Pallavi Thakur
657 अंक
Motivator
अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेर कर संजो लीजिए!
नमस्कार! मैं आकाशवाणी की युवा कलाकार हूँ। लेखन एवं हिंदी भाषा में मेरा अत्यधिक रुझान है। इस रुचि को एक ब्लॉगर के रूप में साकार करने के की कोशिश है।
मित्रों, हमें बचपन से अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा दी जाती है। माता पिता, गुरु जन, एवं बड़े हमारी भाषा, आचरण, वेश भूषा, आदतों, विचार, शारीरिक हावभाव इत्यादि को लेकर सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि बाल्यकाल में मनुष्य का व्यवहार ही उसके चरित्र का निर्माण करता है और आगे जाकर यही व्यवहार उसके चरित्र का आईना बन जाता है।
व्यवहार का तात्पर्य केवल बोलचाल के तरीके या रोज़ मर्रा की आदतों से ही नहीं है। मित्रों, व्यवहार शब्द का अर्थ बहुत ही व्यापक एवं विस्तृत है। आइए इसे समझने का प्रयास करें। मनुष्य जो नियमित रूप से प्रतिदिन करता है, वह उसकी आदत बन जाती है। लंबे समय तक रह जाने वाली आदतें ही धीरे-धीरे उसका व्यवहार बन जाती हैं।
मनुष्य का व्यवहार जिस प्रकार का होता है, धीरे-धीरे उसके विचार एवं मानसिकता भी उसी प्रकार की बन जाती है। मनुष्य की मानसिकता की भूमिका ऐसी है कि इसी के अनुसार मनुष्य अपने जीवन के निर्णय लेता है। जैसी मानसिकता, वैसे ही निर्णय। अर्थात यदि मानसिकता सही एवं उत्पादक हुई, तो मनुष्य अपने जीवन के निर्णय बहुत ही सोच समझ कर लेता है, जिसके परिणाम अच्छे आते हैं।
किंतु यदि व्यक्ति चीजों को भली प्रकार से समझ नहीं पाता, एवं उसकी मानसिकता विकसित नहीं है, तो वह जीवन के निर्णय लेने में चूक जाता है। परिणाम स्वरूप अक्सर उसे पछताना पड़ता है।
तो देखा आप सबों ने, मनुष्य का व्यवहार ही है जो उसके जीवन का आधार बनता है। हम व्यक्तिगत रूप से कैसे हैं, जीवन में हमें सफलता मिली या नहीं, हमारा भावनात्मक पहलू कैसा है, हम संबंधों को किस प्रकार निभाते हैं, हमारे आध्यात्मिक विचार क्या हैं, यह सब हमारे व्यवहार पर ही निर्भर करते हैं। इसी कारण से मनुष्य को सदैव ही अपने व्यवहार का बहुत ही बारीकी से परीक्षण करते रहना चाहिए, ताकि वह खुद को सही रास्ते पर बनाए रख सके।
अब आप सबों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि स्वयं अपने व्यवहार की जाँच कैसे की जाए?
तो मित्रों, आत्म अवलोकन इसका सबसे अच्छा तरीका है। किंतु जीवन में कई ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब व्यक्ति अपने प्रश्नों का उत्तर स्वयं नहीं ढूंढ पाता। ऐसी स्थिति में उसे एक सहायक की आवश्यकता पड़ती है। यह सहायक आपके मित्र, माता-पिता, संबंधी आदि कोई भी हो सकते हैं। किंतु इसके साथ ही आप के पास एक बहुत बड़ा सहायक है, और वह है साहित्य।
इतिहास में कई ऐसे महान लेखक एवं कवि हुए हैं, जिन्होंने जीवन के हर पहलू पर उत्कृष्ट रचनाएं कर मानव का मार्गदर्शन किया है। इन रचनाओं को पढ़कर हमें बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता है। ऐसे ही जानकारी हासिल करने का मौका हम आज आपके लिए लेकर आए हैं।
आज हम कुछ ऐसे दोहे लेकर आए हैं, जिसमें कवि रहीम ने सोच समझकर व्यवहार करने शिक्षा दी है। उन्होंने बताया है कि जीवन की भिन्न - भिन्न परिस्तिथियों में मनुष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिए।
इन दोहों में कवि रहीम ने अपने हितैषियों की जांच - परख करने की सलाह दी है, वाणी पर नियंत्रण लगाने को कहा है, कर्मों में श्रेष्ठता रखने की शिक्षा दी है एवं शारीरिक रूप से मजबूत रहने को कहा है। साथ ही उन्होंने धैर्यवान बनने की ओर इंगित किया है एवं सदैव सत्य के मार्ग पर चलने का भी परामर्श दिया है। तो आइये इन सभी दोहों को विस्तार से जानें :
1 ) रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।
लोग विपत्ति के नाम से ही डर जाया करते हैं। क्योंकि हमने यही अनुभव किया है कि विपत्ति का समय दुख, पीड़ा, अभाव एवं कष्ट लेकर आता है। किंतु प्रस्तुत दोहे में रहीम ने विपत्ति के सकारात्मक पहलू का वर्णन किया है। आइए जानें रहीम जी ने विपत्ति को अच्छा क्यों कहा है ।
कवि रहीम कहते हैं कि यदि कुछ समय के लिए विपत्ति आ जाए तो वह भी अच्छी है। अर्थात विपत्ति पड़ने पर दुखी नहीं होना चाहिए। विपत्ति के बादलों का छंटना निश्चित है।
साथ ही विपत्ति के समय ही मनुष्य जान पाता है कि इस संसार में कौन उसके लिए हितकारी है और कौन नहीं। अर्थात, हितैषियों की पहचान विपत्ति के समय ही होती है। जो इस परिस्थिति में साथ निभाता है, वही सबसे बड़ा मित्र है। बाकी सभी केवल स्वार्थ के लिए आप से जुड़े हैं।
सुख के क्षणों में अपने हितेशी की जांच करना बहुत कठिन है क्योंकि सभी संबंधी, यार, मित्र आदि प्रेम की बात करते हैं, कसमे - वादे खाते हैं और कई तरह के दावे करते हैं।
किंतु दुख आने पर ही स्पष्ट हो पाता है कि किस के वादे सच्चे हैं और किसकी मनषा विशुद्ध है। अक्सर विपत्ति के समय सभी साथ छोड़ देते हैं। ऐसे में जो आपके दुख को बांटे वही सच में आपसे प्रेम करता है। अतः विपत्ति को अवसर समझें।
2 ) बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।।
प्रस्तुत दोहे में कविवर रहीम ने वाणी पर नियंत्रण एवं अंकुश लगाने की ओर इंगित किया है। कई ऐसी स्थितियां आती हैं जब मनुष्य आवेग में आकर बहुत कुछ कह जाता है।
कई बार हमारे मुंह से ऐसे शब्द निकल जाते हैं, जो जीवन पर्यंत सामने वाले को घाव की तरह पीड़ा पहुंचाते हैं। मुंह से एक बार शब्द निकल गए, तो वह वापस नहीं किए जा सकते हैं। अतः अपने हर व्यवहार का परिणाम सोच - समझकर ही हमें आचरण करना चाहिए।
दोहे की प्रथम पंक्ति में कविवर कहते हैं कि बात यदि एक बार बिगड़ जाए, तो वह बिगड़ी ही रह जाती है। फिर चाहे कोई लाखों बार प्रयास क्यों न करें, किंतु बिगड़ चुकी बात को सही करना असंभव हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे एक बार दूध फट जाने पर उसे कितना भी मथा जाए, किंतु वह माखन नहीं बनता। उसी प्रकार बिगड़ी बात को बनाने के सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारा आचरण ऐसा होना ही नहीं चाहिए जिससे बात बिगड़ जाए। मनुष्य को बहुत सोच-विचार कर बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए; नहीं तो उसे बहुत पछताना पड़ता है।
3 ) बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरीधर कहे न कोय।।
सम्मानित व्यक्ति से हमेशा बड़प्पन वाले काम की अपेक्षा की जाती है। उनके द्वारा किए गए कर्म उनके पद एवं प्रतिष्ठा को शोभा देने वाले होने चाहिए, तभी वह बड़े कहलाते हैं। प्रस्तुत दोहे में कवि ने यही संदेश दिया है।
दोहे की पहली पंक्ति का आशय है कि बड़े लोग, अर्थात सम्माननीय, प्रतिष्ठित लोग यदि ओछे, यानी कि छोटे काम करें तो उनकी बड़ाई नहीं की जाती है। छोटे काम का तात्पर्य है - ऐसे कार्य जो उनके पद, प्रतिष्ठा के अनुरूप ना हो।
कवि रहीम ने उदाहरण देते हुए कहा है कि संजीवनी बूटी लाने हेतु हनुमान जी द्वारा धौलागिरी पर्वत को उठा लेने पर भी हनुमान जी को गिरिधर (पर्वत धारण करने वाला) की उपाधि नहीं दी गई। जबकि भगवान श्री कृष्ण जी ने जब गोवर्धन पर्वत उठाया, तो उन्हें गिरिधर कहा गया। दोनों ने ही पर्वत धारण किया, किंतु गिरिधर की उपाधि केवल एक को ही दी गई।
ऐसा इसीलिए क्योंकि दोनों कार्यों के ध्येय अलग-अलग थे। हनुमान जी ने पर्वत उठाकर पर्वतराज को क्षति पहुंचाई, किंतु कृष्ण जी ने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी उंगली पर पर्वत को उठाया था। इसीलिए हनुमान जी को गिरधर नहीं कहा जाता है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे कर्म सदैव ऊंचे होने चाहिए।
4 ) जब लगि विपुन न आपनु, तब लगि मित्त न कोय।
रहिमन अंबुज अंबु बिन, रवि कर रिपु होय।।
कवि ने इस दोहे के माध्यम से संसार के स्वभाव का वर्णन किया है और यह दर्शाया है कि यह संसार धन की चकाचौंध में कितना अंधा हो गया है। जिसके पास धन है वही श्रेष्ठ कहलाता है परंतु गुणवान होते हुए भी दीन व्यक्ति को आदर नहीं मिलता।
प्रथम पंक्ति में कवि कहते हैं कि जब तक आपके पास वित्त, अर्थात धन ना हो तब तक आपका कोई मित्र नहीं होता। किंतु जैसे ही आप धनवान बन जाते हैं सब व्यक्ति आपके मित्र बन जाते हैं। अर्थात मित्रता का पैमाना धन है, व्यक्ति के गुण अथवा चरित्र नहीं।
इसके लिए कवि ने कमल का उदाहरण दिया है और कहा है कि सूरज की रौशनी पाकर कमल खिलता है, किंतु जब जलाशय में पानी कम हो जाए, तो उसी सूरज की रोशनी कमल को सुखा देती है।
जिस प्रकार कमल के पास जल होने से सूर्य मित्र की भांति कमल का हित करता है एवं जल के कम हो जाने पर वही उसका शत्रु बन जाता है। ठीक उसी प्रकार धन के रहने पर सभी मित्र बन जाते हैं और धन ना हो तो मित्र भी शत्रु बन जाता है।
5 ) रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।
सैंजन अति फुलै तरु, डार पात की हानि।।
हम कई ऐसे लोगों से दो-चार होते हैं, जो हर परिस्थिति में बहुत अधिक उत्साहित रहते हैं। दूसरी भाषा में कहें तो वह हद ही पार कर देते हैं। जैसे कुछ लोग बहुत अधिक बोलते हैं, तो कुछ बहुत अधिक ही क्रोध करते हैं, कुछ अधिक ही चुप रहते हैं, तो कोई अत्यधिक कामचोर होता है।
इन गुणों की अति होने के कारण कोई निंदा का पात्र बनता है, कोई संबंधों से हाथ धो बैठता है, तो किसी को कष्ट उठाने पड़ते हैं। अतः व्यवहार एवं गुणों का संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है। प्रस्तुत दोहे का सार यही है।
कवि कहते हैं कि किसी भी चीज़ की, चाहे वह कोई कार्य हो, या व्यवहार हो, उसकी अति करना उचित नहीं है। आपको अपनी सीमा में ही रहना चाहिए। हद पार कर देने के दुष्परिणाम होते हैं।
कवि ने इसकी तुलना सहजन के वृक्ष से करते हुए कहा है कि जब सहजन के वृक्ष में अत्यधिक मात्रा में फल लग जाते हैं तो फलों के वजन के कारण डाली एवं पत्तियों की हानि होती है और उनके टूटने का डर रहता है।
प्रस्तुत दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अपने गुणों का आवश्यकता से अधिक प्रदर्शन करना अच्छी बात नहीं है। इससे ना तो आपकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, और ना ही जीवन में कुछ अच्छा होता है बल्कि इसके विपरीत कुछ अनिष्ट होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। अतः संयमी एवं धैर्यवान बने।
6 ) जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
प्रस्तुत दोहे में कवि ने हम तक यह संदेश पहुंचाया है कि मानव को शारीरिक रूप से हर परिस्थिति का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। कवि कहते हैं कि इस देह पर जो भी बीते, वह इसे सहन करना चाहिए। शरीर में हर परिस्थिति को सहने की सहज क्षमता होनी चाहिए।
जिस प्रकार धरती पर शीत, अर्थात ठंड, घाम अर्थात धूप, मेह अर्थात वर्षा पड़ती है एवं धरती इन तीनों स्थितियों को सहज भाव से सहन कर लेती है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर को भी दुख - सुख एवं कष्ट सहन करना चाहिए।
प्रस्तुत दोहे में कवि ने हमें सहिष्णुता की सीख दी है। सहिष्णुता धरती का स्वाभाविक गुण है, जिसका हम सभी मनुष्यों को अनुसरण करना चाहिए। जब हम धरती के इस गुण को पूरी तरह खुद में विद्यमान कर लेंगे, तब हम हर परिस्थिति में एक समान रहेंगे।
7 ) अब रहीम मुसकिल परी, गाढे दोउ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम।।
संसार की स्थिति कुछ ऐसी है कि यह भौतिकता में इतना खो गया है कि इसे सत्य, भक्ति, रीति - नीति कुछ भी दिखाई नहीं देती। संसार के इसी चरित्र ने ईश्वर की भक्ति के मार्ग को कितना कठिन बना दिया है, कवि इस पर प्रकाश डालते हैं।
दोहे की प्रथम पंक्ति में कवि रहीम ने कहा है कि अब रहीम बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। रहीम को दो कार्य करने हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण एवं कठिन है। किंतु रहीम इन दोनों कार्यों को एक साथ कैसे सिद्ध करें, वह इसी मुश्किल में पड़े हैं। सच्चाई का पालन करके इस दुनिया में काम चलाना बहुत मुश्किल है।
क्योंकि सच बोलने से दुनियादारी नहीं निभती और ना ही लोग खुश होते हैं। दुनिया तो झूठ बोलने वाले को ही पसंद करती है। और यदि इस दुनिया के खातिर झूठा बना जाए, तो राम, अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी।
सच के मार्ग पर प्रभु मिलेंगे किंतु दुनिया रूठ जाएगी, और झूठ से दुनिया तो मिल जाएगी किंतु प्रभु खो जाएंगे। अब रहीम किसे चुनें ? इस दोहे के माध्यम से कवि ने संसार के चरित्र पर करारा व्यंग्य किया है। पूरी दुनिया झूठ के मार्ग पर चल पड़ी है और ईश्वर से दूर हो गई है। अतः हमें चाहिए कि हम इस झूठ के मार्ग को तुरंत त्याग दें एवं सत्य का रास्ता चुनें।
8 ) रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारी ।।
मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि बड़ी वस्तु के मिल जाते ही वह छोटी वस्तु को व्यर्थ समझने लगता है। इसी प्रकार बड़े व्यक्ति अनुभवी, ज्ञानी एवं महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनकी तुलना में छोटों का महत्व कम कर दिया जाता है। प्रस्तुत दोहे में रहीम ने इसी की व्याख्या की है।
दोहे की पहली पंक्ति में कवि कहते हैं कि बड़ी चीज को देखकर छोटी वस्तु को छोड़ नहीं देना चाहिए। आवश्यक नहीं कि केवल बड़ी वस्तु ही उपयोगी है। छोटी वस्तु को व्यर्थ समझना भूल है।
उदाहरण देते हुए रहीम कहते हैं कि जिस जगह, जिस कार्य में सुई का काम हो, वहां तलवार क्या करेगी ? तलवार वह काम नहीं कर सकती जो सुई कर सकती है। अतः तलवार के मिल जाने पर सुई को फेंक देना मूर्खता है।
इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हर वस्तु का अपना महत्व है एवं अपना स्थान होता है, जिसे कोई और प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। बड़ों की तुलना में छोटों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
9) जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन का मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छांड़ति छोह।।
इस दोहे में कवि ने अनन्य प्रेम की व्याख्या की है। वास्तव में प्रेम तो वही होता है जो हर परिस्थिति में एक समान हो। विपदा आने पर भी प्रेमी का प्रेम नहीं बदलता। प्रेम की रीत ऐसी अनोखी है कि व्यक्ति अपने प्रेमी से एक क्षण का भी वियोग नहीं सह पाता है। किंतु जो विपत्ति पड़ने पर अपने प्रेमी को छोड़ दे, ऐसा प्रेम वास्तव में प्रेम नहीं, बल्कि केवल छलावा है।
दोहे में कविवर ने मछली एवं जल के बीच प्रेम संबंध की परिकल्पना करते हुए मछली के अद्भुत प्रेम का चित्रण किया है। वह कहते हैं कि जैसे ही मछली जाल में फंसती है और जाल को ऊपर उठाया जाता है, तब जल मछली का मोह त्याग कर सहजता से उसे छोड़कर जाल से बाहर बह जाता है।
अर्थात वह अपने प्रेमी का साथ छोड़ देता है। किंतु मछली का प्रेम इतना गाढा है कि वह जल की इस निष्ठुरता एवं उसके द्वारा किए गए विश्वासघात के बावजूद भी उसका मोह नहीं छोड़ पाती। मछलियों का प्रेम जल के प्रति इतना प्रबल है कि जल से वियोग हो जाने पर वह अपने प्राण त्याग देती हैं। इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम परिस्थितियों एवं समय के अनुसार नहीं बदलता है। प्रेम का निर्वाह अंतिम सांस तक किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष :
तो यह थे कवि रहीम के बेहतरीन दोहे। आशा है आप सभी पाठकों को इन दोहों से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। जीवन में जब भी विकट परिस्तिथियां आयें, इन दोहों को याद कर अपने निर्णय लीजिएगा।
पोस्ट
सुबह मिलेगा समय चुराने का अवसर !
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने !
समय चुराने का तात्पर्य किसी और के समय को चुराना नहीं है, बल्कि दिन के 24 घंटों में से उस समय का उपयोग करना है जिसे आप यूं ही गवा रहे हैं। यदि आपने बेकार हो रहे समय का इस प्रकार उपयोग कर लिया तो ऐसी स्थिति में आपके पास उस व्यक्ति की तुलना में अधिक समय होता है जो देर तक सोते रहता है।
यदि आप सुबह 8:00 बजे के स्थान पर 5:00 बजे ही उठ जाते हैं, तो सामान्य दिनों की तुलना में आपके पास उस दिन 3 घंटे अधिक होंगे। अब सोचिए कि इन तीन घंटों में आप कितने कार्यों को निपटा सकते हैं।
➤ यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह 3 घंटे आपके लिए अमूल्य होंगे। आप इस समय में अपनी पढ़ाई का बड़ा हिस्सा कवर कर सकते हैं।
➤ कामकाजी लोग इन 3 घंटों में उन कामों को निपटा सकते हैं, जो दिन में व्यस्तता के कारण वह नहीं कर पाते।
➤ यह अतिरिक्त समय उन लोगों के लिए कोहिनूर हीरे समान है जो पूरे दिन में अपने लिए कुछ खास वक्त नहीं निकाल पाते। इस समय को खुद को समर्पित कर के आप अपना मानसिक, भावनात्मक विकास कर सकते हैं।
➤ यदि आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, और समय के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो सुबह के यह कुछ घंटे आपके लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
➤ इसके साथ ही यदि आप योग व्यायाम आदि नहीं कर पाते हैं तो आप इस समय को ध्यान, योग - व्यायाम आदि के लिए निकाल सकते हैं।
यदि आप दिन में कुछ अधिक समय की अपेक्षा करते हैं तो भला सुबह के समय से अच्छा और क्या हो सकता है।
मित्रों, जब कभी भी आप सुबह बहुत जल्दी उठते हो तो आपने महसूस किया होगा कि उस दिन आप पूरे दिन तरोताज़ा, चुस्त व सक्रिय महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ देर तक सोते रहने से बाकी के समय भी आप सुस्त महसूस करते हैं।
मित्रों, यदि आप स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो सुबह जल्दी उठना आपको अपनी बीमारी से छुटकारा पाने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना इस प्रकार से की है, कि हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए।
यह नियम प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए बनाया है, मानव शरीर के लिए रात सोने के लिए और सुबह जागने के लिए बनाई गयी है। यदि हम इसके अनुरूप कार्य करेंगे, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन यदि हम इसके प्रतिकूल जाएंगे तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
आइये चलते-चलते जाने सुबह उठने के स्वास्थ्य संबंधी लाभों को :
✴ सुबह का समय व्यायाम करने के लिए बेहतरीन समय है। इस समय किया गया योग - व्यायाम और प्रणायाम सबसे अधिक फायदेमंद है।
✴ सुबह की प्रदूषण मुक्त ताजी और ठंडी हवा श्वास संबंधी विकारों, जैसे अस्थमा इत्यादि में राहत पाने के लिए बेहद कारगर है।
✴ यदि बात शरीर को विटामिन डी उपलब्ध कराने की आती है तो सुबह की धूप से अच्छा विकल्प और नहीं है। सबह की धूप शरीर पर लगाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है।
✴ सुबह का समय अवसाद, तनाव से ग्रसित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है। जो लोग मानसिक शांति चाहते हैं वह सुबह के समय सैर कर एवं प्रकृति के साथ समय बिता कर अपनी स्थिति में चमत्कारिक परिवर्तन देख सकते हैं।
मित्रों, आपने तेनालीराम की कई कहानियां सुनी होंगी। उनकी हाजिर-जवाबी और बुद्धिमता के किस्से घर-घर में मशहूर हैं। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो आपको गुदगुदाएगी भी, और एक महत्वपूर्ण सीख भी देगी।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अति उदार स्वभाव के थे। वह अपनी प्रजा की हर आवश्यकता पूरी करते थे। राजा के इसी उदार स्वभाव के कारण विजयनगर के ब्राम्हण बड़े ही लालची हो गए थे। वह हमेशा किसी ना किसी बहाने से अपने राजा से धन वसूल किया करते थे। एक दिन राजा कृष्ण देव राय ने उनसे कहा - "मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? " यह सुनते ही एक ब्राम्हण ने कहा- " यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम दान दें तो आपकी मां की आत्मा को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप ही पहुंच जाता है।" सभी ब्राह्मणों में ने इस पर हां में हां मिलाई।
राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों के इस प्रस्ताव से सहमत हुए। उन्होंने ब्राह्मणों को 108 सोने के आम दान कर दिए। इन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मौज हो गई। जब तेनालीराम को इस घटना की सूचना मिली, तब ब्राह्मणों के इस लालच पर उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन लालची ब्राह्मणों को सबक सिखाने की ठान ली।
जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई, तो 1 महीने बाद उन्होंने ब्राह्मणों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं । खाने-पीने और बढ़िया माल पानी के लालच में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर पर जमा हुए।
✴ जिस प्रकार रोग शरीर का छय करता है, उसी प्रकार क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।
✴ क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाता है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने से प्राणी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
✴ क्रोधी एवं अहंकारी व्यक्ति को दुनिया में कोई अधिक क्षति नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि यह 2 गुण ही उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त हैं।
✴ एक क्रोधी व्यक्ति में तीन गुण गौंण होते हैं - धैर्य, बुद्धि, एवं संवेदनशीलता। इन तीन गुणों के नाश के कारण उसकी सफलता, प्रतिष्ठा, एवं संबंधों का नाश हो जाता है।
✴ जब ज्ञान की वर्षा होती है, तब क्रोध की अग्नि धुआं बनकर उड़ जाती हैं। अतः ज्ञान अर्जित करें।
क्या आपने गौर किया है कि जिस दिन आप बहुत सुबह उठ जाते हैं, उस दिन आप तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं?
साथ ही सुबह के वातावरण में घूमने से एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुबह का समय बहुत अद्भुत होता है। यदि आप जल्दी उठते हैं, तो अन्य दिनों के मुकाबले आपके पास दिन के कुछ घंटे और बढ़ जाते हैं, जिसे आप सफलता पाने के लिए निवेश कर सकते हैं।
जी हां दोस्तों ऐसा बहुत कुछ है जो सुबह के समय करने से आप लाभान्वित हो सकते हैं। इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सुबह की वह पांच आदतें जो सफलता पाने में आपकी मदद कर सकते हैं :
कई बार ऐसा होता है कि कुछ चीजों या घटनाओं को लेकर हम इतना अधिक चिंतन मनन करने लगते हैं, कि वह विचार हमें परेशान करने लग जाते हैं। कभी कभार ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है, किंतु यदि आप हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर देर तक सोचनें लगे, तो यह आपके लिए समस्या बन जाएगी।
कुछ लोग तो इस आदत से इस तरह प्रभावित होते हैं, कि छोटी से छोटी चीज़ करने से पहले अनावश्यक ही हजारों बार सोचते हैं, और कुछ कर देने के बाद भी उस पर घंटों तक विचार करते रह जाते हैं। इस तरह अति अधिक सोचने से न जाने कौन-कौन से विचार मन में आने लगते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह व्याकुल हो जाता है। साथ ही, आपका आत्मविश्वास भी धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि आप हर कार्य को लेकर संशय में रहने लग जाते हैं।
इस आदत को छोड़ देना ही बेहतर होगा। लेकिन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने ही विचारों में उलझ कर रह जाते हैं। इसीलिए हम आपके लिए कुछ ऐसे बिंदु लेकर आए हैं, जिन पर गौर करने पर आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा सकते हैं :
दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि क्रोध के आवेश में आकर हम लड़ाई - झगड़े में कूद पड़ते हैं, लेकिन जब शांत दिमाग से इस बारे में सोचते हैं, तब हमें अपने कृत्य का पछतावा होता है।
केवल यही नहीं दोस्तों, झगड़े के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। बाद में पछताने से अच्छा है कि हम यह स्थिति आने ही ना दें। अक्सर ऐसी स्थितियों में हम समझ नहीं पाते की क्या उचित है, इसीलिए अंततः हम झगड़े में कूद पड़ते हैं। लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए कि जितना हो सके आप झगड़े को टाल सके, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।
दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही रोचक कहानी सुनाने वाले हैं। यह कहानी है दो बहनों, हल्दी और सोंठ की। हल्दी स्वभाव से परोपकारी और दयालु थी लेकिन सौंठ घमंडी और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह हमेशा अपनी बड़ी बहन हल्दी पर हुक्म जमाया करती थी। दिन यूं ही बीते रहे।
1 दिन दोनों बहनों के घर उनकी बूढ़ी नानी का संदेशा आया। बूढ़ी नानी ने अपनी मदद के लिए एक बहन को बुलाया था। संदेशा पढ़ते ही सौंठ समझ गई कि वहां जाकर उसे ढेरों काम करने पड़ेंगे, इसीलिए उसने तुरंत ही बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। जब हल्दी ने संदेश पढ़ा, वह तुरंत वहां जाकर उनकी सेवा करना चाहती थी। इसीलिए माता पिता की आज्ञा लेकर वहां अपनी नानी के घर के लिए निकल पड़ी।
रास्ते में उससे एक गाय दिखाई दी । हल्दी को देखकर उस गाय ने मदद के लिए उसे पुकारा। हल्दी तुरंत वहां गई और उसने गाय से पूछा कि उसे क्या कष्ट है। इस पर गाय ने कहा कि उसके आस पास बहुत सारा गोबर इकट्ठा हो गया है। तो क्या हल्दी इससे साफ कर देगी। हल्दी अपने परोपकारी स्वभाव के कारण तुरंत गाय की मदद के लिए मान गई और सारा गोबर साफ कर दिया। गाय बहुत प्रसन्न हुई । अब हल्दी ने गाय से विदा ली और आगे चल पड़ी। फिर उसे एक बेर का पेड़ दिखा जिसके आस पास बहुत से पत्ते बिखरे पड़े थे। हल्दी को वहां से गुजरता देख बेर ने भी उस से मदद मांगी, हल्दी ने उसके सभी बिखरे पत्तों को साफ कर दिया और बेर अति प्रसन्न हुआ। फिर कुछ दूर आगे बढ़कर उससे एक पर्वत दिखा जिसके आसपास कई ईट पत्थर थे। हल्दी ने पूरे मन से सभी ईंटों को साफ कर दिया और फिर नानी के घर की ओर चल पड़ी।
जीवन में कभी न कभी हम सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसे में इनसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कमज़ोर आर्थिक स्तिथि से निपटने के लिए आपको बहुत धैर्य एवं सकारात्मकता के साथ कदम बढ़ाने होंगे। हालातों से हार मान लेने से काम नहीं चलेगा। आपको इनसे उबरने के लिए अपने हौसले को बनाये रखना होगा। दोस्तों, भूले नहीं कि रात के बाद दिन ज़रूर आता है, इसी तरह दुःख के बाद सुख आना भी निश्चित है। तो आइये जानते हैं, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से आप किस तरह निपट सकते है :
✴ आवश्यकताओं को सीमित करें
जब आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तब आपको पैसे बचाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। आर्थिक हालत चरमरा जाने पर आवश्यकताएं तो उतनी ही रहती हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए पूंजी कम पड़ जाती है। ऐसे में सभी पैसे खर्च कर देना बुद्धिमानी नहीं होगी । अपनी जरूरतों को कम करें, पैसे केवल वहीं लगाएं जहां बहुत जरूरी है। जिसके बिना काम चलाया जा सकता है, उसमें पैसे खर्च ना करें ।
✴ केवल सोंचे नहीं, करें भी
हमारे पास पैसे नहीं है, अब क्या होगा क्या? क्या करना चाहिए? ऐसे सवाल मन में आने स्वभाविक हैं, लेकिन केवल इन पर सोचतें रहने से कुछ बदलने वाला नहीं है।आपको उस दिशा में काम करना होगा। अपनी माली हालत को वापस पटरी पर लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी, या फिर यह कहे कि दोगुना परिश्रम करना होगा। ऐसे में आलस्य का पूर्णतः त्याग कर दें । याद रखें कि आप आज काम करेंगे, तभी कल बेहतर होगा। फिर कभी आप ऐसी स्थिति में ना पहुंचें, इसके लिए कठोर परिश्रम कीजिए और सफल बनिए।
पेश है खेलकूद में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपाय:
☸ सही पोषण
खेलकूद में शारीरिक श्रम होता है। आप खेल के मैदान में अधिक देर तक टिके रहें, इसके लिए आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। यह ऊर्जा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से प्राप्त होती है। यदि आप स्वस्थ नहीं होंगे, तो खेल में बेहतर प्रदर्शन करना संभव नहीं है। इसीलिए आपको अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, अंडे, पनीर, अंकुरित बीज इत्यादि शामिल करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि आपका शारीरिक विकास सही ढंग से हो, और खेल में अधिक ऊर्जा की खपत को आप पूरा कर पाए।
☸ अभ्यास एवं प्रशिक्षण
हीरा जितना घिसा जाता है, उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार आप जितना अभ्यास करेंगे, उतना ही अपने खेल में अच्छे होते जाएंगे । केवल 1 दिन खेल लेने से आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। आपको निरंतर खेल के कौशल को निखारने की जरूरत है। खेल के मैदान में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको कड़ी मेहनत और अभ्यास करना होगा। जिन जगहों पर आप कमजोर हैं, अभ्यास करके उसे अच्छा करें। रोज कुछ घंटे अभ्यास के लिए निकालें। साथ ही एक अच्छे शिक्षक से बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकि आपको अपने खेल के सभी नियम, सभी बारीकियाँ समझ में आए और आपके अभ्यास को सही दिशा मिले।
☸ अनुशासन
खिलाड़ी का अनुशासित होना अत्यावश्यक है। बिना अनुशासित जीवन शैली के आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। अनुशासन आपको हर चीज में स्थापित करना होगा। कड़ी दिनचर्या का पालन करें, अभ्यास प्रतिदिन एवं समय पर करें, 1 दिन भी अभ्यास छूटने नहीं पाए, समय के पाबंद बनें, आज का काम खत्म करें, भोजन में अनुशासन रखें। तभी जाकर आप अपने खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे ।
दोस्तों, हम यह तो जानते हैं कि सकारात्मकता जब आवश्यकता से अधिक हो जाए, तब वह विषाक्त सकारात्मकता का रूप ले लेती है, जो कि हानिकारक है। हम कब इसके शिकार हो जाते हैं, पता भी नहीं चल पाता। यही नहीं, हमारे आसपास लोग इस से ग्रसित हैं, यह पहचानना भी मुश्किल है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम विषाक्त सकारात्मकता की उपस्थिति को पहचानें, और उसे खत्म करें । आइये जानते हैं विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण :
☸ यदि किसी समस्या के आ जाने पर आप उसका सामना नहीं कर पाते, और समस्या से भागने लगते हैं, लेकिन साथ ही आप खुद को और दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करते हैं आप बिल्कुल सकारात्मक हैं, पूरी तरह से ठीक हैं, तो यह विषाक्त सकारात्मकता का लक्षण है। इसीलिए अवलोकन करें कि कोई समस्या आपको अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही। यदि आप ऐसी स्थिति में भी केवल दिखावे के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसे तुरंत बदलें।
☸ यदि कोई व्यक्ति अधि तनावपूर्ण बातें नहीं सुन पाता, और हमेशा उनसे भागने की कोशिश करता रहता है, तो यह भी विषाक्त सकारात्मकता का ही 1 लक्षण है। ऐसे लोगों में यह डर होता है कि नकारात्मक बात सुनने से उनकी सकारात्मकता पर प्रभाव पड़ेगा, इसीलिए सबसे अच्छी बातें कहने को कहते हैं, और यदि कोई अपनी समस्या लेकर आए, तो वह उससे मुंह मोड़ लेते हैं।
☸ यदि कोई व्यक्ति बहुत ही बुरी परिस्थितियों में, जहां समस्या की गंभीरता पर बात करनी चाहिए, वहां भी "सब अच्छा है" ऐसा कहता रहता है, तो वह भी विषाक्त सकारात्मकता से ग्रसित है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मकता से समस्या को हल करने पर जोर नहीं देता, बल्कि सकारात्मकता के नाम पर उस समस्या को दबाने की कोशिश करता रहता है।
माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएं। बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई पर लगाएं, इसलिए माता-पिता अक्सर उनके खेल के समय में कटौती कर देते हैं । कई माता-पिता तो खेलकूद को केवल समय की बर्बादी मात्र मानते हैं। पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रेरित करना अच्छी बात है, पर उन्हें खेलकूद से दूर रखना आपकी भूल साबित हो सकती है।
कैसे?
इसका जवाब आपको नीचे लिखे बिंदुओं में मिलेगा। इस लेख में हम बच्चों के जीवन में खेलकूद के महत्व के बारे में बात कर रहे हैं। इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद आप की सोच जरूर बदल जाएगी, और आप स्वयं बच्चों को खेल के लिए प्रेरित करेंगे :
शारीरिक मजबूती
खेल बच्चों को मजबूत बनाते हैं। इससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता बढ़ती है, एवं वह अधिक सक्रिय रहते हैं। श्रम करने की आदत आगे जाकर उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, जिससे किसी भी काम को करने में शारीरिक कमजोरी उनके लिए बाधा नहीं बनेगी। खेल के दौरान गिरना एवं चोट लगना उनके दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक सहनशील बनाता है।
मानसिक विकास
भविष्य में जीवन के संघर्षों के सामने टिक पाने के लिए आवश्यक है कि बच्चे मानसिक रूप से भी मजबूत हो। खेल की रणनीति पर चिंतन - मनन बच्चों में बच्चे मानसिक श्रम करते हैं। खेल से मिली हार उन्हें चुनौतियों का सामना करने, एवं हार स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।
कभी नया लिखना होता है तो हम 10 बार सोचते हैं, क्या लिखें? कैसे लिखें? शुरू कैसे करें?
कभी-कभी आपके मन में किसी घटना के बारे में लिखने का विचार आता होगा। आप सहमत होंगे कि बोलना जितना आसान है, लिखना उतना नहीं क्योंकि लिखने का प्रभाव बोलने से अधिक स्थाई और प्रभावी होता है, परंतु शर्त यह है कि हमें प्रभावी ढंग से लिखना आए। जी हाँ, क्योंकि लेखन एक कौशल है। इस लेख में हम यही जानेंगे कि प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जा सकता है:
विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा
लिखित अभिव्यक्ति में हमें चाहिए कि विचारों को क्रमबद्ध करके अपने भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करें । स्वाभाविक और स्पष्ट लिखने का प्रयास करें। स्वच्छता, सुंदरता और सुडौल अक्षर का निर्माण, चौथाई छोड़कर लिखना, अक्षर, शब्द और वाक्य से वाक्य के बीच की दूरी को ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात्, लेखन सुंदर और शब्दों की वर्तनी शुद्ध हो। वाक्य की बनावट भी ठीक होनी चाहिए। साथ ही उसमें व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि ना हो। जो आप कहना चाहते हैं, वही अर्थ निकले और वही दूसरों तक पहुंचे।
दोस्तों, झिझक या शर्म हम सबों में होती है। किसी में अधिक, तो किसी में कम, लेकिन सब लोग कभी न कभी किसी न किसी स्थिति में शर्माते हैं। किंतु कुछ व्यक्ति तो ज्यादा लोगों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाते।
यह झिझक चिंता का कारण तब बनती है, जब यह आपके विकास में बाधा बन जाती है। तब, जब झिझक के कारण आपकी हानि होने लगे, पढ़ाई या नौकरी में आपका प्रदर्शन खराब होने लगे, या रोजमर्रा के कामों में भी परेशानी खड़ी हो जाए, तब आपको सजग हो जाने की आवश्यकता है। इसे इतना न बढ़ने दें कि आप कुछ भी करना चाहें तो शर्म के कारण पीछे हट जाए।
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह शर्म बीमारी का रूप ले लेती है, जिसे ऐरिथ्रोफोबिया कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति बात-बात पर शर्म आने लग जाता है। तो अपनी शर्म को खत्म करें, ताकि आप हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत प्रदर्शन कर पाएं।
आत्मविश्वास को बल दे :
झिझक का मुख्य कारण है खुद पर विश्वास की कमी। हम हमेशा खुद को कम करके आंकते हैं । हमें लगता है कि हम में कुछ भी अच्छा नहीं है, और सामने वाले हम पर हसेंगे। पर यह केवल आपकी सोच है। सच्चाई ऐसी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें और हीन भावना मन में ना आने दे। अपनी कमजोरियों को भी आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करें, और अपनी क्षमताओं पर भी भरोसा रखें। यह मानें कि आप अपने आप में खास हैं।
हर कोई चाहता है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए, लोगों के बीच पसंदीदा बने। जब भी हम किसी से मिलते हैं, तो किसी न किसी रूप में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लोगों के ऊपर अपनी छाप छोड़ना एक कला है जो सबको नहीं आती। आप सोचते होंगे कि कैसे कुछ लोग भीड़ में इतने अलग दिखते हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
मित्रों! कुछ लोगों में यह गुण पहले से होता है, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, और कुछ लोग इसे अपने अंदर विकसित करते हैं। आप भी इस कला को सीख सकते हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे आप खुद को भीर से अलग दिखा सकते हैं I
पहनावे पर ध्यान देना
लोगों की नजर में जो सबसे पहली चीज आती है, वह है आपकी वेशभूषा। अच्छे दिखने वाले व्यक्ति पर स्वतः ही लोगों का ध्यान केंद्रित हो जाता है। किंतु यहाँ अच्छे दिखने का तात्पर्य सुंदर दिखने से नहीं है।
खुद को साफ रखें, वह कपड़े पहने जिन्हें आप पूरे आत्मविश्वास के साथ वहन कर सकें, और जो आपके व्यक्तित्व को निखारे।
बेहतरीन संचार कौशल
अच्छे पहनावे से जितनी जल्दी लोगों का ध्यान आप पर केंद्रित होता है, खराब बातचीत के ढंग से उतनी ही जल्दी लोग आपसे मुंह मोड़ लेते हैं। लोगों को प्रभावित करने के लिए जरूरी है कि आपकी बातें उन्हें आपकी तरफ आकर्षित करें। इसके लिए संचार की बारीकियों पर ध्यान दें। शुद्ध एवं साफ भाषा का प्रयोग करें, आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, आवाज़ के उतार चढ़ाव पर ध्यान दें, शारीरिक हाव-भाव का ख्याल रखें, और बात करते समय आई कांटैक्ट बना कर रखें।
दिन भर सोते रहना कितना अच्छा लगता है ना !
हम उन दिनों की कल्पना करते हैं, जब हम सिर्फ आराम करें। न जाने कितने ही कामों को न करने की इच्छा के कारण हम बहाने बना लिया करते हैं। यह अनिच्छा ही आलस्य है, जिसे हमारे शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आइए इस श्लोक को पढ़ें :
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्
आधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्
अर्थात आलस करने वाले को विद्या कहां? जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहां? निर्धन व्यक्ति के पास मित्र कहां? और मित्र के बिना सुख कहां?
इसीलिए आप भी सावधान हो जाएं, और आलस करना छोड़ें।
उपाय :
अनुशासन में रहें और नियम बनाएं
आलस को खत्म करने के लिए आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। खुद के लिए कड़े नियम बनाएं, और उन नियमों को तोड़ने की इजाजत खुद को ना दें। मन के बहकावे में बहकने से खुद को रोकें, और मन ना होने पर भी किसी भी काम को नजरअंदाज ना करें।
नियम टूटने पर सजा के लिए तैयार रहें
खुद के बनाए नियम तोड़ना आसान है, क्योंकि आपको सजा देने वाला कोई नहीं होता। हम बड़ी आसानी से तय किए गए नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं इसीलिए नियमों के साथ सजा भी तय करें। जब भी नियम टूटें, तो खुद को कड़ा दंड दें। इससे आपको ना चाहते हुए भी आलस को त्यागना ही होगा।
खुद को सक्रिय बनाएं
ऐसी क्रियाओं में स्वयं को संलग्न करें, जिनमें आपकी सक्रियता बढे। सुबह दौर लगाएं, शारीरिक कार्य करें, खेल खेले इत्यादि। इससे आपकी आलसी प्रवृत्ति बदलेगी और आप सक्रिय हो पाएंगे।
दृढ़ संकल्प
बिना दृढ़ संकल्प के आपके सारे प्रयास निरर्थक रह जाएंगे। इसीलिए मन में ठान लीजिए, कि आपको आलस छोड़ना है। साथ ही बीच-बीच में स्वयं को इस दिशा में बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें।
आजकल हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग का शिकार है। पहले की तुलना में अब लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं। यहां तक कि नवजात शिशु भी जन्म के साथ ही जॉन्डिस, निमोनिया जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। यदि आज से कुछ दशक पहले की तस्वीर देखी जाए, तो लोग अधिक स्वस्थ हुआ करते थे, और कहीं अधिक लंबा जीवन जिया करते थे। स्वास्थ्य के स्तर में इतनी गिरावट का सबसे मुख्य कारण है बदलती जीवनशैली।
आधुनिक जीवनशैली उपकरणों से घिरी हुई है। हम प्रकृति से दिन-ब-दिन दूर होते जा रहे हैं।
घर में पेड़ पौधे नहीं, बल्कि मोबाइल फ्रिज जैसे ढेरों उपकरण हैं। सूर्य एवं चंद्रमा की रोशनी छोड़ हम बनावटी लाइटों के बीच रहते हैं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ हमारा भोजन हैं, कच्चे फल सब्जियों की जगह हम जंक फूड खाना पसंद करते हैं, व्यायाम की जगह स्थूल जीवन शैली के हम आदी हो गए हैं, यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और जिस जल को ग्रहण करते हैं, वह भी शुद्ध नहीं है। ऐसे में कैसे स्वास्थ्य की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है?
अपने आसपास देखिए। प्रकृति है?
नहीं!
जिस प्रकृति का हम हिस्सा हैं, जिसने हमें बनाया है, उससे दूर होकर हम कैसे ठीक रह सकते हैं ? अपने शरीर की संरचना को समझिये। यह मशीनों के लिए नहीं बनी है। इसीलिए स्वस्थ रहना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है, जब तक आप खुद को प्रकृति से नहीं जोड़ेंगे।
यह सच है कि आप पूरी तरह से आधुनिकता के इस मशीनी माहौल से नहीं बच सकते हैं, लेकिन अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो आप कर सकते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति की गोद में फिर से लौटने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं:
आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा, कि कुछ बच्चे कम पढ़कर भी अच्छे अंक कैसे ले आते हैं?
जबकि कुछ बच्चे जी तोड़ मेहनत करते हैं, पर उनके अंक उस मेहनत के अनुरूप नहीं होते। जब बच्चे साल भर पूरी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, और तब भी उनके अंक संतोषजनक नहीं होते, तब उनका मनोबल टूट जाता है। वह बहुत निराश हो जाते हैं। ऐसे में बच्चे तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। बच्चों के कोमल मन पर निराशा की यह छाया नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह नन्हे फूल मुरझा जाएंगे।
इस स्थिति में फंसे बच्चों की मदद करने के लिए आज के लेख में हम बताने जा रहे हैं, कि आपको अच्छे अंक लाने के लिए कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है :
☸ सबसे पहली सीख, रटे नहीं, कंठस्थ करें।
रटंत विद्या बहुत हानिकारक है। बिना भावार्थ समझें केवल शब्दों या वाक्य को याद कर लेने से आपके ज्ञान में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी चीजें आपको बस कुछ समय तक ही याद रहती है। इस तरह से याद करने वाले बच्चे, तब पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जब सवाल थोड़ा भी घुमा दिया जाता है। क्योंकि आपने जो रट लिया, आपको बस उतना ही आता होता है। इसीलिए याद रखे बच्चों, आप जो भी पढ़ रहे हैं, उससे रटे नहीं, बल्कि समझे कि पाठ में आपको क्या समझाया जा रहा है। एक बार जब विषय वस्तु आपके समझ में आ जाएगी, तब आप उससे संबंधित प्रश्नों को हर तरह से हल कर पाएंगे ।