चरित्रवान कैसे बने

चरित्रवान कैसे बने

  

मित्रों, हम अपने जीवन में कई सारे लोगों से मिलते हैं। कुछ लोगों से मिलने के बाद हमारे मुख से स्वतः ही निकलता है कि वाह! कितना उत्तम चरित्र है। वहीं हम कभी-कभी कुछ ऐसे लोगों से भी दो-चार होते हैं जिनका व्यवहार एवं आचरण अनुचित होता है और हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस व्यक्ति का चरित्र ठीक नहीं है।

चरित्र के मापदंड पर व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने का पैमाना निर्भर करता है। अर्थात चरित्र एक महत्वपूर्ण गुण है।

मित्रों, कहा जाता है कि चरित्र व्यक्ति के अंतर्मन का आईना होता है। चरित्र केवल शब्द मात्र नहीं है। यह वृहत अर्थ समेटे एक भाव है जो कई सारे गुणों के समावेश से अस्तित्व में आता है।

चरित्र की महत्ता का इस श्लोक में सुंदरता पूर्वक बखान किया गया है:

वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!

अर्थात, चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है।

चरित्रवान व्यक्ति हर जगह आदर और सम्मान का पात्र होता है। लेकिन उत्तम चरित्र पाना भी एक कला है। चरित्रवान बनने के लिए हमें अपने अंदर कई सारे गुणों का विकास करना पड़ता है और यह प्रक्रिया अनुशासन और दृढ़ संकल्प मांगती है।

आज के इस लेख में हम आपके साथ चर्चा करेंगे कि किस प्रकार हम अपने गुणों का विकास कर उत्तम चरित्र पा सकते हैं। आइये जानें :

हमेशा सच बोलें :

उदार चरित्र के मानक क्या हैं?

क्यों सच बोलने वाले व्यक्ति सम्मान के पात्र होते हैं? चरित्र के विकास में सत्यव्रत का क्या योगदान है?

यदि आपके मन में भी ऐसे प्रश्न हैं तो हम आपको बता दें कि सत्यव्रत अर्थात सत्य के मार्ग पर चलना सदचरित्रता के सबसे महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है।

हमेशा सच बोलें.jpg

यह बात निम्नलिखित श्लोक से सिद्ध होती है :

भावमिच्छति सर्वस्य नाभावे कुरुते मनः।
सत्यवादी मृदृर्दान्तो यः स उत्तमपूरुषः ॥

अर्थात जो पुरुष सबका भला चाहता है, किसी को कष्ट में नहीं देखना चाहता, जो सदा सच बोलता है, जो मन का कोमल है और जिंतेंद्रिय भी, उसे उत्तम पुरुष कहा जाता है। अच्छे चरित्र का मतलब ही होता है सद्गुणों एवं सद्भाव का समावेश। झूठ इन दोनों गुणों का नाश करता है और सत्यव्रत इन दोनों गुणों में वृद्धि करता है।

चरित्रवान व्यक्ति कभी भी झूठ का साथ नहीं देता है। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो, वह सदैव सत्य के मार्ग पर चलता है। इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जिनसे आप प्रेरणा ले सकते हैं, चाहे वह महात्मा गांधी हो, नेल्सन मंडेला हो, अथवा राजा हरिश्चंद्र हो।

इन्होंने जिंदगी भर सत्य का साथ दिया और पूरी दुनिया को भी यही सीख दी। सत्य न केवल आपके चरित्र के विकास के लिए आवश्यक है बल्कि यह आपको उत्तम से उत्तम श्रेणी का व्यक्ति बनाने में योगदान करता है।

मित्रों, यदि आप अच्छे चरित्र का विकास करना चाहते हैं, अपने चरित्र को शुद्ध करना चाहते हैं तो अपने अंतर्मन में इस बात को बिठा ले कि सत्य ही जीवन का यथार्थ है। झूठ अपने साथ छल, कपट, ईर्ष्या जैसे भावों को साथ लाता है जो दुश्चरित्र के मानक हैं। झूठ बोलने अथवा झूठ का साथ देने से आपके चरित्र में मौजूद उत्तम गुणों का भी क्षय प्रारंभ हो जाता है।

इससे आपकी ईमानदारी खत्म होने लगती है, आपकी निष्ठा और कर्तव्य बोध आप से विमुख होने लगते हैं और साथ ही अपने चरित्र को लेकर आपका आत्मविश्वास भी कम होने लगता है क्योंकि कहीं ना कहीं आप इस बात को जानते हैं कि आप गलत का साथ दे रहे हैं।

सत्यव्रत आपके सद्गुणों के विकास की वह सीढ़ी है जिससे होकर आप दया, करुणा, संयम, सहिष्णुता, प्रेम एवं यथार्थ जैसे गुणों को अपने अंदर समाहित कर सकते हैं। सच बोलने से इंसान को सही और गलत के भेद का पता चलता है और उसे यह एहसास होता है कि व्यक्ति की गरिमा सत्यव्रत में ही निहित है।

अतः अच्छे चरित्र के निर्माण और विकास के लिए सत्य व्रत का पालन परम आवश्यक है। लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में यह असंभव प्रतीत होता है।

आप सोच रहे होंगे कि भला बिना कोई भी झूठ बोले काम कैसे चल सकता है।

हमें कहीं ना कहीं, कभी ना कभी छोटे या बड़े झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है। कभी कभी यह किसी की भलाई के लिए भी होता है। लेकिन याद रखें, एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। इसीलिए झूठ की तरफ अपना झुकाव करना कभी-कभी भी एक अच्छा विचार नहीं है।

रोजमर्रा की जिंदगी में अपने आप को सच पर डटे रखने के लिए कुछ सुझाव पर जरूर ध्यान दें जो कि निम्नलिखित हैं :

✴ इस बात को स्वीकार करना बंद कर दें कि छोटे-मोटे झूठ बोलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। आपके मुख से निकला हर एक वाक्य, हर एक शब्द आपके चरित्र का परिचायक होता है। अर्थात चाहे झूठ कितना भी छोटा ही क्यों ना हो उसे बोलने से हमेशा बचें।

✴ सत्यव्रत का पालन केवल अपनी तक सीमित रखने से बात नहीं बनेगी। आप की संगति में लोग क्या करते हैं, इससे भी आप काफी हद तक प्रभावित होते हैं। इसीलिए अपने आसपास के लोगों को भी सत्यव्रत का पालन करने के लिए उत्साहित करें।

✴ अक्सर हम विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। एक छोटे से झूठ से हम तनावपूर्ण स्थिति में जाने से बच जाते हैं। शायद इसीलिए हम झूठ का सहारा लेते हैं। आपको यह समझना होगा कि ऐसा कृत्य कायर करते हैं, वह जो परिस्थितियों से डरते अथवा भागने में विश्वास रखते हैं।

चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, उसका सामना करना सीखें और खुद को बचाने के लिए कभी झूठ का साथ ना दे। भले ही एक पल के लिए यह सत्य कठोर प्रतीत होगा लेकिन आगे जाकर यह आपके लिए और आपके चरित्र के लिए अच्छा साबित होगा ।

दुर्व्यवहार ना करें :

मित्रों, चरित्रवान व्यक्ति की पहचान होती है विनम्रता, अनुशासन एवं आदर्श। छोटा हो या बड़ा, चरित्रवान व्यक्ति सभी को आदर देता है।

आप की क्रियाएं, आप के मुख से निकले शब्द एवं आपका आचरण यह सभी आपका व्यवहार तय करते हैं। इन सभी का अच्छे चरित्र के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने चरित्र को उत्तम बनाने के लिए आपको अपने अंदर सद्गुणों का विकास करना होगा अर्थात आपको अपने व्यवहार को सुंदर करना होगा। ऐसा करने के लिए आप निम्नलिखित सुझावों को जरूर आजमाएं :

दुर्व्यवहार ना करें.jpg

✴ क्रोध को अपने ऊपर हावी न होने दें:

क्रोध सदैव दुर्व्यवहार को आमंत्रण देता है और हम अक्सर इसके वेग में बहकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे हमारी सदचरित्रता पर सवाल खड़े हो जाते हैं।

अतः इस बात का सदैव ध्यान रखें कि क्रोध का परिणाम क्या होगा। क्रोध के वेग में बह कर कभी भी अपने मुख से किसी के लिए भी कठोर अथवा अपमानजनक शब्दों का प्रयोग ना करें। इस तरह के शब्दों का प्रयोग करने से आप केवल सामने वाले की भावनाओं को ही आहत नहीं करते हैं बल्कि इससे स्वयं आपका बहुत बड़ा नुकसान होता है।

आप के मुख से निकले यह खराब शब्द आपकी सहिष्णुता एवं आपके आदर भाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। अतः आप जब भी अति क्रोधित हो, या तो पूरी तरह चुप हो जाएं या तो शांति से सोच समझकर कुछ भी बोलें।

✴ दूसरा गुण है विनम्रता का गुण :

यदि बात सच्चरित्रता की हो तो वृक्षों से अच्छे प्रेरणा स्रोत भला कौन हो सकते हैं?

गुणकारी फल फूलों से लगा वृक्ष सदैव झुका हुआ होता है, अर्थात वह विनम्र होता है। यह उसके उत्तम चरित्र का उदाहरण है। आपको भी इसी का अनुसरण करना है। छोटे हो या बड़े, सब से विनम्र भाव से बात करें। अमीर हो या गरीब, सभी को आदर दें और कभी अपनी स्थिति पर घमंड ना करें।

खुद को श्रेष्ठ समझकर दूसरों को कमतर समझना व उन का अपमान करना सच्चरित्रता का लक्षण कभी नहीं हो सकता है। यह आपके चरित्र का नाश कर देती है। इसलिए चरित्रवान बने और सदैव विनम्रता का पालन करें।

तीसरा गुण है संयम.jpg

तीसरा गुण है संयम :

संयम, जिसे धैर्य अथवा धीरज भी कहा जाता है, उसका अर्थ है किसी भी कार्य के होने तक प्रतीक्षा करने की क्षमता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजकल ऐसे बहुत कम लोग हैं जिनमें धैर्य है। ऐसा प्रतीत होता है मानो लोग प्रतीक्षा करना ही भूल गए हैं। किंतु चरित्रवान व्यक्ति सदैव अंत तक धैर्य धारण करके रखता है।

अपने चरित्र के विकास में धैर्य को एक महत्वपूर्ण स्थान दे और हर परिस्थिति में संयमी बनना सीखे। जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में कोई कार्य ना करें।

निष्कर्ष :

आइए इस लेख का अंत एक सुंदर श्लोक से करें :

प्राप्नोति वै वित्तमसद्बलेन नित्योत्त्थानात् प्रज्ञया पौरुषेण।
न त्वेव सम्यग् लभते प्रशंसां न वृत्तमाप्नोति महाकुलानाम् ॥

अर्थात बेईमानी से, बराबर कोशिश से, चतुराई से कोई व्यक्ति धन तो प्राप्त कर सकता है, लेकिन सदाचार और उत्तम पुरुष को प्राप्त होने वाले आदर -सम्मान को प्राप्त नहीं कर सकता।

तो मित्रों, इस लेख में आपने जाना कि उत्तम चरित्र किन गुणों के समावेश से व्यक्ति प्राप्त कर सकता है। चरित्र ही सब कुछ है। इस संसार में चरित्र से बड़ा धन और कोई भी नहीं है। वेद पुराणों में विद्वानों ने सदैव चरित्र के स्थान को सर्वोपरि रखा है और हो भी क्यों ना ?

चरित्र व्यक्ति के विचार एवं आचरण का आईना होते हैं। अतः हम सभी को चरित्रवान बनने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम हर स्थान पर आदर और सम्मान के पात्र बनें।


अपनी राय पोस्ट करें

ज्यादा से ज्यादा 0/500 शब्दों