Pallavi Thakur
657 अंक
Motivator
अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेर कर संजो लीजिए!
नमस्कार! मैं आकाशवाणी की युवा कलाकार हूँ। लेखन एवं हिंदी भाषा में मेरा अत्यधिक रुझान है। इस रुचि को एक ब्लॉगर के रूप में साकार करने के की कोशिश है।
नमस्कार मित्रों ! आप अपने जिस सवाल का जवाब ढूंढते हुए इस लेख तक आए हैं, उसका जवाब आपको जरूर मिलेगा।
जी हां ! आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। हम जानते हैं कि आप अपने जीवन में किसी न किसी डर से परेशान हैं और उस पर काबू पाकर उसे हराना चाहते हैं। अपने डर पर जीत हासिल करने का आपका यह फैसला काबिले तारीफ़ है और आपके इसी हौसले को आगे बढ़ाने के लिए हमने यह लेख लिखा है।
तो आइए सबसे पहले बात करें कि डर आखिर है क्या?
मित्रों, मनुष्य के अंदर कई सारी भावनाएं होती हैं जैसे - प्रेम, क्रोध, दया, ममता, करुणा, साहस, सहानुभूति इत्यादि।
इसके अलावा डर भी ऐसी ही एक भावना है। यदि कोई आपका इस बात को लेकर मजाक उड़ाता है कि आप बहुत डरते हैं, और वह व्यक्ति किसी भी चीज से नहीं डरता, तो सबसे पहले यह समझ लीजिए कि उनकी धारणा बिल्कुल गलत है।
दुनिया में ऐसा कोई जीव नहीं है जिसके अंदर डर की भावना ना हो। डर का होना अस्वाभाविक नहीं, बल्कि स्वाभाविक बात है क्योंकि यह मनुष्य की प्रकृति है कि वह किसी न किसी चीज़ से डरता है।
मित्रों, भय या डर मनुष्य की सबसे शक्तिशाली भावनाओं में से एक है। इसका हमारे शरीर एवं मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम रोज़मर्रा की जिंदगी में ऐसी कई परिस्थितियों का सामना करते हैं जब हमारे अंदर यह भावना विकसित होती है, जैसे कहीं आग लग जाना, आपदा का आना, चोट लग जाना, असफल हो जाना या किसी प्रियजन को खो देना।
इन सब परिस्थितियों में हमारे अंदर भय का विकास होता है जिसके कारण हम तनाव ग्रस्त और घबराहट महसूस करते हैं। मित्रों, भय एक समान्य प्रतिक्रिया है जो हमारे शरीर को किसी नुकसान से सावधान और सतर्क होने की चेतावनी देती है। क्योंकि यह सामान्य मानवीय भावना है जो कि प्राकृतिक रूप से सभी मनुष्यों के अंदर पाई जाती है, इसीलिए आपके शरीर में डर की उपस्थित होना कोई बुरी बात नहीं है।
लेकिन किसी भी चीज़ की अति, अर्थात किसी भी चीज़ का जरूरत से ज्यादा होना बुरा होता है। इसी तरह डर हमारे लिए समस्या तब बन जाता है जब यह जरूरत से ज्यादा प्रबल होने लगे।
यदि आपके साथ भी यही समस्या है और आपका डर आप पर हावी हो जाता है तो जरूरत है कि आप इस पर नियंत्रण साधे। आज का लेख इसी विषय पर आधारित है और इस लेख में उन सभी क्षेत्रों की चर्चा की गई है जिनका संबंध डर से है।
मित्रों, इस लेख में ना सिर्फ हम डर के कारणों व उनके हल की चर्चा करेंगे, बल्कि हम इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषण करेंगे जिससे आप हर उस बारीकी को जान पाए जो डर को हरा पाने के लिए आवश्यक है।
इस लेख में आपको अपने हर सवाल का जवाब मिलेगा और आपको यह रणनीति भी पता चलेगी कि डर को हराने के लिए किस प्रकार और किस दिशा में काम करना होगा। तो आइये जानें डर को खत्म करने की रण नीतियाँ :
✴ अपने डर को समझे :
डर का सामना करने और उस पर जीत हासिल करने के क्रम में यह सबसे पहला और सबसे मुश्किल चरण है, लेकिन वहीं यह सबसे जरूरी भी है।
आप तब तक डर से ऊबर नहीं सकते जब तक वह आपके अवचेतन मन के किसी कोने में पड़ा रहेगा। आपको अपनी चेतना का इस्तेमाल करते हुए सबसे पहले अपने डर के क्षेत्रों, उसके कारणों और फिर लक्षणों को समझना होगा।
इन सब बातों का अवलोकन करने के बाद आपको यह पता चल जाएगा कि अपने डर का सामना करने और इस पर विजय प्राप्त करने के लिए आपको कौन सी रणनीति का पालन करना है।
साथ ही यह जान लेने के बाद कि भय पूर्ण परिस्थिति में आपके शरीर के अंदर कौन-कौन से लक्षण विकसित होते हैं आप अगली बार से बेहतर रूप से इस पर नियंत्रण कर सकेंगे। इसलिए डर को वैज्ञानिक रूप में समझें। ऐसा करने के लिए आपको तीन चरणों में काम करना होगा।
पहला चरण है :
1 ) किन परिस्थितियों में आपको डर लगता है :
हर व्यक्ति की प्रकृति और व्यक्तित्व अलग होती है। इसीलिए हर व्यक्ति के लिए भय के कारण भी अलग-अलग होते हैं। कुछ लोग नए लोगों से मिलने से डरते हैं, तो कुछ लोग सबके सामने बोलने से डरते हैं। कुछ लोग ऊंचाई या गहराई से डरते हैं, तो कुछ अंधेरे से।
इस प्रकार हर व्यक्ति के लिए डर के मायने अलग अलग होते हैं। अब आपको इस बात का अवलोकन करना होगा कि किन परिस्थितियों में आप डर जाया करते हैं। कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है जब हमारा मन शंका, घबराहट से भर जाता है लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि ऐसा किस कारण से होता है।
हो सकता है कि आपके शरीर की यह प्रतिक्रिया डर के कारण हो। इसीलिए आपको बड़ी गहराई से यह देखना होगा कि किस-किस चीजों से आप को डर लगता है।
2 ) डर लगने का कारण क्या है :
एक बार जब आपने यह जान लिया है कि आपको किन परिस्थितियों और किन चीजों से डर लगता है, तो अब दूसरा चरण है यह जानना कि आखिर आप क्यों डरते हैं ?
वह कौन सी बात है जो आपको विचलित कर रही है। उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि आप सबके सामने बोलने से डरते हैं। सार्वजनिक जगहों पर बोलना आप का डर है। तो अब यह पता लगाएं कि आपका यह डर आखिर किस बात से आता है?
क्या आप अपनी क्षमता और वाक कौशलों को लेकर शंकित हो जाते हैं? या आपको लगता है कि श्रोता आपको सुनकर कहीं आप का मजाक तो नहीं उड़ाएंगे, आप इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग आपकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे? या फिर आप यह सोचते हैं कि आप सब की अपेक्षाओं पर खड़े नहीं उतर पाएंगे?
इन सभी में से कोई तो एक ऐसी वजह होगी जो आपके भय का कारण हो। इसी तरह इस उदाहरण की भांति अपने डर के क्षेत्रों में सभी कारणों को लागू करें और पता लगाएं कि आपके लिए कौन सा कारण वैध है। इन सभी कारणों में से जो भी आपके डर का कारण हो उसे जान लेने के बाद आप उसे खत्म करने के हल को बेहतर ढंग से ढूँढ पाएंगे।
3) लक्षणों का पता लगाना :
मित्रों, एक बार जब आपने डर का कारण जान लिया हो तो अब अगला चरण है उसके लक्षणों को पहचानना। इसका मतलब यह है कि जब भी आप तनावपूर्ण परिस्थितियों में जाते हैं, जहां आपका सामना आपके डर से होता है, तब शारीरिक और भावनात्मक रूप से आपके अंदर क्या क्या बदलाव आते हैं।
इन लक्षणों को पहचानना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि तभी आप इन्हें नियंत्रण में कर पाएंगे।
मित्रों, कुछ लक्षण शारीरिक होते हैं, जैसे कि पसीने का आना, हाथ और पांव का थरथराना, कुछ ना बोल पाना, आवाज का लड़खड़ाना, गला सूखना या अत्यधिक प्यास लगना।
वहीं दूसरी ओर कुछ लक्षण भावनात्मक होते हैं अर्थात वह दिखाई नहीं देते हैं। जैसे मन का निराश हो जाना, अत्यंत दुखी हो जाना, रोना आने लगना या तबीयत का खराब महसूस होना।
हर व्यक्ति में अलग-अलग लक्षण दिखते हैं। इनमें से कुछ लक्षण तो सामान्य और नज़र अंदाज़ करने लायक होते हैं, किंतु कुछ लक्षण अत्यंत प्रबल और गंभीर होते हैं। इसीलिए आपको बहुत समय देकर, बहुत धैर्य के साथ गहराई से अवलोकन करना होगा कि आपके अंदर कौन-कौन से लक्षण विकसित होते हैं और अगली बार जब भी आपको यह लक्षण दिखाई पड़े तो उसी वक्त सतर्क हो जाएं।
✴ डर का सामना करें :
अपने डर के कारण और लक्षणों को भली - भाँति जान लेने के बाद अब बारी आती है उनसे निपटने की।
केवल लक्षण जान लेना पर्याप्त नहीं है। उन लक्षणों को जड़ से खत्म करना आवश्यक है। इसीलिए डर को हराने के लिए जितना जरूरी उसे गहराई से समझना है, उतना ही जरूरी है उसका सामना करना । जब तक आप अपने डर का सामना नहीं करेंगे, तब तक आप इसके प्रभाव से खुद को मुक्त नहीं कर पाएंगे।
मित्रों, अत्यधिक भय तब लगता है जब यह आप पर हावी होने लगता है। यहाँ आपको स्थिति बदलनी है और अपनी भावनाओं के मुकाबले आपको अपना प्रभुत्व बनाए रखना है। याद रखें आप भावनाओं पर नियंत्रण करते हैं भावनाएं आपको नियंत्रित नहीं करती हैं।
ऐसा करने के लिए बजाय इसके कि आप परिस्थितियों से भागे, आपको उन परिस्थितियों में जाना होगा जहां आप तनाव ग्रस्त, डर, शंका व घबराहट महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया शुरुआत में बहुत तनावपूर्ण हो सकती है और आप काफी असहज भी महसूस कर सकते हैं लेकिन यह कदम उठाना बहुत जरूरी है।
उदाहरण के रूप में अंधेरे में रखी हुई रस्सी सांप की तरह दिखाई देती है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो कोई सांप हो और हम यह देख कर डर जाते हैं। जब तक हम उस रस्सी को अंधेरे में दूर से देखते रहेंगे तब तक वह हमें सांप की तरह दिखाई देती रहेगी और हम डरते रहेंगे।
हमारा डर तब ही खत्म होगा जब हम उस रस्सी के पास जाकर खुद जांच करेंगे। एक बार जब हमें पता चल जाता है कि वह कोई सांप नहीं बल्कि समान्य सी रस्सी है, तब हमारा डर स्वतः ही खत्म हो जाता है।
मित्रों, यही मूलभूत प्रक्रिया है जो कि हर प्रकार के भय पर लागू होती है। इसीलिए बहुत जरूरी है कि आप उन चीजों में हाथ आजमाएं जिन्हें आप करने से डरते हैं, चाहे आप का प्रदर्शन कैसा भी हो।
हो सकता है आप का प्रदर्शन खराब या बहुत ही खराब हो और आप हंसी या मजाक का पात्र बनें। लेकिन ऐसा केवल एक बार या दो, या तीन बार होगा। अगली बार जब आप फिर से स्वयं को उस परिस्थिति में डालेंगे तो आपका डर पहले की तुलना में बहुत कम या फिर पूरी तरह खत्म हो चुका होगा।l
पहले जहां आप असहज, शंकित और भयभीत महसूस करते थे वहां आप स्वयं को सहज, आत्मविश्वासी पाएंगे। तो आशा है कि अब आप यह समझ चुके होंगे कि हम परिस्थितियों से नहीं डरते हैं, बल्कि केवल उनका सामना करने से डरते हैं।
हमारा डर खत्म इसीलिए नहीं होता क्योंकि हम अपने डर का सामना ही नहीं करते, बस हर पल उससे भागते रहते हैं। लेकिन जब आप इस बात को समझ जाएंगे कि डर सिर्फ तब तक ही लगता है जब तक आप उस परिस्थिति में पहुंच न जाए, तब आप अपनी इस भावना पर बहुत अच्छी तरह से काबू पा सकेंगे।
✴ विश्वास की क्रिया विधि को समझें :
मित्रों, डर की भांति विश्वास भी इंसानी मस्तिष्क की एक प्राकृतिक भावना है। यह भावना इतनी प्रबल और इतनी शक्तिशाली है कि हम जिस चीज़ पर विश्वास करते हैं असल जिंदगी में वही हो जाता है।
यह सिर्फ सुनी सुनाई बातें नहीं, बल्कि विज्ञान द्वारा साबित की जा चुकी हैं। मस्तिष्क का मनोविज्ञान पूरी तरह से विश्वास के नियमों पर आधारित है और इन्हीं नियमों से संचालित होता है।
जब भी हमारे जीवन में कुछ अच्छा होता है तो उसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे विचारों, अर्थात हमारे विश्वास का होता है। जब हम अच्छा सोचते हैं तो असल जिंदगी में भी अच्छा हीं होता है। लेकिन जब हम अपने डर के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तब हमारा मस्तिष्क नकारात्मकता से भर जाता है। हम अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं पर इस प्रकार शांकित हो जाते हैं कि हम सभी नकारात्मक बातों पर विश्वास कर बैठते हैं।
मान लेते हैं कि आप सबके सामने बोलने से डरते हैं क्योंकि आपके अंदर यह डर है कि आप सबके सामने जाकर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। यह आपके मन में भय के कारण उपजा एक विचार है, जिस पर आप विश्वास कर लेते हैं। इसीलिए जब आप सबके सामने बोलने जाते हैं तो आप का प्रदर्शन खराब हो जाता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस मामले में अच्छे नहीं है या आपके बातचीत का कौशल अच्छा नहीं है। आप बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं, बावजूद इसके आप अच्छा प्रदर्शन इसीलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि आपने अपने मन में यह धारणा और विश्वास स्थापित कर लिया है कि आप से कोई गलती जरूर होगी। और परिणाम स्वरूप ऐसा हीं होता है।
भय के प्रभाव में आई आपके मन की यह भावना इतनी प्रबल होती है कि आपका अवचेतन मन इसी पर विश्वास कर लेता है और असल जिंदगी में इसी को सच बना देता है। यह सब विश्वास का खेल है। याद रखें, नकारात्मक विचार असल जिंदगी में नकारात्मक परिस्थितियाँ पैदा करते हैं और सकारात्मक विचार सकारात्मक परिस्थितियाँ।इसीलिए आपको इस बारे में बहुत सतर्क रहना होगा कि आप किन बातों और नियमोंपर विश्वास कर रहे हैं।
कई बार ऐसा होता है कि हम यह ठान लेते हैं कि हम अपने आप पर पूरा विश्वास रखेंगे लेकिन जैसे ही हमारे अंदर डर विकसित होने लगता है हमारा विश्वास नकारात्मकता की ओर झुक जाता है।
आपको इसी पर नियंत्रण साधने की आवश्यकता है। चाहे आप का डर आपको कितना भी नकारात्मक होने को क्यों ना कहे, आपको अपने मन में यह विश्वास बनाए रखना है कि आप बेहतर हैं और आप बेहतर कर सकते हैं।
यहां एक और बात समझी जानी चाहिए कि विश्वास की क्रिया विधि और संचालन प्रक्रिया को अपने नियंत्रण में करने की प्रक्रिया में आपको कुछ समय लग सकता है। हो सकता है एक या दो बार आपके द्वारा मन में बनाया हुआ विश्वास सफलतापूर्वक निष्पादित ना हो सके, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह प्रभावशाली नहीं है। यह कुछ समय अवश्य लेगा इसीलिए आपको हार नहीं माननी है।
✴ तत्काल उपाय :
विश्वास का मनोविज्ञान और उसकी कार्यविधि आपके अंदर धीरे-धीरे विकसित होगी। लेकिन आपके पास कुछ तत्काल उपाय भी होने चाहिए जिन्हें आप तुरंत ही लागू कर सकें और अपने डर को कम कर सकें। इसीलिए अगली बार जब भी आपको ऐसा लगे कि आपके मन के अंदर डर के भाव विकसित हो रहे हैं और धीरे-धीरे आप पर हावी हो रहे हैं, तब खुद को शांत करें और गहरी साँसे ले।
मित्रों, श्वास का हमारे शरीर एवं हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। गहरी सांसे लेने से हमारे शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचता है जिससे रक्त का प्रवाह बेहतर होता है और शरीर की सभी कोशिकाएं अधिक सक्रिय होती हैं।
इससे व्यक्ति पहले से कहीं बेहतर महसूस करता है और उसके सोचने और समझने की क्षमता में वृद्धि होती है। इसीलिए कम से कम 5 मिनट तक गहरी सांसे अंदर भरे और छोड़े।
इसके अलावा आप एक और उपाय अपना सकते हैं । आप उल्टी गिनती भी कर सकते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कि भला गिनती का डर से क्या संबंध है ?
मित्रों, यह एक तरीका है खुद को शांत करने का। जब भी हमें डर लगता है तब हम सकारात्मकता और नकारात्मकता के युद्ध के बीच में फंस जाते हैं। एक तरफ हम सकारात्मक होने की कोशिश करते हैं, तो वहीं डर हमारे मन में नकारात्मक विचारों का बीजारोपण करता रहता है।
इस प्रकार मस्तिष्क अव्यवस्थित हो जाता है और मन विचलित होने लगता है। स्वाभाविक सी बात है कि जब आपके मन के अंदर इतनी हलचल चल रही हो तो आप सामान्य नहीं रहते है।
ऐसे में यह समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि किस प्रकार परिस्थिति का सामना किया जाए। इसीलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति में आप खुद को शांत बनाए रखें जिसके लिए उल्टी गिनती का सहारा लेना अच्छा विकल्प है। इसीलिए 10 से लेकर 1 तक उल्टी गिनती धीरे-धीरे करें। इसके साथ अपनी आंख बंद कर ले और अपना पूरा ध्यान अपनी गिनती पर केंद्रित कर ले। जब 10 सेकंड बाद आप अपनी आंखों को खोलेंगे तो आप खुद को पहले की तुलना में ज्यादा शांत और स्थिर पाएंगे।
✴ पूर्वाग्रह की आदत को त्याग दें :
दोस्तों, बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते हैं कि हर काम सोच समझ कर करना चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यदि आप अत्यधिक सोचने लगे तो यह आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है ?
जी हां ! अत्यधिक सोचने की आदत पूर्वाग्रह को जन्म देती है। पूर्वाग्रह का अर्थ होता है किसी भी चीज़ के बारे में पहले से ही राय बना लेना। इसका मतलब है कि आप किसी चीज के बारे में इतना अधिक सोचने लग जाते हैं कि आप उन चीजों की भी कल्पना कर लेते हैं जो अस्तित्व में नहीं होती हैं।
यह डर का एक बहुत बड़ा कारण है। जब भी हम ऐसी परिस्थितियों में जाते हैं, तब हम अत्यधिक सोचने लगते हैं जिसके कारण हमारा डर बढ़ता ही जाता है। हमें ऐसा करने से हमेशा बचना चाहिए। इसकी जगह आपको उतना ही सोचना चाहिये, जितना कि आवश्यक हो।
फिर आगे जो होगा देखा जाएगा। आप ही सोचिए भला उस अत्यधिक सोच-विचारने का क्या फायदा जिसके कारण आपका मन उस शंकित व भयभीत हो जाए?
इसीलिए यदि आप डर को हराना चाहते हैं, तो पूर्वाग्रह को खत्म करना और अत्यधिक सोचने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है। तो आज से ही इस दिशा में काम करना शुरू कर दें।
✴ आत्मविश्वास सबसे बड़ा शस्त्र :
मित्रों, आत्मविश्वास सिर्फ सफलता की कुंजी ही नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में हर उपलब्धि की कुंजी है। इस लेख में आप पढ़ चुके हैं कि डर लगने का कारण आपकी शंकाएं होती हैं। मन शंकित तभी होता है जब हम अपनी क्षमताओं को लेकर आश्वस्त नहीं होते हैं।
यह और कुछ भी नहीं बल्कि आत्मविश्वास की कमी है।
मित्रों, आत्मविश्वास का अर्थ है स्वयं पर विश्वास। और आप यह भी कह सकते हैं कि आत्मविश्वास और डर एक दूसरे की दुश्मन है क्योंकि जहां डर है, वहां आत्मविश्वास नहीं और जहां आत्मविश्वास है, वहां डर की कोई गुंजाइश नहीं होती।
आप ही सोचिए यदि आप स्वयं को लेकर बिल्कुल आश्वस्त रहेंगे तो फिर आपको डर किस बात का लगेगा?
आपको यह भरोसा होगा कि यदि आप सबके सामने बोलेंगे या सार्वजनिक रूप से कोई काम करेंगे तो वह अच्छा होगा क्योंकि आपको अपनी क्षमताओं पर विश्वास है। ऐसी स्थिति में डर लगने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसीलिए मित्रों डर को हराने के लिए आत्मविश्वास एक बहुत बड़ा अस्त्र है।
आपने देखा होगा कि ऐसे लोग जो आत्मविश्वासी नहीं होते हैं, वह भयभीत, दब्बू और उदासीन किस्म के होते हैं। वहीं दूसरी ओर आत्मविश्वासी व्यक्ति ऊर्जा, साहस और उत्साह से भरा हुआ होता है। आपको भी ऐसा ही बनना है।
आत्मविश्वास विकसित करने के लिए आपको अपने कौशलों को निखारना होगा, जिसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। साथ ही आप जैसे हैं, खुद को वैसे ही स्वीकार करें। अपनी कमियों पर नहीं, बल्कि अपनी श्रेष्ठताओं पर पर ध्यान दें और उनके बारे में अच्छा महसूस करें।
इसके साथ ही स्वयं की तुलना दूसरों से करना छोड़े और इस बात को समझे कि हर व्यक्ति अपने आप में अलग और अनोखा होता है। दूसरों से तुलना करने से आपका मनोबल कम होता है। ऐसा करना छोड़ दे। दूसरों की क्षमताओं को भी गले लगाएं और अपनी प्रतिभाओं की भी सराहना करना सीखें।
इसके अलावा आप बाहर से भी कुछ बदलाव कर सकते हैं, जैसे वह कपड़े पहने जिसमें आप सहज महसूस करते हो, खुद को साफ रखें जिससे आप दूसरों के सामने जाने में कोई झिझक ना महसूस करें। नए लोगों से मिलना जुलना शुरू करें और उनसे बातें करें ताकि आपकी झिझक दूर हो और खुद से ढेर सारा प्यार करें।
बस इतना सा करके देखिए और कुछ ही समय में आप अपने आप को बिल्कुल बदला हुआ पाएंगे।
निष्कर्ष :
तो प्रिय पाठकों, यह था आज का लेख। संक्षिप्त रूप में कहे तो डर पर जीत हासिल करने के लिए आपको सबसे पहले उसे समझना होगा और फिर उस से निपटने के लिए उपायों को लागू करना होगा। आपकी डर से यह लड़ाई प्रभावी हो इसके लिए हमने हर एक बिंदु पर विस्तार से वर्णन किया है ताकि आपके मन में कोई भी शंका ना रह जाए।
इस लेख को पढ़ने के बाद अब वक्त आ गया है कि आप अपने जीवन में डर के साथ लड़ाई शुरू करें और इस में विजयी बने। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है । उसी प्रकार आप भी अपने डर पर शत-प्रतिशत काबू पा सकते हैं। आवश्यकता है नियमितता की।
कई बार आपको ऐसा लग सकता है कि आपकी कोशिशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। किंतु आप हार ना माने और ना ही अपने प्रयासों पर पूर्ण विराम लगाएं। नियमित रूप से अपने प्रयासों को जारी रखें और आप देखेंगे कि धीरे-धीरे डर, उनके कारण व लक्षण सभी समाप्त होते जा रहे हैं।
तो आशा है कि यह लेख आपके लिए प्रेरणा का स्रोत बना होगा। यूं तो इस लेख में हमने आपकी सभी शंकाओं का निदान करने का प्रयास किया है लेकिन फिर भी यदि आपके मन में कोई प्रश्न हो तो आप पोस्ट के माध्यम से हमसे जरूर पूछ सकते हैं।
इसी के साथ यदि इस लेख से जुड़ी कोई राय आपके मन में हो तो उसे हमारे साथ साझा करना बिल्कुल ना भूलें। हमें आपके पोस्ट का इंतजार रहेगा।
पोस्ट
सुबह मिलेगा समय चुराने का अवसर !
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने !
समय चुराने का तात्पर्य किसी और के समय को चुराना नहीं है, बल्कि दिन के 24 घंटों में से उस समय का उपयोग करना है जिसे आप यूं ही गवा रहे हैं। यदि आपने बेकार हो रहे समय का इस प्रकार उपयोग कर लिया तो ऐसी स्थिति में आपके पास उस व्यक्ति की तुलना में अधिक समय होता है जो देर तक सोते रहता है।
यदि आप सुबह 8:00 बजे के स्थान पर 5:00 बजे ही उठ जाते हैं, तो सामान्य दिनों की तुलना में आपके पास उस दिन 3 घंटे अधिक होंगे। अब सोचिए कि इन तीन घंटों में आप कितने कार्यों को निपटा सकते हैं।
➤ यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह 3 घंटे आपके लिए अमूल्य होंगे। आप इस समय में अपनी पढ़ाई का बड़ा हिस्सा कवर कर सकते हैं।
➤ कामकाजी लोग इन 3 घंटों में उन कामों को निपटा सकते हैं, जो दिन में व्यस्तता के कारण वह नहीं कर पाते।
➤ यह अतिरिक्त समय उन लोगों के लिए कोहिनूर हीरे समान है जो पूरे दिन में अपने लिए कुछ खास वक्त नहीं निकाल पाते। इस समय को खुद को समर्पित कर के आप अपना मानसिक, भावनात्मक विकास कर सकते हैं।
➤ यदि आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, और समय के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो सुबह के यह कुछ घंटे आपके लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
➤ इसके साथ ही यदि आप योग व्यायाम आदि नहीं कर पाते हैं तो आप इस समय को ध्यान, योग - व्यायाम आदि के लिए निकाल सकते हैं।
यदि आप दिन में कुछ अधिक समय की अपेक्षा करते हैं तो भला सुबह के समय से अच्छा और क्या हो सकता है।
मित्रों, जब कभी भी आप सुबह बहुत जल्दी उठते हो तो आपने महसूस किया होगा कि उस दिन आप पूरे दिन तरोताज़ा, चुस्त व सक्रिय महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ देर तक सोते रहने से बाकी के समय भी आप सुस्त महसूस करते हैं।
मित्रों, यदि आप स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो सुबह जल्दी उठना आपको अपनी बीमारी से छुटकारा पाने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना इस प्रकार से की है, कि हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए।
यह नियम प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए बनाया है, मानव शरीर के लिए रात सोने के लिए और सुबह जागने के लिए बनाई गयी है। यदि हम इसके अनुरूप कार्य करेंगे, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन यदि हम इसके प्रतिकूल जाएंगे तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
आइये चलते-चलते जाने सुबह उठने के स्वास्थ्य संबंधी लाभों को :
✴ सुबह का समय व्यायाम करने के लिए बेहतरीन समय है। इस समय किया गया योग - व्यायाम और प्रणायाम सबसे अधिक फायदेमंद है।
✴ सुबह की प्रदूषण मुक्त ताजी और ठंडी हवा श्वास संबंधी विकारों, जैसे अस्थमा इत्यादि में राहत पाने के लिए बेहद कारगर है।
✴ यदि बात शरीर को विटामिन डी उपलब्ध कराने की आती है तो सुबह की धूप से अच्छा विकल्प और नहीं है। सबह की धूप शरीर पर लगाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है।
✴ सुबह का समय अवसाद, तनाव से ग्रसित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है। जो लोग मानसिक शांति चाहते हैं वह सुबह के समय सैर कर एवं प्रकृति के साथ समय बिता कर अपनी स्थिति में चमत्कारिक परिवर्तन देख सकते हैं।
मित्रों, आपने तेनालीराम की कई कहानियां सुनी होंगी। उनकी हाजिर-जवाबी और बुद्धिमता के किस्से घर-घर में मशहूर हैं। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो आपको गुदगुदाएगी भी, और एक महत्वपूर्ण सीख भी देगी।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अति उदार स्वभाव के थे। वह अपनी प्रजा की हर आवश्यकता पूरी करते थे। राजा के इसी उदार स्वभाव के कारण विजयनगर के ब्राम्हण बड़े ही लालची हो गए थे। वह हमेशा किसी ना किसी बहाने से अपने राजा से धन वसूल किया करते थे। एक दिन राजा कृष्ण देव राय ने उनसे कहा - "मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? " यह सुनते ही एक ब्राम्हण ने कहा- " यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम दान दें तो आपकी मां की आत्मा को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप ही पहुंच जाता है।" सभी ब्राह्मणों में ने इस पर हां में हां मिलाई।
राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों के इस प्रस्ताव से सहमत हुए। उन्होंने ब्राह्मणों को 108 सोने के आम दान कर दिए। इन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मौज हो गई। जब तेनालीराम को इस घटना की सूचना मिली, तब ब्राह्मणों के इस लालच पर उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन लालची ब्राह्मणों को सबक सिखाने की ठान ली।
जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई, तो 1 महीने बाद उन्होंने ब्राह्मणों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं । खाने-पीने और बढ़िया माल पानी के लालच में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर पर जमा हुए।
✴ जिस प्रकार रोग शरीर का छय करता है, उसी प्रकार क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।
✴ क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाता है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने से प्राणी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
✴ क्रोधी एवं अहंकारी व्यक्ति को दुनिया में कोई अधिक क्षति नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि यह 2 गुण ही उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त हैं।
✴ एक क्रोधी व्यक्ति में तीन गुण गौंण होते हैं - धैर्य, बुद्धि, एवं संवेदनशीलता। इन तीन गुणों के नाश के कारण उसकी सफलता, प्रतिष्ठा, एवं संबंधों का नाश हो जाता है।
✴ जब ज्ञान की वर्षा होती है, तब क्रोध की अग्नि धुआं बनकर उड़ जाती हैं। अतः ज्ञान अर्जित करें।
क्या आपने गौर किया है कि जिस दिन आप बहुत सुबह उठ जाते हैं, उस दिन आप तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं?
साथ ही सुबह के वातावरण में घूमने से एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुबह का समय बहुत अद्भुत होता है। यदि आप जल्दी उठते हैं, तो अन्य दिनों के मुकाबले आपके पास दिन के कुछ घंटे और बढ़ जाते हैं, जिसे आप सफलता पाने के लिए निवेश कर सकते हैं।
जी हां दोस्तों ऐसा बहुत कुछ है जो सुबह के समय करने से आप लाभान्वित हो सकते हैं। इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सुबह की वह पांच आदतें जो सफलता पाने में आपकी मदद कर सकते हैं :
कई बार ऐसा होता है कि कुछ चीजों या घटनाओं को लेकर हम इतना अधिक चिंतन मनन करने लगते हैं, कि वह विचार हमें परेशान करने लग जाते हैं। कभी कभार ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है, किंतु यदि आप हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर देर तक सोचनें लगे, तो यह आपके लिए समस्या बन जाएगी।
कुछ लोग तो इस आदत से इस तरह प्रभावित होते हैं, कि छोटी से छोटी चीज़ करने से पहले अनावश्यक ही हजारों बार सोचते हैं, और कुछ कर देने के बाद भी उस पर घंटों तक विचार करते रह जाते हैं। इस तरह अति अधिक सोचने से न जाने कौन-कौन से विचार मन में आने लगते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह व्याकुल हो जाता है। साथ ही, आपका आत्मविश्वास भी धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि आप हर कार्य को लेकर संशय में रहने लग जाते हैं।
इस आदत को छोड़ देना ही बेहतर होगा। लेकिन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने ही विचारों में उलझ कर रह जाते हैं। इसीलिए हम आपके लिए कुछ ऐसे बिंदु लेकर आए हैं, जिन पर गौर करने पर आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा सकते हैं :
दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि क्रोध के आवेश में आकर हम लड़ाई - झगड़े में कूद पड़ते हैं, लेकिन जब शांत दिमाग से इस बारे में सोचते हैं, तब हमें अपने कृत्य का पछतावा होता है।
केवल यही नहीं दोस्तों, झगड़े के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। बाद में पछताने से अच्छा है कि हम यह स्थिति आने ही ना दें। अक्सर ऐसी स्थितियों में हम समझ नहीं पाते की क्या उचित है, इसीलिए अंततः हम झगड़े में कूद पड़ते हैं। लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए कि जितना हो सके आप झगड़े को टाल सके, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।
दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही रोचक कहानी सुनाने वाले हैं। यह कहानी है दो बहनों, हल्दी और सोंठ की। हल्दी स्वभाव से परोपकारी और दयालु थी लेकिन सौंठ घमंडी और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह हमेशा अपनी बड़ी बहन हल्दी पर हुक्म जमाया करती थी। दिन यूं ही बीते रहे।
1 दिन दोनों बहनों के घर उनकी बूढ़ी नानी का संदेशा आया। बूढ़ी नानी ने अपनी मदद के लिए एक बहन को बुलाया था। संदेशा पढ़ते ही सौंठ समझ गई कि वहां जाकर उसे ढेरों काम करने पड़ेंगे, इसीलिए उसने तुरंत ही बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। जब हल्दी ने संदेश पढ़ा, वह तुरंत वहां जाकर उनकी सेवा करना चाहती थी। इसीलिए माता पिता की आज्ञा लेकर वहां अपनी नानी के घर के लिए निकल पड़ी।
रास्ते में उससे एक गाय दिखाई दी । हल्दी को देखकर उस गाय ने मदद के लिए उसे पुकारा। हल्दी तुरंत वहां गई और उसने गाय से पूछा कि उसे क्या कष्ट है। इस पर गाय ने कहा कि उसके आस पास बहुत सारा गोबर इकट्ठा हो गया है। तो क्या हल्दी इससे साफ कर देगी। हल्दी अपने परोपकारी स्वभाव के कारण तुरंत गाय की मदद के लिए मान गई और सारा गोबर साफ कर दिया। गाय बहुत प्रसन्न हुई । अब हल्दी ने गाय से विदा ली और आगे चल पड़ी। फिर उसे एक बेर का पेड़ दिखा जिसके आस पास बहुत से पत्ते बिखरे पड़े थे। हल्दी को वहां से गुजरता देख बेर ने भी उस से मदद मांगी, हल्दी ने उसके सभी बिखरे पत्तों को साफ कर दिया और बेर अति प्रसन्न हुआ। फिर कुछ दूर आगे बढ़कर उससे एक पर्वत दिखा जिसके आसपास कई ईट पत्थर थे। हल्दी ने पूरे मन से सभी ईंटों को साफ कर दिया और फिर नानी के घर की ओर चल पड़ी।
जीवन में कभी न कभी हम सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसे में इनसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कमज़ोर आर्थिक स्तिथि से निपटने के लिए आपको बहुत धैर्य एवं सकारात्मकता के साथ कदम बढ़ाने होंगे। हालातों से हार मान लेने से काम नहीं चलेगा। आपको इनसे उबरने के लिए अपने हौसले को बनाये रखना होगा। दोस्तों, भूले नहीं कि रात के बाद दिन ज़रूर आता है, इसी तरह दुःख के बाद सुख आना भी निश्चित है। तो आइये जानते हैं, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से आप किस तरह निपट सकते है :
✴ आवश्यकताओं को सीमित करें
जब आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तब आपको पैसे बचाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। आर्थिक हालत चरमरा जाने पर आवश्यकताएं तो उतनी ही रहती हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए पूंजी कम पड़ जाती है। ऐसे में सभी पैसे खर्च कर देना बुद्धिमानी नहीं होगी । अपनी जरूरतों को कम करें, पैसे केवल वहीं लगाएं जहां बहुत जरूरी है। जिसके बिना काम चलाया जा सकता है, उसमें पैसे खर्च ना करें ।
✴ केवल सोंचे नहीं, करें भी
हमारे पास पैसे नहीं है, अब क्या होगा क्या? क्या करना चाहिए? ऐसे सवाल मन में आने स्वभाविक हैं, लेकिन केवल इन पर सोचतें रहने से कुछ बदलने वाला नहीं है।आपको उस दिशा में काम करना होगा। अपनी माली हालत को वापस पटरी पर लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी, या फिर यह कहे कि दोगुना परिश्रम करना होगा। ऐसे में आलस्य का पूर्णतः त्याग कर दें । याद रखें कि आप आज काम करेंगे, तभी कल बेहतर होगा। फिर कभी आप ऐसी स्थिति में ना पहुंचें, इसके लिए कठोर परिश्रम कीजिए और सफल बनिए।
पेश है खेलकूद में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपाय:
☸ सही पोषण
खेलकूद में शारीरिक श्रम होता है। आप खेल के मैदान में अधिक देर तक टिके रहें, इसके लिए आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। यह ऊर्जा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से प्राप्त होती है। यदि आप स्वस्थ नहीं होंगे, तो खेल में बेहतर प्रदर्शन करना संभव नहीं है। इसीलिए आपको अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, अंडे, पनीर, अंकुरित बीज इत्यादि शामिल करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि आपका शारीरिक विकास सही ढंग से हो, और खेल में अधिक ऊर्जा की खपत को आप पूरा कर पाए।
☸ अभ्यास एवं प्रशिक्षण
हीरा जितना घिसा जाता है, उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार आप जितना अभ्यास करेंगे, उतना ही अपने खेल में अच्छे होते जाएंगे । केवल 1 दिन खेल लेने से आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। आपको निरंतर खेल के कौशल को निखारने की जरूरत है। खेल के मैदान में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको कड़ी मेहनत और अभ्यास करना होगा। जिन जगहों पर आप कमजोर हैं, अभ्यास करके उसे अच्छा करें। रोज कुछ घंटे अभ्यास के लिए निकालें। साथ ही एक अच्छे शिक्षक से बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकि आपको अपने खेल के सभी नियम, सभी बारीकियाँ समझ में आए और आपके अभ्यास को सही दिशा मिले।
☸ अनुशासन
खिलाड़ी का अनुशासित होना अत्यावश्यक है। बिना अनुशासित जीवन शैली के आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। अनुशासन आपको हर चीज में स्थापित करना होगा। कड़ी दिनचर्या का पालन करें, अभ्यास प्रतिदिन एवं समय पर करें, 1 दिन भी अभ्यास छूटने नहीं पाए, समय के पाबंद बनें, आज का काम खत्म करें, भोजन में अनुशासन रखें। तभी जाकर आप अपने खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे ।
दोस्तों, हम यह तो जानते हैं कि सकारात्मकता जब आवश्यकता से अधिक हो जाए, तब वह विषाक्त सकारात्मकता का रूप ले लेती है, जो कि हानिकारक है। हम कब इसके शिकार हो जाते हैं, पता भी नहीं चल पाता। यही नहीं, हमारे आसपास लोग इस से ग्रसित हैं, यह पहचानना भी मुश्किल है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम विषाक्त सकारात्मकता की उपस्थिति को पहचानें, और उसे खत्म करें । आइये जानते हैं विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण :
☸ यदि किसी समस्या के आ जाने पर आप उसका सामना नहीं कर पाते, और समस्या से भागने लगते हैं, लेकिन साथ ही आप खुद को और दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करते हैं आप बिल्कुल सकारात्मक हैं, पूरी तरह से ठीक हैं, तो यह विषाक्त सकारात्मकता का लक्षण है। इसीलिए अवलोकन करें कि कोई समस्या आपको अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही। यदि आप ऐसी स्थिति में भी केवल दिखावे के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसे तुरंत बदलें।
☸ यदि कोई व्यक्ति अधि तनावपूर्ण बातें नहीं सुन पाता, और हमेशा उनसे भागने की कोशिश करता रहता है, तो यह भी विषाक्त सकारात्मकता का ही 1 लक्षण है। ऐसे लोगों में यह डर होता है कि नकारात्मक बात सुनने से उनकी सकारात्मकता पर प्रभाव पड़ेगा, इसीलिए सबसे अच्छी बातें कहने को कहते हैं, और यदि कोई अपनी समस्या लेकर आए, तो वह उससे मुंह मोड़ लेते हैं।
☸ यदि कोई व्यक्ति बहुत ही बुरी परिस्थितियों में, जहां समस्या की गंभीरता पर बात करनी चाहिए, वहां भी "सब अच्छा है" ऐसा कहता रहता है, तो वह भी विषाक्त सकारात्मकता से ग्रसित है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मकता से समस्या को हल करने पर जोर नहीं देता, बल्कि सकारात्मकता के नाम पर उस समस्या को दबाने की कोशिश करता रहता है।
माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएं। बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई पर लगाएं, इसलिए माता-पिता अक्सर उनके खेल के समय में कटौती कर देते हैं । कई माता-पिता तो खेलकूद को केवल समय की बर्बादी मात्र मानते हैं। पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रेरित करना अच्छी बात है, पर उन्हें खेलकूद से दूर रखना आपकी भूल साबित हो सकती है।
कैसे?
इसका जवाब आपको नीचे लिखे बिंदुओं में मिलेगा। इस लेख में हम बच्चों के जीवन में खेलकूद के महत्व के बारे में बात कर रहे हैं। इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद आप की सोच जरूर बदल जाएगी, और आप स्वयं बच्चों को खेल के लिए प्रेरित करेंगे :
शारीरिक मजबूती
खेल बच्चों को मजबूत बनाते हैं। इससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता बढ़ती है, एवं वह अधिक सक्रिय रहते हैं। श्रम करने की आदत आगे जाकर उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, जिससे किसी भी काम को करने में शारीरिक कमजोरी उनके लिए बाधा नहीं बनेगी। खेल के दौरान गिरना एवं चोट लगना उनके दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक सहनशील बनाता है।
मानसिक विकास
भविष्य में जीवन के संघर्षों के सामने टिक पाने के लिए आवश्यक है कि बच्चे मानसिक रूप से भी मजबूत हो। खेल की रणनीति पर चिंतन - मनन बच्चों में बच्चे मानसिक श्रम करते हैं। खेल से मिली हार उन्हें चुनौतियों का सामना करने, एवं हार स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।
कभी नया लिखना होता है तो हम 10 बार सोचते हैं, क्या लिखें? कैसे लिखें? शुरू कैसे करें?
कभी-कभी आपके मन में किसी घटना के बारे में लिखने का विचार आता होगा। आप सहमत होंगे कि बोलना जितना आसान है, लिखना उतना नहीं क्योंकि लिखने का प्रभाव बोलने से अधिक स्थाई और प्रभावी होता है, परंतु शर्त यह है कि हमें प्रभावी ढंग से लिखना आए। जी हाँ, क्योंकि लेखन एक कौशल है। इस लेख में हम यही जानेंगे कि प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जा सकता है:
विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा
लिखित अभिव्यक्ति में हमें चाहिए कि विचारों को क्रमबद्ध करके अपने भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करें । स्वाभाविक और स्पष्ट लिखने का प्रयास करें। स्वच्छता, सुंदरता और सुडौल अक्षर का निर्माण, चौथाई छोड़कर लिखना, अक्षर, शब्द और वाक्य से वाक्य के बीच की दूरी को ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात्, लेखन सुंदर और शब्दों की वर्तनी शुद्ध हो। वाक्य की बनावट भी ठीक होनी चाहिए। साथ ही उसमें व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि ना हो। जो आप कहना चाहते हैं, वही अर्थ निकले और वही दूसरों तक पहुंचे।
दोस्तों, झिझक या शर्म हम सबों में होती है। किसी में अधिक, तो किसी में कम, लेकिन सब लोग कभी न कभी किसी न किसी स्थिति में शर्माते हैं। किंतु कुछ व्यक्ति तो ज्यादा लोगों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाते।
यह झिझक चिंता का कारण तब बनती है, जब यह आपके विकास में बाधा बन जाती है। तब, जब झिझक के कारण आपकी हानि होने लगे, पढ़ाई या नौकरी में आपका प्रदर्शन खराब होने लगे, या रोजमर्रा के कामों में भी परेशानी खड़ी हो जाए, तब आपको सजग हो जाने की आवश्यकता है। इसे इतना न बढ़ने दें कि आप कुछ भी करना चाहें तो शर्म के कारण पीछे हट जाए।
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह शर्म बीमारी का रूप ले लेती है, जिसे ऐरिथ्रोफोबिया कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति बात-बात पर शर्म आने लग जाता है। तो अपनी शर्म को खत्म करें, ताकि आप हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत प्रदर्शन कर पाएं।
आत्मविश्वास को बल दे :
झिझक का मुख्य कारण है खुद पर विश्वास की कमी। हम हमेशा खुद को कम करके आंकते हैं । हमें लगता है कि हम में कुछ भी अच्छा नहीं है, और सामने वाले हम पर हसेंगे। पर यह केवल आपकी सोच है। सच्चाई ऐसी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें और हीन भावना मन में ना आने दे। अपनी कमजोरियों को भी आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करें, और अपनी क्षमताओं पर भी भरोसा रखें। यह मानें कि आप अपने आप में खास हैं।
हर कोई चाहता है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए, लोगों के बीच पसंदीदा बने। जब भी हम किसी से मिलते हैं, तो किसी न किसी रूप में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लोगों के ऊपर अपनी छाप छोड़ना एक कला है जो सबको नहीं आती। आप सोचते होंगे कि कैसे कुछ लोग भीड़ में इतने अलग दिखते हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
मित्रों! कुछ लोगों में यह गुण पहले से होता है, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, और कुछ लोग इसे अपने अंदर विकसित करते हैं। आप भी इस कला को सीख सकते हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे आप खुद को भीर से अलग दिखा सकते हैं I
पहनावे पर ध्यान देना
लोगों की नजर में जो सबसे पहली चीज आती है, वह है आपकी वेशभूषा। अच्छे दिखने वाले व्यक्ति पर स्वतः ही लोगों का ध्यान केंद्रित हो जाता है। किंतु यहाँ अच्छे दिखने का तात्पर्य सुंदर दिखने से नहीं है।
खुद को साफ रखें, वह कपड़े पहने जिन्हें आप पूरे आत्मविश्वास के साथ वहन कर सकें, और जो आपके व्यक्तित्व को निखारे।
बेहतरीन संचार कौशल
अच्छे पहनावे से जितनी जल्दी लोगों का ध्यान आप पर केंद्रित होता है, खराब बातचीत के ढंग से उतनी ही जल्दी लोग आपसे मुंह मोड़ लेते हैं। लोगों को प्रभावित करने के लिए जरूरी है कि आपकी बातें उन्हें आपकी तरफ आकर्षित करें। इसके लिए संचार की बारीकियों पर ध्यान दें। शुद्ध एवं साफ भाषा का प्रयोग करें, आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, आवाज़ के उतार चढ़ाव पर ध्यान दें, शारीरिक हाव-भाव का ख्याल रखें, और बात करते समय आई कांटैक्ट बना कर रखें।
दिन भर सोते रहना कितना अच्छा लगता है ना !
हम उन दिनों की कल्पना करते हैं, जब हम सिर्फ आराम करें। न जाने कितने ही कामों को न करने की इच्छा के कारण हम बहाने बना लिया करते हैं। यह अनिच्छा ही आलस्य है, जिसे हमारे शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आइए इस श्लोक को पढ़ें :
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्
आधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्
अर्थात आलस करने वाले को विद्या कहां? जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहां? निर्धन व्यक्ति के पास मित्र कहां? और मित्र के बिना सुख कहां?
इसीलिए आप भी सावधान हो जाएं, और आलस करना छोड़ें।
उपाय :
अनुशासन में रहें और नियम बनाएं
आलस को खत्म करने के लिए आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। खुद के लिए कड़े नियम बनाएं, और उन नियमों को तोड़ने की इजाजत खुद को ना दें। मन के बहकावे में बहकने से खुद को रोकें, और मन ना होने पर भी किसी भी काम को नजरअंदाज ना करें।
नियम टूटने पर सजा के लिए तैयार रहें
खुद के बनाए नियम तोड़ना आसान है, क्योंकि आपको सजा देने वाला कोई नहीं होता। हम बड़ी आसानी से तय किए गए नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं इसीलिए नियमों के साथ सजा भी तय करें। जब भी नियम टूटें, तो खुद को कड़ा दंड दें। इससे आपको ना चाहते हुए भी आलस को त्यागना ही होगा।
खुद को सक्रिय बनाएं
ऐसी क्रियाओं में स्वयं को संलग्न करें, जिनमें आपकी सक्रियता बढे। सुबह दौर लगाएं, शारीरिक कार्य करें, खेल खेले इत्यादि। इससे आपकी आलसी प्रवृत्ति बदलेगी और आप सक्रिय हो पाएंगे।
दृढ़ संकल्प
बिना दृढ़ संकल्प के आपके सारे प्रयास निरर्थक रह जाएंगे। इसीलिए मन में ठान लीजिए, कि आपको आलस छोड़ना है। साथ ही बीच-बीच में स्वयं को इस दिशा में बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें।
आजकल हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग का शिकार है। पहले की तुलना में अब लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं। यहां तक कि नवजात शिशु भी जन्म के साथ ही जॉन्डिस, निमोनिया जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। यदि आज से कुछ दशक पहले की तस्वीर देखी जाए, तो लोग अधिक स्वस्थ हुआ करते थे, और कहीं अधिक लंबा जीवन जिया करते थे। स्वास्थ्य के स्तर में इतनी गिरावट का सबसे मुख्य कारण है बदलती जीवनशैली।
आधुनिक जीवनशैली उपकरणों से घिरी हुई है। हम प्रकृति से दिन-ब-दिन दूर होते जा रहे हैं।
घर में पेड़ पौधे नहीं, बल्कि मोबाइल फ्रिज जैसे ढेरों उपकरण हैं। सूर्य एवं चंद्रमा की रोशनी छोड़ हम बनावटी लाइटों के बीच रहते हैं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ हमारा भोजन हैं, कच्चे फल सब्जियों की जगह हम जंक फूड खाना पसंद करते हैं, व्यायाम की जगह स्थूल जीवन शैली के हम आदी हो गए हैं, यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और जिस जल को ग्रहण करते हैं, वह भी शुद्ध नहीं है। ऐसे में कैसे स्वास्थ्य की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है?
अपने आसपास देखिए। प्रकृति है?
नहीं!
जिस प्रकृति का हम हिस्सा हैं, जिसने हमें बनाया है, उससे दूर होकर हम कैसे ठीक रह सकते हैं ? अपने शरीर की संरचना को समझिये। यह मशीनों के लिए नहीं बनी है। इसीलिए स्वस्थ रहना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है, जब तक आप खुद को प्रकृति से नहीं जोड़ेंगे।
यह सच है कि आप पूरी तरह से आधुनिकता के इस मशीनी माहौल से नहीं बच सकते हैं, लेकिन अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो आप कर सकते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति की गोद में फिर से लौटने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं:
आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा, कि कुछ बच्चे कम पढ़कर भी अच्छे अंक कैसे ले आते हैं?
जबकि कुछ बच्चे जी तोड़ मेहनत करते हैं, पर उनके अंक उस मेहनत के अनुरूप नहीं होते। जब बच्चे साल भर पूरी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, और तब भी उनके अंक संतोषजनक नहीं होते, तब उनका मनोबल टूट जाता है। वह बहुत निराश हो जाते हैं। ऐसे में बच्चे तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। बच्चों के कोमल मन पर निराशा की यह छाया नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह नन्हे फूल मुरझा जाएंगे।
इस स्थिति में फंसे बच्चों की मदद करने के लिए आज के लेख में हम बताने जा रहे हैं, कि आपको अच्छे अंक लाने के लिए कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है :
☸ सबसे पहली सीख, रटे नहीं, कंठस्थ करें।
रटंत विद्या बहुत हानिकारक है। बिना भावार्थ समझें केवल शब्दों या वाक्य को याद कर लेने से आपके ज्ञान में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी चीजें आपको बस कुछ समय तक ही याद रहती है। इस तरह से याद करने वाले बच्चे, तब पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जब सवाल थोड़ा भी घुमा दिया जाता है। क्योंकि आपने जो रट लिया, आपको बस उतना ही आता होता है। इसीलिए याद रखे बच्चों, आप जो भी पढ़ रहे हैं, उससे रटे नहीं, बल्कि समझे कि पाठ में आपको क्या समझाया जा रहा है। एक बार जब विषय वस्तु आपके समझ में आ जाएगी, तब आप उससे संबंधित प्रश्नों को हर तरह से हल कर पाएंगे ।