व्यवहार की शिक्षा देते बहुमुल्य दोहे

व्यवहार की शिक्षा देते बहुमुल्य दोहे

  

मित्रों, हमें बचपन से अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा दी जाती है। माता पिता, गुरु जन, एवं बड़े हमारी भाषा, आचरण, वेश भूषा, आदतों, विचार, शारीरिक हावभाव इत्यादि को लेकर सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि बाल्यकाल में मनुष्य का व्यवहार ही उसके चरित्र का निर्माण करता है और आगे जाकर यही व्यवहार उसके चरित्र का आईना बन जाता है।

व्यवहार का तात्पर्य केवल बोलचाल के तरीके या रोज़ मर्रा की आदतों से ही नहीं है। मित्रों, व्यवहार शब्द का अर्थ बहुत ही व्यापक एवं विस्तृत है। आइए इसे समझने का प्रयास करें। मनुष्य जो नियमित रूप से प्रतिदिन करता है, वह उसकी आदत बन जाती है। लंबे समय तक रह जाने वाली आदतें ही धीरे-धीरे उसका व्यवहार बन जाती हैं।

मनुष्य का व्यवहार जिस प्रकार का होता है, धीरे-धीरे उसके विचार एवं मानसिकता भी उसी प्रकार की बन जाती है। मनुष्य की मानसिकता की भूमिका ऐसी है कि इसी के अनुसार मनुष्य अपने जीवन के निर्णय लेता है। जैसी मानसिकता, वैसे ही निर्णय। अर्थात यदि मानसिकता सही एवं उत्पादक हुई, तो मनुष्य अपने जीवन के निर्णय बहुत ही सोच समझ कर लेता है, जिसके परिणाम अच्छे आते हैं।

किंतु यदि व्यक्ति चीजों को भली प्रकार से समझ नहीं पाता, एवं उसकी मानसिकता विकसित नहीं है, तो वह जीवन के निर्णय लेने में चूक जाता है। परिणाम स्वरूप अक्सर उसे पछताना पड़ता है।

तो देखा आप सबों ने, मनुष्य का व्यवहार ही है जो उसके जीवन का आधार बनता है। हम व्यक्तिगत रूप से कैसे हैं, जीवन में हमें सफलता मिली या नहीं, हमारा भावनात्मक पहलू कैसा है, हम संबंधों को किस प्रकार निभाते हैं, हमारे आध्यात्मिक विचार क्या हैं, यह सब हमारे व्यवहार पर ही निर्भर करते हैं। इसी कारण से मनुष्य को सदैव ही अपने व्यवहार का बहुत ही बारीकी से परीक्षण करते रहना चाहिए, ताकि वह खुद को सही रास्ते पर बनाए रख सके।

अब आप सबों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि स्वयं अपने व्यवहार की जाँच कैसे की जाए?

तो मित्रों, आत्म अवलोकन इसका सबसे अच्छा तरीका है। किंतु जीवन में कई ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब व्यक्ति अपने प्रश्नों का उत्तर स्वयं नहीं ढूंढ पाता। ऐसी स्थिति में उसे एक सहायक की आवश्यकता पड़ती है। यह सहायक आपके मित्र, माता-पिता, संबंधी आदि कोई भी हो सकते हैं। किंतु इसके साथ ही आप के पास एक बहुत बड़ा सहायक है, और वह है साहित्य।

इतिहास में कई ऐसे महान लेखक एवं कवि हुए हैं, जिन्होंने जीवन के हर पहलू पर उत्कृष्ट रचनाएं कर मानव का मार्गदर्शन किया है। इन रचनाओं को पढ़कर हमें बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता है। ऐसे ही जानकारी हासिल करने का मौका हम आज आपके लिए लेकर आए हैं।

आज हम कुछ ऐसे दोहे लेकर आए हैं, जिसमें कवि रहीम ने सोच समझकर व्यवहार करने शिक्षा दी है। उन्होंने बताया है कि जीवन की भिन्न - भिन्न परिस्तिथियों में मनुष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिए।

इन दोहों में कवि रहीम ने अपने हितैषियों की जांच - परख करने की सलाह दी है, वाणी पर नियंत्रण लगाने को कहा है, कर्मों में श्रेष्ठता रखने की शिक्षा दी है एवं शारीरिक रूप से मजबूत रहने को कहा है। साथ ही उन्होंने धैर्यवान बनने की ओर इंगित किया है एवं सदैव सत्य के मार्ग पर चलने का भी परामर्श दिया है। तो आइये इन सभी दोहों को विस्तार से जानें :

1 ) रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

लोग विपत्ति के नाम से ही डर जाया करते हैं। क्योंकि हमने यही अनुभव किया है कि विपत्ति का समय दुख, पीड़ा, अभाव एवं कष्ट लेकर आता है। किंतु प्रस्तुत दोहे में रहीम ने विपत्ति के सकारात्मक पहलू का वर्णन किया है। आइए जानें रहीम जी ने विपत्ति को अच्छा क्यों कहा है ।

कवि रहीम कहते हैं कि यदि कुछ समय के लिए विपत्ति आ जाए तो वह भी अच्छी है। अर्थात विपत्ति पड़ने पर दुखी नहीं होना चाहिए। विपत्ति के बादलों का छंटना निश्चित है।

साथ ही विपत्ति के समय ही मनुष्य जान पाता है कि इस संसार में कौन उसके लिए हितकारी है और कौन नहीं। अर्थात, हितैषियों की पहचान विपत्ति के समय ही होती है। जो इस परिस्थिति में साथ निभाता है, वही सबसे बड़ा मित्र है। बाकी सभी केवल स्वार्थ के लिए आप से जुड़े हैं।

सुख के क्षणों में अपने हितेशी की जांच करना बहुत कठिन है क्योंकि सभी संबंधी, यार, मित्र आदि प्रेम की बात करते हैं, कसमे - वादे खाते हैं और कई तरह के दावे करते हैं।

किंतु दुख आने पर ही स्पष्ट हो पाता है कि किस के वादे सच्चे हैं और किसकी मनषा विशुद्ध है। अक्सर विपत्ति के समय सभी साथ छोड़ देते हैं। ऐसे में जो आपके दुख को बांटे वही सच में आपसे प्रेम करता है। अतः विपत्ति को अवसर समझें।

2 ) बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।।

प्रस्तुत दोहे में कविवर रहीम ने वाणी पर नियंत्रण एवं अंकुश लगाने की ओर इंगित किया है। कई ऐसी स्थितियां आती हैं जब मनुष्य आवेग में आकर बहुत कुछ कह जाता है।

कई बार हमारे मुंह से ऐसे शब्द निकल जाते हैं, जो जीवन पर्यंत सामने वाले को घाव की तरह पीड़ा पहुंचाते हैं। मुंह से एक बार शब्द निकल गए, तो वह वापस नहीं किए जा सकते हैं। अतः अपने हर व्यवहार का परिणाम सोच - समझकर ही हमें आचरण करना चाहिए।

दोहे की प्रथम पंक्ति में कविवर कहते हैं कि बात यदि एक बार बिगड़ जाए, तो वह बिगड़ी ही रह जाती है। फिर चाहे कोई लाखों बार प्रयास क्यों न करें, किंतु बिगड़ चुकी बात को सही करना असंभव हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे एक बार दूध फट जाने पर उसे कितना भी मथा जाए, किंतु वह माखन नहीं बनता। उसी प्रकार बिगड़ी बात को बनाने के सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।

इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारा आचरण ऐसा होना ही नहीं चाहिए जिससे बात बिगड़ जाए। मनुष्य को बहुत सोच-विचार कर बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए; नहीं तो उसे बहुत पछताना पड़ता है।

3 ) बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरीधर कहे न कोय।।

सम्मानित व्यक्ति से हमेशा बड़प्पन वाले काम की अपेक्षा की जाती है। उनके द्वारा किए गए कर्म उनके पद एवं प्रतिष्ठा को शोभा देने वाले होने चाहिए, तभी वह बड़े कहलाते हैं। प्रस्तुत दोहे में कवि ने यही संदेश दिया है।

दोहे की पहली पंक्ति का आशय है कि बड़े लोग, अर्थात सम्माननीय, प्रतिष्ठित लोग यदि ओछे, यानी कि छोटे काम करें तो उनकी बड़ाई नहीं की जाती है। छोटे काम का तात्पर्य है - ऐसे कार्य जो उनके पद, प्रतिष्ठा के अनुरूप ना हो।

कवि रहीम ने उदाहरण देते हुए कहा है कि संजीवनी बूटी लाने हेतु हनुमान जी द्वारा धौलागिरी पर्वत को उठा लेने पर भी हनुमान जी को गिरिधर (पर्वत धारण करने वाला) की उपाधि नहीं दी गई। जबकि भगवान श्री कृष्ण जी ने जब गोवर्धन पर्वत उठाया, तो उन्हें गिरिधर कहा गया। दोनों ने ही पर्वत धारण किया, किंतु गिरिधर की उपाधि केवल एक को ही दी गई।

ऐसा इसीलिए क्योंकि दोनों कार्यों के ध्येय अलग-अलग थे। हनुमान जी ने पर्वत उठाकर पर्वतराज को क्षति पहुंचाई, किंतु कृष्ण जी ने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी उंगली पर पर्वत को उठाया था। इसीलिए हनुमान जी को गिरधर नहीं कहा जाता है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे कर्म सदैव ऊंचे होने चाहिए।

4 ) जब लगि विपुन न आपनु, तब लगि मित्त न कोय।
रहिमन अंबुज अंबु बिन, रवि कर रिपु होय।।

कवि ने इस दोहे के माध्यम से संसार के स्वभाव का वर्णन किया है और यह दर्शाया है कि यह संसार धन की चकाचौंध में कितना अंधा हो गया है। जिसके पास धन है वही श्रेष्ठ कहलाता है परंतु गुणवान होते हुए भी दीन व्यक्ति को आदर नहीं मिलता।

प्रथम पंक्ति में कवि कहते हैं कि जब तक आपके पास वित्त, अर्थात धन ना हो तब तक आपका कोई मित्र नहीं होता। किंतु जैसे ही आप धनवान बन जाते हैं सब व्यक्ति आपके मित्र बन जाते हैं। अर्थात मित्रता का पैमाना धन है, व्यक्ति के गुण अथवा चरित्र नहीं।

इसके लिए कवि ने कमल का उदाहरण दिया है और कहा है कि सूरज की रौशनी पाकर कमल खिलता है, किंतु जब जलाशय में पानी कम हो जाए, तो उसी सूरज की रोशनी कमल को सुखा देती है।

जिस प्रकार कमल के पास जल होने से सूर्य मित्र की भांति कमल का हित करता है एवं जल के कम हो जाने पर वही उसका शत्रु बन जाता है। ठीक उसी प्रकार धन के रहने पर सभी मित्र बन जाते हैं और धन ना हो तो मित्र भी शत्रु बन जाता है।

5 ) रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।
सैंजन अति फुलै तरु, डार पात की हानि।।

हम कई ऐसे लोगों से दो-चार होते हैं, जो हर परिस्थिति में बहुत अधिक उत्साहित रहते हैं। दूसरी भाषा में कहें तो वह हद ही पार कर देते हैं। जैसे कुछ लोग बहुत अधिक बोलते हैं, तो कुछ बहुत अधिक ही क्रोध करते हैं, कुछ अधिक ही चुप रहते हैं, तो कोई अत्यधिक कामचोर होता है।

इन गुणों की अति होने के कारण कोई निंदा का पात्र बनता है, कोई संबंधों से हाथ धो बैठता है, तो किसी को कष्ट उठाने पड़ते हैं। अतः व्यवहार एवं गुणों का संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है। प्रस्तुत दोहे का सार यही है।

कवि कहते हैं कि किसी भी चीज़ की, चाहे वह कोई कार्य हो, या व्यवहार हो, उसकी अति करना उचित नहीं है। आपको अपनी सीमा में ही रहना चाहिए। हद पार कर देने के दुष्परिणाम होते हैं।

कवि ने इसकी तुलना सहजन के वृक्ष से करते हुए कहा है कि जब सहजन के वृक्ष में अत्यधिक मात्रा में फल लग जाते हैं तो फलों के वजन के कारण डाली एवं पत्तियों की हानि होती है और उनके टूटने का डर रहता है।

प्रस्तुत दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अपने गुणों का आवश्यकता से अधिक प्रदर्शन करना अच्छी बात नहीं है। इससे ना तो आपकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, और ना ही जीवन में कुछ अच्छा होता है बल्कि इसके विपरीत कुछ अनिष्ट होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। अतः संयमी एवं धैर्यवान बने।

6 ) जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

प्रस्तुत दोहे में कवि ने हम तक यह संदेश पहुंचाया है कि मानव को शारीरिक रूप से हर परिस्थिति का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। कवि कहते हैं कि इस देह पर जो भी बीते, वह इसे सहन करना चाहिए। शरीर में हर परिस्थिति को सहने की सहज क्षमता होनी चाहिए।

जिस प्रकार धरती पर शीत, अर्थात ठंड, घाम अर्थात धूप, मेह अर्थात वर्षा पड़ती है एवं धरती इन तीनों स्थितियों को सहज भाव से सहन कर लेती है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर को भी दुख - सुख एवं कष्ट सहन करना चाहिए।

प्रस्तुत दोहे में कवि ने हमें सहिष्णुता की सीख दी है। सहिष्णुता धरती का स्वाभाविक गुण है, जिसका हम सभी मनुष्यों को अनुसरण करना चाहिए। जब हम धरती के इस गुण को पूरी तरह खुद में विद्यमान कर लेंगे, तब हम हर परिस्थिति में एक समान रहेंगे।

7 ) अब रहीम मुसकिल परी, गाढे दोउ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम।।

संसार की स्थिति कुछ ऐसी है कि यह भौतिकता में इतना खो गया है कि इसे सत्य, भक्ति, रीति - नीति कुछ भी दिखाई नहीं देती। संसार के इसी चरित्र ने ईश्वर की भक्ति के मार्ग को कितना कठिन बना दिया है, कवि इस पर प्रकाश डालते हैं।

दोहे की प्रथम पंक्ति में कवि रहीम ने कहा है कि अब रहीम बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। रहीम को दो कार्य करने हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण एवं कठिन है। किंतु रहीम इन दोनों कार्यों को एक साथ कैसे सिद्ध करें, वह इसी मुश्किल में पड़े हैं। सच्चाई का पालन करके इस दुनिया में काम चलाना बहुत मुश्किल है।

क्योंकि सच बोलने से दुनियादारी नहीं निभती और ना ही लोग खुश होते हैं। दुनिया तो झूठ बोलने वाले को ही पसंद करती है। और यदि इस दुनिया के खातिर झूठा बना जाए, तो राम, अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी।

सच के मार्ग पर प्रभु मिलेंगे किंतु दुनिया रूठ जाएगी, और झूठ से दुनिया तो मिल जाएगी किंतु प्रभु खो जाएंगे। अब रहीम किसे चुनें ? इस दोहे के माध्यम से कवि ने संसार के चरित्र पर करारा व्यंग्य किया है। पूरी दुनिया झूठ के मार्ग पर चल पड़ी है और ईश्वर से दूर हो गई है। अतः हमें चाहिए कि हम इस झूठ के मार्ग को तुरंत त्याग दें एवं सत्य का रास्ता चुनें।

8 ) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारी ।।

मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि बड़ी वस्तु के मिल जाते ही वह छोटी वस्तु को व्यर्थ समझने लगता है। इसी प्रकार बड़े व्यक्ति अनुभवी, ज्ञानी एवं महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनकी तुलना में छोटों का महत्व कम कर दिया जाता है। प्रस्तुत दोहे में रहीम ने इसी की व्याख्या की है।

दोहे की पहली पंक्ति में कवि कहते हैं कि बड़ी चीज को देखकर छोटी वस्तु को छोड़ नहीं देना चाहिए। आवश्यक नहीं कि केवल बड़ी वस्तु ही उपयोगी है। छोटी वस्तु को व्यर्थ समझना भूल है।

उदाहरण देते हुए रहीम कहते हैं कि जिस जगह, जिस कार्य में सुई का काम हो, वहां तलवार क्या करेगी ? तलवार वह काम नहीं कर सकती जो सुई कर सकती है। अतः तलवार के मिल जाने पर सुई को फेंक देना मूर्खता है।

इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हर वस्तु का अपना महत्व है एवं अपना स्थान होता है, जिसे कोई और प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। बड़ों की तुलना में छोटों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

9) जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन का मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छांड़ति छोह।।

इस दोहे में कवि ने अनन्य प्रेम की व्याख्या की है। वास्तव में प्रेम तो वही होता है जो हर परिस्थिति में एक समान हो। विपदा आने पर भी प्रेमी का प्रेम नहीं बदलता। प्रेम की रीत ऐसी अनोखी है कि व्यक्ति अपने प्रेमी से एक क्षण का भी वियोग नहीं सह पाता है। किंतु जो विपत्ति पड़ने पर अपने प्रेमी को छोड़ दे, ऐसा प्रेम वास्तव में प्रेम नहीं, बल्कि केवल छलावा है।

दोहे में कविवर ने मछली एवं जल के बीच प्रेम संबंध की परिकल्पना करते हुए मछली के अद्भुत प्रेम का चित्रण किया है। वह कहते हैं कि जैसे ही मछली जाल में फंसती है और जाल को ऊपर उठाया जाता है, तब जल मछली का मोह त्याग कर सहजता से उसे छोड़कर जाल से बाहर बह जाता है।

अर्थात वह अपने प्रेमी का साथ छोड़ देता है। किंतु मछली का प्रेम इतना गाढा है कि वह जल की इस निष्ठुरता एवं उसके द्वारा किए गए विश्वासघात के बावजूद भी उसका मोह नहीं छोड़ पाती। मछलियों का प्रेम जल के प्रति इतना प्रबल है कि जल से वियोग हो जाने पर वह अपने प्राण त्याग देती हैं। इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम परिस्थितियों एवं समय के अनुसार नहीं बदलता है। प्रेम का निर्वाह अंतिम सांस तक किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष :

तो यह थे कवि रहीम के बेहतरीन दोहे। आशा है आप सभी पाठकों को इन दोहों से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। जीवन में जब भी विकट परिस्तिथियां आयें, इन दोहों को याद कर अपने निर्णय लीजिएगा।


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