समय का महत्व बताते अनमोल दोहे

समय का महत्व बताते अनमोल दोहे

  

मित्रों, यदि आप से यह सवाल किया जाए कि इस दुनिया में सबसे मूल्यवान वस्तु क्या है ? तो आपका उत्तर क्या होगा? किसी के अनुसार कोई बहुमूल्य रत्न ही इस संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु होगी, तो किसी के अनुसार धन व ऐश्वर्य।

किंतु सत्य तो यह है कि इस दुनिया में सबसे मूल्यवान समय है। धन संपदा चली जाने पर वापस हासिल की जा सकती है, किंतु यदि समय बीत गया, तो वह लौट कर कभी वापस नहीं आएगा।

जीवन में लक्ष्यों की प्राप्ति करने के लिए समय के महत्व को समझना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा एक बार समय हमारे हाथ से निकल गया तो हम जीवन भर हाथ मलते रह जाएंगे। इसी सीख को हम आपके लिए महापुरुषों द्वारा रचित दोहों के रूप में लेकर आए हैं, जो बताते हैं कि समय से बरा इस संसार में कुछ भी नहीं है। तो आइए जाने इन बेहतरीन दोहों को :

1 ) समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात।
सदा रहै नहीं एक सी, का रहीम पछतात।।

रहीम जी द्वारा रचित इस दोहे में समय के फेर की बात कही गई है। समय सदा गतिमान है और निरंतर बदलता रहता है। यह अपने साथ परिस्थितियों को भी बदल दिया करता है। दिन-रात, अमीरी - गरीबी, सुख-दुख, अच्छा - बुरा, यह सब समय के चक्र के हिस्से हैं। समय के साथ मनुष्य के जीवन में यह सब स्थितियां आती जाती रहती हैं। यह भी सत्य है कि समय से पहले कुछ भी नहीं होता।

इसी बात को समझाते हुए रहीम जी ने इस दोहे में समय की फेर को वृक्ष के प्रकरण से संबंधित करते हुए कहा है कि समय आने पर ही वृक्ष में फल लगते हैं, और एक निश्चित समय पर ही वह झर भी जाते हैं। एक समय में वृक्ष फलों से लदा, हरा - भरा रहता है, और दूसरे समय में ठूँठ हो जाता है। वृक्ष की यह दोनों दशाएं समय के साथ परिवर्तित होती रहती हैं एवं इन दोनों का आना - जाना निश्चित है।

यह सदा एक जैसा नहीं रहता। यही नियम मानव जीवन पर भी लागू होता है। वृक्ष के उदाहरण के माध्यम से रहीम जी ने मानव को यह संदेश दिया है कि हमारी अवस्था सदैव एक जैसी नहीं रहती। कभी सुख तो कभी दुख निश्चित है। इसीलिए दुख के समय क्यों पछताते हो ? समय बदलेगा ही। मुश्किल क्षणों में पछताना व्यर्थ है।

इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समय के बदलने पर हमें अपने भावों को नहीं बदलना चाहिए। सुख के क्षणों में अति अधिक सुखी हो जाना, और दुख के समय में अत्यधिक दुखी हो जाना अच्छा आचरण नहीं है। यदि मानव समय के इस फेर को स्वीकार कर ले तो वह सुख एवं दुख दोनों ही परिस्थितियों में एक समान रहेगा।

2 ) समय लाभ सम लाभ नहीं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।

रहीम जी द्वारा लिखे गए इस दोहे में समय की महत्ता का वर्णन किया गया है। कविवर कहते हैं कि समय का लाभ उठाने से अधिक बड़ा और कोई भी लाभ नहीं है, एवं समय के चूक जाने, अर्थात व्यर्थ हो जाने के समान दूसरी और कोई चूक नहीं है।

तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति समय का महत्व समझ कर प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है, वह अवश्य सफल होता है। संसार में किसी भी रत्न, जवाहरात इत्यादि से मूल्यवान समय ही है। जो इसका जितना अधिक उपयोग करता है, उसे उतना ही अधिक लाभ मिलता है।

ठीक इसी प्रकार समय की हानि सबसे बड़ी हानि है। व्यक्ति के पास धन, अथाह संपत्ति होते हुए भी यदि उसके पास समय न हो, तो यह सारी धन संपदा व्यर्थ हैं। जिसने समय गवा दिया, उसने सब कुछ गवा दिया। इसीलिए रहीम ने समय की चूक को सबसे बड़ी चूक कहा है। आगे कविवर कहते हैं कि जो व्यक्ति मूढ़ होते हैं, उन्हें समय के गुज़र जाने का आभास नहीं होता है किंतु जो समझदार होते हैं, उन्हें समय चूक जाने पर बहुत अफसोस होता है।

समय व्यर्थ हो जाने से समझदार व्यक्ति के ह्रदय में शूल की भांति पीड़ा उठती है। प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम ने इंगित किया है कि हमें उसी समझदार व्यक्ति की भांति बनना चाहिए जो समय नष्ट हो जाने पर शूल के समान पीड़ा अनुभव करता है। यदि हमने समय के महत्त्व को समझ लिया, तो हर असंभव कार्य को संभव करने की शक्ति पा सकते हैं।

3 ) बालपन भोले गया, और जुवा महमंत।
वृद्धपने आलस गयो, चला जरंते अंत।।

प्रस्तुत दोहा इस बात पर प्रकाश डालता है कि व्यक्ति जीवन को यूंही गवा देता है। जीवन के विभिन्न चरणों में अलग-अलग बंधन में बंधा रह जाता है और समय इसी प्रकार बीतता रहता है। अंततः व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम चरण पर पहुंच जाता है और जब पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है कि उसने सारा समय नष्ट कर दिया।

दोहे की पहली पंक्ति में कबीरदास जी कहते हैं कि बालपन अर्थात बचपन अबोधता में ही बीत गया। बाल्यावस्था में मानव भोला होता है । खेलकूद, आनंद - विनोद, लाड प्यार में ही उसका सारा समय बीत जाता है। युवा अवस्था में प्रवेश करने पर व्यक्ति महमंत यानी कि सांसारिक विषय की प्राप्ति में लग जाता है। परिवार, समाज इत्यादि के बीच ही जवानी भी बीत जाती है।

जब वृद्धावस्था आई तब युवावस्था में श्रम किया हुआ शरीर आलसी बन गया, और आराम में ही पूरा बुढ़ापा बीत गया । जब अंत समय आया तो शरीर चिता पर जलने के लिए तैयार हो गया। इस प्रकार मनुष्य का पूरा जीवन यूं ही बीत गया, और उसने कुछ भी सार्थक ना किया। जो बहुमूल्य समय उसे मिला, उसने वह सारा गवा दिया।

इस दोहे के माध्यम से कबीर ने सभी को चेताया है कि जीवन के विभिन्न चरण आते जाते रहेंगे। इन चरणों में जीवन व्यर्थ करना उचित नहीं है । अर्थात समय के मूल्य को समझें और जीवन के हर क्षण को कुछ सार्थक करने में लगाएं।

4 ) भीत गिरे पाखान की, अररानी वही ठाम।
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम।।

समय सबसे अधिक बलवान है। बरे-बरे सूरमा भी समय के समक्ष शक्तिहीन है। वह समय ही है, जो एक क्षण में राजा को रंक और अमीर को शफीर बना सकता है। समय कब किसके साथ क्या करे, कोई नहीं जानता ।

यही समझाते हुए कविवर रहीम जी ने कहा है कि किले की एक दीवार ढह गई है। अब उस दीवार को पुनः उसी ठाम, अर्थात उसी स्थान पर बनाना होगा। अब यह नहीं पता कि कौन सा पत्थर किस स्थान पर लगेगा। संभव है कि पहले जो पत्थर नींव में लगा था, अब वह शिखर पर लगा दिया जाए, और शिखर का पत्थर नींव में लगा दिया जाए।

प्रस्तुत दोहे में दीवार का उदाहरण देते हुए कवि ने मनुष्य को समय के सामर्थ्य से परिचित करवाया है। यह कोई नहीं जानता कि समय बदलने पर किसकी क्या दशा होगी। समय बदल जाने पर राजा भी फकीर बन जाता है, और एक फ़कीर भी अमीर बन जाता है। सब समय का खेल है। अतः हमें कभी भी अपनी स्थिति पर अभिमान नहीं करना चाहिए।

5 ) रहिमन कुटिल कुठार ज्यों, करि डारत द्वै टूक।
चतुरन को कसकत रहे, समय चूक की हूक ।।

समय तो गतिमान है, वह किसी के लिए नहीं रूकता। कोई इस समय को नष्ट कर देता है, तो कोई इसका सदुपयोग करता है। समय की ना कोई आवाज है, और ना ही वह दिखाई देता है। इसीलिए जब समय बीत जाता है तो व्यक्ति को आभास भी नहीं होता। किंतु रहीम कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को समय की भी ध्वनि पता चलती है।

आइए जानते हैं कैसे ?

प्रस्तुत दोहे में कविवर कहते हैं कि जिस प्रकार कुटिल अर्थात कठोर कुल्हाड़ी एक ही वार से लकड़ी को दो टुकड़ों में विभाजित कर देती है, ठीक उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति का समय नष्ट हो जाने पर उसे समय की चूक शूल के समान चुभती रहती है। तात्पर्य यह है कि बुद्धिजीवी यह जानते हैं कि समय ही सबसे बहुमूल्य वस्तु है। अतः इस के नष्ट हो जाने से उन्हें पीड़ा पहुंचती है।

निष्कर्ष :

ऊपर जितने भी दोहे आपने पढ़ें, उन सभी का सार यही है कि समय सबसे मूल्यवान है। महापुरुषों ने अनेक उदाहरण देकर समय को ना नष्ट करने की सीख दी है। मित्रों, जो समय का सदुपयोग करता है वही सफल होता है । जो समय नष्ट करते हैं, समय उन्हें ही नष्ट कर देता है । अतः अभी भी समय शेष है, अपनी चेतना को जगाएं। और ईश्वर द्वारा दिए गए बहुमूल्य समय को सदुपयोग में लगाइए, ताकि आप अपने जीवन में निर्धारित किए गए लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकें। अन्यथा पछताने के सिवा हाथों में कुछ भी नहीं बचेगा।


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