क्रोध पर शिक्षाप्रद श्लोक

क्रोध पर शिक्षाप्रद श्लोक

  

नमस्कार पाठकों! आज हम क्रोध पर चर्चा कर रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि क्रोध एक ऐसा भाव है, जिसमें व्यक्ति के सोचने एवं विचार करने की शक्ति क्षीण हो जाती है एवं वह इस वेग में कई अनुचित कार्य कर जाता है।

क्रोध में आने पर मनुष्य सामान्य स्थिति में नहीं रहता और इसी कारण वह बहुत कुछ ऐसा बोल अथवा कर देता है जो उसे नहीं करना चाहिए। क्रोध के कारण हमारी मानसिक शांति तो भंग होती ही है, साथ ही हमारे संबंधों के ऊपर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

ऐसा नहीं है कि क्रोध के इन दुष्प्रभावों के बारे में हम नहीं जानते। हमारे लिए क्रोध अति हानिकारक है। यह बात सभी जानते हैं किंतु क्रोध पर नियंत्रण कर पाना असंभव लगता है। कई व्यक्ति तनावपूर्ण स्थितियों में स्वयं को शांत रखना चाहते हैं किन्तु वह उत्तेजित होकर अपना आपा खो देते हैं। क्रोध के प्रभाव में आते ही हम नैतिक - अनैतिक, उचित - अनुचित, अच्छे - बुरे, सब का भेद भूल जाते हैं।

यदि आप भी अपने अनियंत्रित क्रोध से परेशान हैं और इसे वश में करना चाहते हैं तो आज का यह लेख निश्चय ही आपके लिए है। आज हम संस्कृत भाषा में लिखे गए कुछ अत्यंत ज्ञान प्रद श्लोकों को लेकर आए हैं जो यह बताते हैं कि क्रोध मनुष्य के लिए किस प्रकार विनाशकारी साबित होता है।

तो आइए बिना देर किए इन श्लोकों को पढ़े और इनसे क्रोध ना करने की शिक्षा लें।

1) क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

प्रस्तुत श्लोक में यह संदेश प्रतिपादित किया गया है कि क्रोध का मार्ग पतन का मार्ग है। क्रोध करने वाला व्यक्ति सामने वाले से अधिक खुद को क्षति पहुंचाता है। यह मनुष्य के लिए विनाशकारी है। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि क्रोध के वेग के कारण मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अर्थात उसमें मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है। इस मूढ़ भाव के कारण उसकी स्मृति भ्रांत हो जाती है, अर्थात भ्रमित हो जाती है।

स्मृति के भ्रमित हो जाने के कारण मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य स्वयं का विनाश कर बैठता है। वह अपनी स्थिति, मान सम्मान, पद, गौरव, प्रतिष्ठा आदि सब से गिर जाता है।

अर्थात क्रोध ही मनुष्य के नाश का कारण बनती है। प्रस्तुत श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि क्रोध का परिणाम केवल अशांति अथवा कलह ही नहीं है, अपितु क्रोध का परिणाम मनुष्य का संपूर्ण पतन है। इस श्लोक ने हमे क्रोध न करने एवं इस के दुष्प्रभावों को समझने की शिक्षा दी है। अतः क्रोध पर नियंत्रण स्थापित करना चाहिए।

2) त्रिविधम् नरकस्येदं द्वारं नाशनाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।

प्रस्तुत श्लोक में मनुष्य में विद्यमान ऐसे तीन दोषों की चर्चा की गई है, जो उसे विनाश के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि नरक के तीन द्वार हैं, अर्थात तीन ऐसे दोष हैं, जो मनुष्य का नाश करके उन्हे नरक में ले जाते हैं, अर्थात अधोगति में ले जाते हैं।

वह 3 गुण हैं - काम, क्रोध, और लोभ। अतः इन तीन गुणों का त्याग कर देना चाहिए। प्रस्तुत श्लोक में काम, क्रोध और लोभ को नर्क के समान इसीलिए बताया गया है क्योंकि यह 3 गुण मनुष्य के लिए विनाशकारी सिद्ध होते हैं।

काम में पड़ कर मनुष्य सही एवं गलत का भेद भूल जाता है और अनुचित मार्ग पर चलने लग जाता है। क्रोध के प्रभाव में आकर मनुष्य अपनी बुद्धि का नाश कर बैठता है एवं नैतिकता एवं अनैतिकता भूल जाता है। इसी प्रकार लोभ के प्रभाव में आकर मनुष्य संतोष जैसे गुणों को भूल जाता है एवं अशिष्ट आचरण करने लग जाता है।

इन तीन दोषों के कारण मनुष्य के अन्य गुणों का ह्वास होता है एवं उसे पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है। यही कारण है कि काम, क्रोध एवं लोभ को नर्क बताया गया है। अतः हमें चाहिए कि हम इन तीन दोषों का अवश्यंभावी रूप से त्याग करें।

3) क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥

प्रस्तुत श्लोक में यह बताया गया है कि मनुष्य पर पड़ रही सभी विपत्तियों का कारण उसके द्वारा किया गया क्रोध है। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि क्रोध सभी अनर्थकारी स्थितियों, अर्थात समस्त विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध ही संसार का बंधन है । क्रोध ही है जो धर्म का क्षय करता है, अर्थात धर्म का नाश करता है। इसीलिए इस क्रोध को वर्जित करें, इस का त्याग करें।

4 ) आकृष्टस्ताडितः क्रुद्धः क्षमते यो बलियसा।
यश्च नित्यं जित क्रोधो विद्वानुत्तमः पुरूषः।।

प्रस्तुत श्लोक में यह बताया गया है कि बलवान पुरुष सदैव क्रोध का त्याग करते हैं। क्रोध ना करके शील भाव को धारण करना ही विद्वान की पहचान है।
यही संदेश प्रतिपादित करते हुए श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि जो पुरुष बलवान एवं शक्तिशाली होने पर भी दूसरों द्वारा बोले गए कटु वचन और ताड़ना पर कुछ नहीं कहते हैं, एवं क्रोध ना करके उन्हें सहज भाव से क्षमा करते हैं, अर्थात जिसने क्रोध पर विजय पा ली हो, वह पुरुष निश्चय ही विद्वान एवं उत्तम है।


क्रोध करने वाला ना तो शक्तिशाली होता है, ना ही ज्ञानी। वास्तव में ज्ञानी वह है जो क्रोध ना कर क्षमा करना जानता हो क्योंकि क्रोध विनाश का मार्ग है। क्रोध से न केवल बुद्धि, बल्कि धर्म का भी क्षय होता है।

अतः हमें इस श्लोक से यह शिक्षा प्राप्त होती है कि दूसरों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार, कटु वचन अथवा प्रताड़ना से हमें क्रोधित नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें क्षमा करना सीखना चाहिए। यही बड़प्पन है।

5) दयायातो विषयान्पुंसः संग्ङस्तेषुउपजायते
संग्ङासंग्ङात् संजायते कामः कामात्क्रोधो भिजायते।।


प्रस्तुत श्लोक में विषय ( भौतिक सुख) एवं क्रोध के बीच के संबंध का उल्लेख किया गया है। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि जो पुरुष विषय वस्तु के बारे में चिंतन मनन एवं विचार करता है, उसके मन में उन विषयों के प्रति आसक्ति उत्पन्न हो जाती है।

इस आसक्ति के कारण व्यक्ति में इन विषयों को प्राप्त करने की कामना उत्पन्न होती है अर्थात जिन विषय वस्तु का वह चिंतन करता है, अब वह उसे पाने की इच्छा करता है।

इस कामना में पड़े विघ्न के कारण क्रोध उत्पन्न होता है। अर्थात क्रोध का मूल कारण विषय वस्तु है। भौतिक सुखों की इच्छा और उनके ना पूरे होने के कारण ही क्रोध उत्पन्न होता है।

अतः इस श्लोक के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को सदा स्वयं को विषय वस्तु के चिंतन से दूर रखना चाहिए। तभी वह क्रोध से मुक्ति पा सकता है।

निष्कर्ष :
तो मित्रों आपने देखा कि इन श्लोकों के माध्यम से बड़ी सुंदरता से एवं सहजता से यह बताया गया है कि हर स्थिति में क्रोध मनुष्य के लिए पतन का कारण बनता है।

क्रोध न करने वाला व्यक्ति ही विद्वान एवं ज्ञानी कहलाता है। यदि हम अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं और तनावपूर्ण स्थितियों में यदि हम अपना आपा खो देते हैं, तो यह दर्शाता है कि हम में विवेक, धैर्य एवं ज्ञान की कमी है।

अतः हमें क्रोध रूपी शत्रु को पराजित करने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इन श्लोकों पर आपकी कोई राय है तो लेख के माध्यम से अवश्य इसे हमारे साथ साझा करें।


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