जीवन में परिश्रम का महत्व बताते दोहे

जीवन में परिश्रम का महत्व बताते दोहे

  

नमस्कार मित्रों ! आज का यह लेख हर उस व्यक्ति के लिए है, जो अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है। मित्रों सफलता हर किसी को चाहिए । किंतु बहुत कम ही है जो उस सफलता को पाने के लिए प्रयास करते हैं।

जिस गुण की सबसे अधिक कमी है, वह है श्रम। लोग परिश्रम नहीं करना चाहते । उन्हें सफलता तो चाहिए होती है, किंतु वह उसके लिए मेहनत करने से कतराते हैं।

यदि आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो आपकी यह सोच बहुत गलत साबित होगी। क्योंकि बिना परिश्रम के सफलता के सपने पूरे नहीं हो सकते। इसी बात को समझाने के लिए आज हम इस लेख में कुछ ऐसे दोहे लेकर आए हैं जो बताते हैं कि मनुष्य को श्रम से किस प्रकार मित्रता करनी चाहिए।

चाहे वह छात्र हो, या कोई व्यवसायी, अथवा घर संभालने वाली महिला, हर किसी को अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए श्रम करना ही पड़ता है। आइए जाने इन दोहों को :

1 ) श्रम ही ते सब होत है, जो मन सखी धीर ।
श्रम ते खोदत कूप ज्यों, थल में प्रागटै नीर।

प्रस्तुत दोहे में महान संत कवि कबीरदास जी ने बताया है कि सफलता पाने के लिए कठिन परिश्रम तो करना अनिवार्य है, किंतु परिश्रम के साथ एक और गुण है जिस के होने से ही परिश्रम सार्थक हो पाता है।

वह गुण है धैर्य। इस संदेश को प्रतिपादित करते हुए कबीर कहते हैं कि श्रम, अर्थात परिश्रम से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि मन में धैर्य धारण किया जाए, धीरज रखा जाए तो मनुष्य जो चाहे वह संभव है। जब अत्यंत घोर परिश्रम से कुआं खोदा जाता है, तो जमीन से भी पानी निकल ही आता है।

कुआं खोदने की प्रक्रिया में बहुत लंबी प्प्रतीक्षा एवं मेहनत है । यदि पानी ना निकलने पर धैर्य खो दिया जाए, तो पहले का सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा । अतः यह दोहा हमें शिक्षा देता है कि हमें धीरज धारण कर निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए । फल अवश्य मिलेगा।

2 ) जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बपूरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

प्रस्तुत दोहे में कबीर दास जी ने जन सामान्य को यह संदेश पहुंचाया है, कि जो प्रयत्न करते हैं, उन्हें सफलता अवश्य ही मिलती है। बिना मेहनत किए केवल कुछ पाने की आशा कभी फलीभूत नहीं होती । इसी बात को स्पष्ट करते हुए दोहे की पहली पंक्ति में कबीरदास जी कहते हैं कि जिस ने प्रयास किया, कोशिश की उसने जिस की भी इच्छा रखी उसे पा लिया।

अर्थात जो प्रयत्न करते हैं, उन्हें कुछ न कुछ अवश्य प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गोताखोर बहुत मेहनत मशक्कत करके पानी की गहराइयों में जाता है, और कुछ न कुछ अवश्य लेकर आता है।

उसकी मेहनत का फल उसे अवश्य मिलता है। कबीर कहते हैं किंतु कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो डूबने से डरते हैं और इस डर से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं। फल स्वरूप उन्हें पछतावे के सिवाय कुछ प्राप्त नहीं होता।

इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हम मेहनत करने से डरेंगे तो हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि किनारे पर बैठने से पानी के तल में छिपा खजाना नहीं मिल सकता।

3 ) उद्यम कबहुँ न छोड़िए, पर आशा के मोद।
गागरि कैसे फोरिये, उनयो देखी पयोद।

प्रस्तुत महान दार्शनिक एवं कवि वृंद द्वारा लिखा गया है। इस दोहे में उन्होंने यह बात याद दिलाई है कि भविष्य में होने वाली घटना की आशा रखकर हमें आज का प्रयास कभी नहीं छोड़ना चाहिए ।

भविष्य में इससे अच्छा मिलने वाला है, यह सोचकर जो आपके पास है, उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए। क्योंकि भविष्य वह है जो अभी तक आया नहीं है, और ना ही वह निश्चित है।

यदि वह नहीं हुआ जो आपने सोचा है, तो अंत ऐसा होगा कि जो आपने चाहा, वह आपको मिला भी नहीं, और आपके पास जो था, वह भी हाथों से चला गया।

दोहे की पहली पंक्ति में कवि वृंद कहते हैं उद्यम, अर्थात श्रम करना कभी भी नहीं छोड़िए । इस आशा में कि भविष्य में अच्छा होने वाला है आप आज के प्रयत्न को ना छोड़िए।

उदाहरण का प्रयोग करते हुए कवि कहते हैं कि आकाश में काले, मेघ भरे बादलों को देखकर वर्षा से प्राप्त बहुत सारे पानी मिलने की खुशी में अपने घर में रखे पानी के घड़े को नहीं फोड़ देना चाहिए।

यदि वर्षा ना हुई, तो अधिक पानी भी नहीं मिलेगा और जो पानी आपके पास था वह भी चला जाएगा I प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपनी आशा को भविष्य पर नहीं, अपितु वर्तमान पर रखें। आज किया हुआ श्रम ही आपको भविष्य में सुख दिलाएगा।

4 ) करत करत अभ्यास ते, जनमत होत सुजान ।
रसरी आवत जात है, सिल पर परत निसान।

प्रस्तुत दोहा कविवर वृंद द्वारा रचित है, जहां उन्होंने सफलता पाने के लिए अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डाला है । उनके अनुसार यदि निरंतर अभ्यास किया जाए, तो असंभव दिखने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं।

यही बताते हुए दोहे की पहली पंक्ति में वह कहते हैं कि अभ्यास करते करते ही जनमत अर्थात जड़मति, मूर्ख व्यक्ति भी सुजान अर्थात ज्ञानी एवं बुद्धिमान बन जाता है।

निरंतर अभ्यास ही वह पूंजी है जो व्यक्ति को सफल बनाती है । उदाहरण स्वरूप कविवर वृंद कहते हैं कि कुए के अंदर से बाल्टी को खींचने वाली रस्सी बार-बार कुए की पत्थर से टकरा कर रगड़ खाती रहती है ।

एक बार रगड़ने पर कुएं के पत्थर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किंतु जब रस्सी बार-बार पत्थर पर रगड़ खाती है तो कठोर पाषाण पर भी निशान छोड़ देती है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो कार्य देखने में असंभव प्रतीत होते हैं, उन्हें भी अभ्यास द्वारा साधा जा सकता है।

5 ) श्रम से ही सब कुछ होत है, बिन श्रम मिले कुछ नाही।
सीधे उंगली घी जमो, कबसू निकसे नाही ।

प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा रचित है, जहां उन्होंने यह कहा है की जो बिना श्रम किए ही कुछ पा लेने की इच्छा रखते हैं, उनकी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती क्योंकि बिना परिश्रम किए लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

दोहे में वह कहते हैं कि श्रम अर्थात मेहनत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं। बिना श्रम के कुछ नहीं मिलता। उदाहरण देते हुए वह आगे कहते हैं कि जिस प्रकार घी जम जाने पर उसे अंगुली सीधी करके निकलना असंभव हो जाता है, उसी प्रकार बिना श्रम के परिणाम तक पहुंचना असंभव है।

जिस प्रकार जमे हुए घी को निकालने के लिए उंगली को टेढ़ा करना आवश्यक है, इसी प्रकार लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मेहनत करना भी आवश्यक है प्रस्तुत दोहे हमें यह सीख देता है कि हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि बिना परिश्रम किए ही हम अपने लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे।

निष्कर्ष :

उपर्युक्त लेख में आपने जाना कि मनुष्य के जीवन में उद्यम अथवा श्रम कितना महत्वपूर्ण है। किसी भी कार्य को करने के लिए परिश्रम करना ही पड़ता है वरना सफलता हासिल नहीं होती।

महापुरुषों ने अनगिनत रचनाएं कर मनुष्य को इस बात से सचेत किया है कि यदि वह जीवन में श्रम नहीं करेगा, तो उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। यह दोहे हमारे अंतर्मन तक इस संदेश को पहुंचाते हैं ताकि हम अपने जीवन में कभी भी श्रम करने से पीछे ना हटे और जिस की भी इच्छा रखे वह हम श्रम द्वारा जरूर पा ले।


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