

"मित्र", यह शब्द अपने आप में बहुत गहन अर्थ समेटे हुए हैं। मित्र का मतलब होता है, मीत, अर्थात साथी । साथी, सुख-दुख, अच्छे - बुरे, हर परिस्थिति का । मित्रों, माता-पिता एवं परिवार के बाद व्यक्ति के जीवन में मित्र का स्थान ही है, जो सबसे ऊंचा होता है।मित्र के गुणों के का बखान करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि मित्र के गुण अनंत एवं अतुलनीय हैं। मित्रता वह पवित्र बंधन है जो व्यक्ति को परम सुख का आनंद करवाती है। एक भला एवं सच्चा मित्र राह से भटके हुए, पथ भ्रष्ट व्यक्ति को भी अपनी अच्छाई से सुमार्ग पर...View more

मित्रों, आज हम आपके लिए संत रविदास जी के दोहे लेकर आए हैं। इन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक काल में समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे, जाति प्रथा, भेदभाव, सांप्रदायिकता इत्यादि के विरुद्ध आवाज उठाने वालों की चर्चा जब-जब की जाती है, तब-तब रैदास जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताते हुए भाईचारे की सीख देने वाले रविदास जी ने जीवन पर्यंत समाज की कुरीतियों को मिटाने एवं समाज के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने सबको सुमार्ग पर चलने की सीख दी एवं उन्होंने हर जाति...View more

आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस वह भावना है जिसमें मनुष्य अपने कर्मों को करने की अनिच्छा व्यक्त करता है। इस आलस्य के कारण हमने अपने जीवन में न जाने कितने ही दिन, कितने ही घंटे, और कितने ही क्षण व्यर्थ कर दिए हैं। मनुष्य को यह आभास भी नहीं होता की वह आलस में किस तरह लिप्त है।आलस्य केवल कामना करने की अनिच्छा नहीं है। आलस्य के प्रभाव में व्यक्ति ईश्वर का ध्यान करना भी भूल जाता है, अपने कर्म एवं दायित्व से मुंह मोड़ लेता है, अपने जीवन की सार्थकता को नष्ट कर देता है और...View more


संग अथवा संगति का अर्थ है, साथ। हम जिन व्यक्तियों के सानिध्य में रहते हैं, वह हमारी संगति कहलाती है। मित्रों, संगति का व्यक्ति के चरित्र पर बहुत बड़ा एवं महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।वह संगति ही है, जो आपके अवगुणों को गुणों में परिवर्तित कर सकती है। संगति द्वारा व्यक्ति में सद्गुणों तो आते हैं, किंतु वहीं यदि संगति अच्छी ना हो, तो व्यक्ति के अच्छे गुण भी नष्ट हो सकते हैं ।इसीलिए हम कैसे व्यक्तियों के सानिध्य में हैं, इस बात पर विचार करना अति आवश्यक है। बुरी संगति ना केवल हमारे चरित्र, स्वभाव एवं आचरण को खराब करती...View more

धैर्य, अर्थात धीरज , यह मनुष्य के 7 गुणों में से एक है। समय-समय पर ज्ञानी - महात्मा एवं महापुरुषों ने जीवन में धैर्य के महत्व पर प्रकाश डाला है, एवं मनुष्य को यह सीख दी है कि कार्य सिद्धि के लिए धैर्य अत्यंत आवश्यक है। जो व्यक्ति धीरज से काम नहीं लेता उसके कार्य अपूर्ण एवं त्रुटि पूर्ण होते हैं क्योंकि जल्दबाजी में किए गए काम से ना ही मन को संतुष्टि प्राप्त होती है, और ना ही मन शांत होता है। यदि आप भी जीवन में विवेक के महत्व को और गहराई से जानना चाहते हैं, तो आज...View more

नमस्कार मित्रों ! आज का यह लेख हर उस व्यक्ति के लिए है, जो अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है। मित्रों सफलता हर किसी को चाहिए । किंतु बहुत कम ही है जो उस सफलता को पाने के लिए प्रयास करते हैं।जिस गुण की सबसे अधिक कमी है, वह है श्रम। लोग परिश्रम नहीं करना चाहते । उन्हें सफलता तो चाहिए होती है, किंतु वह उसके लिए मेहनत करने से कतराते हैं। यदि आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो आपकी यह सोच बहुत गलत साबित होगी। क्योंकि बिना परिश्रम के सफलता के सपने पूरे नहीं हो सकते। इसी...View more

मित्रों, आज हम आपके लिए महान संत कवि कबीर द्वारा रचित ऐसे दोहे लेकर आए हैं, जिनमें उन्होंने मनुष्य के जीवन में गुरु के महत्व का बखान किया है। 15 वीं सदी के प्रमुख रहस्यवादी कवियों में से एक भगत कबीर जी ने अपनी रचनाओं द्वारा जीवन के हर पहलू को छुआ है। इसी प्रकार कवि ने व्यक्ति के जीवन में गुरु की भूमिका को बताते हुए भी ऐसी कई रचनाएं की हैं, जो हमें बहुत गहरी तस्वीर दिखाते हैं। यही नहीं, उन्होंने अपने दोहों में गुरु के स्थान को ईश्वर से भी ऊंचा बताया है, और कहा है कि...View more
“जल्दी जागना हमेशा ही फायदेमंद होता हैं, फिर चाहे वो “नींद” से हो, या “अहम्” से या फिर “वहम” से हो!”


वृंद शाही दरबारी कवि थे, जिनका नाम रीतिकाल के कवियों में प्रमुखता से लिया जाता है। इनका पूरा नाम वृंदावनदास था। जोधपुर में जन्मे महा कवि वृंद ने कई सुंदर रचनाएँ की हैं। मात्र दस वर्ष की आयु में इन्होंने गुरु तारा जी से शास्त्र, काव्य एवं दर्शन ज्ञान ग्रहण किया। अपना संपूर्ण जीवन काव्य को समर्पित करने के पश्चात 1723 इस्वी में कवि वर ने अंतिम स्वास ले कर देह त्याग किया।किंतु कवि महोदय की रचनाओं ने उन्होंने सदैव के लिए अमर बना दिया है। उन्होंने अपने काव्यों के माध्यम से न सिर्फ हिंदी साहित्य को बहुमुल्य भेंट दी...View more

पाठकों, आपने कई बार यह सुना होगा कि हमें अच्छा बोलना चाहिए। क्या आपने सोंचा है कि सभी मधुर वचन बोलने की सीख क्यों देते हैं? यदि आपने अभी तक इस पर विचार नहीं किया है, तो अब समय आ गया है कि आप इस पर चिंतन करें। मित्रों, वाणी के रूप में ईश्वर ने हमें एक अद्भुत शक्ति दी है, जिसमें असंभव को भी संभव करने की क्षमता है। वाणी की इस शक्ति से महापुरुष भली भाँति परिचित थे। इसलिए उन्होंने समय-समय पर अपने उपदेशों द्वारा मानव को मीठे वचन बोलने की शिक्षा दी है। आज हम दोहों के...View more

मित्रों, आज की चर्चा का विषय है चिंता। हर व्यक्ति किसी ना किसी कारणवश चिंतित रहता है। किसी को पैसों की, तो किसी को परिवार की, किसी को व्यवसाय, तो किसी को भविष्य से जुड़ी चिंताएं सताती रहती है। चिंता से ग्रसित मनुष्य हमेशा उदास और दुखी रहता है।किंतु हमें यह समझना होगा कि चिंता करना किसी भी समस्या का निवारण नहीं है। हमें यह भी जानना होगा कि चिंता हमारे लिए कितनी भयावह सिद्ध हो सकती है।इस स्थिति की गंभीरता को समझाने के लिए आज हम आपके समक्ष कविवर रहीम एवं कबीर दास जी द्वारा रचित कुछ ऐसे दोहे...View more

श्रेष्ठ व्यक्ति के गुणों में से एक है दानी होना। दूसरों की सहायता के लिए अपनी वस्तुओं का दान करना मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही दोहे लेकर आए हैं, जो दान, परमार्थ एवं परोपकार की बातें करते हैं। मित्रों, आज कल का जीवन बहुत अधिक व्यस्त एवं संकुचित होता जा रहा है, जहां व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचने लगा है। हम दूसरों की तकलीफों व आवश्यकताओं के बारे में अधिक विचार नहीं करते और केवल अपने हित की इच्छा ने हमें अंधा बना दिया...View more
“यदि आपने वास्तव में खुद से प्यार करना सिख लिया तो फिर यह संभव ही नहीं है की आपको ये दुनिया प्यारी ना लगे।”

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