रीति नीति का ज्ञान देते श्लोक

रीति नीति का ज्ञान देते श्लोक

  

नमस्कार मित्रों! आप तो यह जानते ही हैं कि समय-समय पर दुनिया के हर कोने में रचनाकार विभिन्न रचनाएं करते रहते हैं, जिससे मानव जाति को मानव धर्म का पालन करने का ज्ञान मिलता है ।

साहित्य की बात करें, तो हमारा साहित्य बहुत विस्तृत एवं बहुत विविध है। साहित्य के इसी अथाह खजाने में से हम आज आपके लिए कुछ ऐसे चुनिंदा श्लोक लेकर आए हैं, जो कि हमें रीति एवं नीति का ज्ञान देते हैं।

इन श्लोकों में यह बताया गया है कि मनुष्य को कैसा आचरण करना चाहिए। तो आइए इन श्लोकों को पढ़ें और जीवन की अमूल्य सीख प्राप्त करें :

1 ) कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति ।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम् ।।


प्रस्तुत श्लोक में मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है। कार्यार्थी, अर्थात कार्य के अर्थी, जिन्हें-जिन्हें कोई काम करवाना होता है, ऐसे व्यक्ति तब तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं जब तक उनके कार्य की सिद्धि नहीं हो जाती है।

अर्थात, जब तक काम हो , तब तक ऐसे व्यक्ति मधु भाषी बन कर दूसरों की प्रशंसा करते हैं। किंतु काम पूरा हो जाने के बाद वह उन लोगों को भूल जाते हैं। इसका उदाहरण देने के लिए नाव का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि नदी पार करने के बाद नौका का भला क्या प्रयोजन ? क्या काम ?

नौका का महत्व तब तक ही होता है जब तक नदी पार ना हो जाए। उसके बाद उसका कोई उपयोग नहीं रह जाता। ठीक इसी प्रकार कार्य सिद्ध हो जाने के बाद लोग दूसरों को भूल जाते हैं।

प्रस्तुत श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि लोग अपने स्वार्थ एवं कार्य की सिद्धि हेतु ही दूसरों से मधुर संबंध स्थापित करते हैं। अतः मधुर वाणी सुनकर हमें अपेक्षाएं नहीं बना लेनी चाहिए।

2 ) श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन।।


प्रस्तुत श्लोक में यह संदेश प्रतिपादित किया गया है कि मनुष्य के शरीर को सुशोभित करने वाले आभूषण नहीं, बल्कि उसके आचरण होते हैं। यही बताते हुए श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि कानों की शोभा कुंडेलो से नहीं होती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है।

हाथों की शोभा दान करने से होती है, न कि कंगन धारण कर लेने से। इसी प्रकार दयालु एवं सज्जन व्यक्ति के शरीर की शोभा चंदन लगाने से नहीं होती, बल्कि उनका शरीर परोपकार अर्थात दूसरों का हित करने से सुशोभित होता है।

प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बाहरी आवरण को सुशोभित करने से अधिक अपनी अंतरात्मा को सुशोभित करने पर ध्यान देना चाहिए। अतः हमारा ध्यान हमारे गुणों के विकास पर होना चाहिए।

3 ) अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ।।

प्रस्तुत श्लोक में 3 कोटी के व्यक्तियों की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है। इस श्लोक के माध्यम से यह समझाया गया है कि जीवन में धन से अधिक महत्वपूर्ण सम्मान है।

श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि अधम, अर्थात निम्न कोटि के व्यक्ति केवल धन प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। उन्हें धन के अलावा सम्मान या किसी और चीज़ की चाह नहीं होती है। वहीं मध्यम कोटि का व्यक्ति धन तो चाहता ही है, किंतु वह उसके साथ-साथ सम्मान भी पाना चाहता है। अर्थात उसे धन और सम्मान दोनों की इच्छा होती है।
वहीं उत्तम व्यक्ति, उच्च कोटि का व्यक्ति केवल मान अर्थात आदर एवं सम्मान की इच्छा रखता है। उसे धन प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती है। उसके लिए सम्मान पाना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तम व्यक्ति के लिए सम्मान ही धन के समान है।

प्रस्तुत श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धन का स्थान सम्मान से बढ़कर नहीं है। हमें मान सम्मान एवं आदर प्राप्ति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यही सबसे बड़ा धन नहीं है।

4 ) अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम
पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।


प्रस्तुत दोहे में दान की चर्चा की गई है। मानव धर्म के सबसे बड़े कर्तव्य में से एक दान को बताया गया है। दानी व्यक्ति निश्चय ही उत्तम कोटि का होता है। किंतु दान सदैव सच्चे मन एवं शुद्ध भावना से किया जाना चाहिए। तभी इसका फल प्राप्त होता है।

यही संदेश प्रतिपादित करते हुए श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि यदि दान अपमान करके दिया जाए, विलंब अर्थात देर से दिया जाए, मुँह फेर कर, अर्थात, बिना इच्छा के दिया जाए, निष्ठुर एवं कठोर वचन बोल कर दिया जाए और इस प्रकार देने के बाद पश्चाताप किया जाए तो दान सफल नहीं होता है।

यह पांच ऐसी क्रियाएं हैं, जो दान को दूषित करती हैं। प्रस्तुत श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव शुद्ध भावना के साथ किसी वस्तु का दान करना चाहिए। तभी दान का फल हमें प्राप्त होगा।

निष्कर्ष :
तो देखा आपने मित्रों, यहां कुछ ऐसे श्लोक थे, जो हमें रीति थी एवं नीति का ज्ञान देते हैं। इन श्लोकों के माध्यम से हमें सही आचरण करने, गलत मार्ग पर ना चलने और सुमार्ग पर चलने की सीख मिलती है।
महान रचनाकारों द्वारा श्लोकों के निर्माण का उद्देश्य यही है कि मानव इसे पढ़कर और समझ कर अपने जीवन को सही दशा एवं दिशा दे सके। ताकि हम सभी का जीवन सार्थक हो।

इन श्लोकों के ज्ञान से ना सिर्फ हम अपना कल्याण कर सकते हैं अपितु पूरी मानव जाति का कल्याण कर सकते हैं। अतः इन श्लोकों से मिली शिक्षा को आत्मसात कर ले एवं जीवन भर इनका पालन करें।


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