जीवन में सफल होने के लिए भावनात्मक परिपक्वता कितनी ज़रूरी है ?

जीवन में सफल होने के लिए भावनात्मक परिपक्वता कितनी ज़रूरी है ?

  

मित्रों, आज कल की जीवन शैली न सिर्फ फास्ट - फॉरवार्ड हो गई है, बल्कि जीवन काफी जटिल भी हो गया है। आजकल का दौर महत्वाकांक्षा, प्रतियोगिता, गतिशीलता और सफलता का दौर है।

हर व्यक्ति बड़े सपने देखता है और अपने क्षेत्र में कामयाब होना चाहता है। इसे हासिल करने के लिए व्यक्ति अपने हर कौशल का संभव प्रयोग कर रहा है। इसीलिए यह जमाना मल्टीटास्किंग और मल्टी टैलेंटेड लोगों का है।

लेकिन जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए परिश्रम और बुद्धिमता ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए व्यक्ति में भावनात्मक परिपक्वता एवं संतुलन भी अति आवश्यक है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

सफलता की बात आए तो हम तकनीकी कौशल, शारीरिक क्षमता, बुद्धिमता इत्यादि पर अधिक ज़ोर देते हैं और इन्हीं को अधिक आवश्यक मानते हैं। इन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप भावनात्मक परिप्रेक्ष्य के महत्व को हम सही तरीके से नहीं जान पाए हैं।

ऐसा शायद इसीलिए होता है क्योंकि हम उन चीजों पर अधिक ध्यान देते हैं जो सामने दिखाई देते हैं। भावनाएं दिखाई नहीं देती, इसलिए हम उन्हें आवश्यक नहीं मानते। पर क्या ऐसा करना सही है ? और क्या सच में भावनात्मक परिप्रेक्ष्य आपके सफलता से कोई संबंध नहीं रखता?

आज की चर्चा इसी विषय पर है। सबसे पहले हम बात करेंगे कि भावनात्मक परिपक्वता, जिसकी अक्सर अनदेखी कर दी जाती है क्या उस पर ध्यान दिया जाना सच में जरूरी है? और यदि हां, तो यह हमारे सफलता ने कितना और किस प्रकार योगदान करता है?

इसके लिए हमें एक उदाहरण का सहारा लेना होगा। आइए एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को मूर्त रूप देकर जीवन में सफल होना चाहता है। उसके पास तकनीकी कौशल, बुद्धिमता व शारीरिक शक्ति है। वह इन सभी कौशलों का इस्तेमाल कर सफलता के लिए कार्यरत है। लेकिन अचानक ही उसके जीवन में कोई ऐसी घटना घट जाती है जो मानसिक रूप से उसे अस्थिर कर देती है।

इस मानसिक अस्थिरता का परिणाम यह होता है कि वह अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाता। उसका मन हमेशा उदास रहता है और वह खुद को व्यवस्थित नहीं कर पाता। वह व्यक्ति यह तो जानता है कि वह इस समय भावनात्मक रूप से दुखी एवं असंतुलित है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह इस स्थिति को कैसे ठीक करे।

अपनी भावनाओं पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता और वह भावनाओं की वेग में बहता चला जाता है। इस भावनात्मक उथल-पुथल का सीधा - सीधा प्रभाव उसके काम पर पड़ता है और वह कार्य को लेकर अनुशासन खो बैठता है। साथ ही वह अपने कार्य पर पूर्ण रुप से ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता क्योंकि उसके मन में कई सारी भावनाओं के बीच द्वंद छिड़ा हुआ है।

अंत में यह होता है कि वह बहुत परेशान हो जाता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाता है। उसकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं पर उसकी भावनाएं हावी हो जाती है जो अब उसके नियंत्रण से बाहर होती हैं।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति के पास हर कौशल होने के बाद भी सफल नहीं हो पाता है। इसका एकमात्र कारण है भावनात्मक अपरिपक्वता एवं अस्थिरता। यदि वह व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना जानता तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

यह कहानी उन हजारों युवाओं की है, जो अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। अधिकतर युवा अवसाद, क्रोध, ईर्ष्या इत्यादि भावनाओं के चलते मानसिक रूप से पीड़ित होते हैं। इनका सीधा - सीधा असर उनके करियर पर और उनकी सफलता पर पड़ता है।

तो मित्रों, अब शायद आप जान गए होंगे कि इस विषय पर चर्चा करना कितना महत्वपूर्ण है और यदि इस पहलू की अनदेखी की जाए तो यह व्यक्ति के लिए कितना घातक सिद्ध हो सकता है। भावनात्मक स्वास्थ्य ना सिर्फ आपकी जिंदगी में सफलता के लिए आवश्यक है बल्कि एक खुशहाल जीवन की परिकल्पना भी इसी से सिद्ध होती है।

आवश्यकता से अधिक उत्तेजना या आवश्यकता से अधिक उदासीनता, यह दोनों ही आपके लिए हानिकारक है। नई पीढ़ी, खासकर युवाओं में भावनात्मक असहिष्णुता और अपरिपक्वता कि मामले बढ़ते जा रहे हैं। बदलती हुई जीवन शैली के साथ - साथ भावनात्मक परिप्रेक्ष्य में भी पहले की तुलना में काफी अधिक बदलाव आ गया है।

युवाओं में क्रोध का स्तर बढ़ता जा रहा है। अक्सर यह देखा जाता है कि तनावपूर्ण स्थितियों में लोग बहुत जल्दी है अपना आपा खो देते हैं और अपने क्रोध पर बिल्कुल नियंत्रण नहीं रख पाते। इसके साथ ही उन लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है जो डिप्रेशन यानी कि अवसाद, चिंता या कुंठा से पीड़ित है।

यहां तक की हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी मानसिक तनाव से गुजर रहा होता है। इसका कारण भावनात्मक रूप से असंतुलित होना ही है जिसका प्रभाव हमारे जीवन के हर पहलू पर पड़ता है।

इसी विषय पर जागरूकता लाने के लिए हमने आज एक विस्तृत चर्चा की है, जो आपको अवश्य पढ़नी चाहिए। ऊपर हमने देखा कि भावनात्मक परिपक्वता और भावनाओं पर नियंत्रण करना व्यक्ति के लिए क्यों आवश्यक है।

अब हम यह जानेंगे कि आप अपने जीवन में भावनात्मक संतुलन किस प्रकार बना सकते हैं। जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाकर आप इस लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं और पहले की तुलना में अधिक खुशहाल अधिक स्थिर व अधिक सफल व्यक्ति बन सकते हैं।

तो आइए इस संकट के निवारण की ओर चले और उन बिंदुओं को जानें :

✴ भावनाओं से भागे नहीं :

क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें अपने ही मन के अंदर चल रही भावनाओं से डर लगता है ?

ऐसे कई लोग हैं जो अपनी भावनाओं से भागते रहते हैं, अर्थात उनकी अनदेखी करते रहते हैं। इसका कारण है भावनात्मक रूप से अपने कंफर्ट जोन (comfort zone) में रहना पसंद करना और तनावपूर्ण स्थिति को ना झेल पाने की क्षमता।

ऐसे लोगों कि जीवन में जब भी कोई कठिनाई या संकटपूर्ण परिस्थितियां आती है तो वह इनका सामना करने की बजाय इन से भागना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति में लोग अंदर ही अंदर परेशान, भयभीत दुखी या उत्तेजित होते हैं लेकिन ऊपर से ऐसा दिखावा करते हैं जैसे सब बिल्कुल ठीक हैं।

आप अपनी भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन आप भूल जाते हैं कि आपके ऐसा करने से आपकी परेशानी का हल नहीं निकलने वाला। आपकी परेशानी अंदर ही अंदर आपको मानसिक रूप से प्रभावित करती रहती है और बाहरी जीवन में आप इससे भागते रहते हैं।

ऐसा बिल्कुल ना करें।

यह आपके लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। आपको आवश्यकता है कि जो भी बात आपको परेशान कर रही है आप उसका हल निकालें। तभी जाकर आप अच्छा महसूस कर सकते हैं। जीवन में आ रही मुश्किलों से मुंह मोड़ लेना और उन्हें पीठ दिखाना कभी समस्या का हल नहीं हो सकता। ऐसा कायर करते हैं।

अपनी भावनाओं की इज्जत करना सीखें। आप जो भी महसूस कर रहे हैं, जैसा भी महसूस कर रहे हैं, उसे उसी रूप में बाहर आने दे।

विपरीत प्रतिक्रिया ना करें।

याद रखें, इंसान हमेशा खुश नहीं रह सकता। जीवन में दुख का आना स्वाभाविक सी बात है। इसीलिए आज से ही आप अपनी भावनाओं की अनदेखी करना छोड़ दें। आशा है आप इस बात पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित करेंगे कि वह कौन सी बात है जो आपको परेशान या चिंतित कर रही है और उसका हल निकालने की कोशिश करें।

✴ समय की मांग को समझने का प्रयास करें :

मित्रों, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी परिस्थिति में आप बहुत अधिक क्रोधित हो गए हैं और बाद में आपको इसका पछतावा हुआ हो? या फिर कभी ऐसा हुआ हो कि किसी बात को लेकर आपने बहुत ही उदासीन रवैया दिखाया हो और बाद में आपको उसका अफसोस हो?

हम सबके जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहां हम उपयुक्त भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं कर पाते हैं। ऐसा खासकर तब होता है जब हमारे सामने कोई तनावपूर्ण स्थिति बने। ऐसी स्थिति में या तो हम आवश्यकता से अधिक उत्तेजित हो जाते हैं, या फिर कुछ ज्यादा ही उदासीन हो जाते हैं। यह दोनों ही स्थितियां दर्शाती हैं कि आप भावनात्मक तौर पर अपरिपक्व को दर्शाती है।

इसका अर्थ यह है कि आप इस बात को समझने में असफल हो गए कि उस समय आपको क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी। अधिक उत्तेजना भावनाओं का अनियंत्रित होने का परिणाम है और आवश्यकता से अधिक उदासीनता का अर्थ है कि आप अपनी भावनाओं की अनदेखी कर रहे हैं।

इस समस्या का निवारण करने के लिए आपको आज से ही यह सोचना शुरु करना होगा कि आप जिस परिस्थिति में है वह परिस्थिति आपसे क्या मांग कर रही है। जब भी आप किसी तनावपूर्ण स्थिति में पड़े तो प्रतिक्रिया देने से पहले यह सोचे कि आपको क्या करना चाहिए और किस प्रतिक्रिया का क्या परिणाम होगा।

यदि आप क्रोध में है तो आपको यह सोचना होगा कि इससे क्रोध का क्या परिणाम होगा और इससे कैसे बचा जाए। ऐसा करने से आप अधिक उत्तेजित होने से बच पाएंगे और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल हो पाएंगे।

यह प्रक्रिया लंबी है। कई बार इसका प्रयोग करने पर आप इस पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर पाएंगे। यह आदत आपको अस्थिरता से स्थिरता की ओर और अपरिपक्वता से परिपक्वता की ओर ले जाएगी। इसीलिए हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि समय की क्या मांग है।

✴ जीवन में घट रही घटनाओं से खुद को बहुत अधिक प्रभावित ना होने दें :

मित्रों, जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे जीवन में रोज कुछ नया घटित होता रहता है। कभी अच्छे पल आते हैं, तो कभी बुरे। कभी हम बहुत खुश होते हैं तो कभी बहुत उदास। यह जीवन का हिस्सा है जिससे हम सबको होकर गुजरना पड़ता है।

यह मानव का स्वभाव और उसकी प्रकृति है कि सुखद और दुखद क्षण दोनों ही व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। यदि और गहराई से समझें तो सुख और दुख के क्षण हमारी भावनाओं को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं।

ऐसे में कुछ व्यक्ति भावनाओं के इन बदलावों से बहुत अधिक अस्थिर महसूस करने लगते हैं। खासकर ऐसा तब होता है जब हमारे जीवन में कोई दुखद घटना अकस्मात घट जाए। यह हमें मानसिक रूप से बुरी तरह से प्रभावित करती है और इससे उबर पाना भी काफी मुश्किल हो जाता है।

लेकिन भावनाओं की इस जाल में फंसना आपकी सफलता में बहुत बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। अपने लक्ष्य के लिए दिन-रात कार्य कर रहा व्यक्ति यदि मानसिक रूप से असंतुलित हो जाए तो संभावित सी बात है कि उसका ध्यान उसके लक्ष्य से भटक जाएगा और चाह कर भी वह दोबारा उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएगा।

यह स्थिति आजकल लाखों युवाओं की है कि मानसिक तनाव उनके विकर्शन का कारण बनता जा रहा है। इसीलिए आपको स्वयं को स्थिर रखना सीखना होगा। जीवन में जो भी घट रहा है उससे अपने आप को बहुत अधिक प्रभावित ना होने दें।

इसके लिए आपको भावनात्मक रूप से मजबूत होने की आवश्यकता है। संयम और धैर्य का आचरण करना सीखें और दुख और सुख, हर परिस्थिति में समान रहने का प्रयास करें।

निष्कर्ष :

तो देखा आपने मित्रों, जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके किस प्रकार आप खुद को एक परिपक्व व्यक्ति बना सकते हैं। ऐसा करने से आप अपनी भावनाओं पर शत प्रतिशत नियंत्रण रख पाएंगे। इस लेख को पढ़ने के बाद आप यह जान गए होंगे कि मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक परिप्रेक्ष्य व्यक्ति के जीवन में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है।

भावनात्मक रूप से असंतुलित व्यक्ति जीवन में कभी संतुलित नहीं हो सकता और न ही कभी सफल हो सकता है, क्योंकि सफलता की शुरुआत हमारे मन से ही होती है। इसीलिए आज से अपने कौशलों को निखारने के साथ ही भावनात्मक संतुलन पर भी ध्यान देना प्रारंभ कर दें।

यह आगे जाकर आपके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। आशा है आज का यह लेख आपको बहुत पसंद आया होगा। यदि आपके मन में इस लेख से जुड़े कोई भी प्रश्न अथवा सुझाव हो तो उन्हें हमारे साथ साझा करना बिल्कुल ना भूलें। आप स्वयं को भावनात्मक रूप से नियंत्रित और संतुलित रखने के लिए क्या करते हैं, यह भी हमें लिखकर अवश्य बताएं।


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