डर पर विजय कैसे प्राप्त करें

डर पर विजय कैसे प्राप्त करें

  

नमस्कार मित्रों ! आप अपने जिस सवाल का जवाब ढूंढते हुए इस लेख तक आए हैं, उसका जवाब आपको जरूर मिलेगा।

जी हां ! आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। हम जानते हैं कि आप अपने जीवन में किसी न किसी डर से परेशान हैं और उस पर काबू पाकर उसे हराना चाहते हैं। अपने डर पर जीत हासिल करने का आपका यह फैसला काबिले तारीफ़ है और आपके इसी हौसले को आगे बढ़ाने के लिए हमने यह लेख लिखा है।

तो आइए सबसे पहले बात करें कि डर आखिर है क्या?

मित्रों, मनुष्य के अंदर कई सारी भावनाएं होती हैं जैसे - प्रेम, क्रोध, दया, ममता, करुणा, साहस, सहानुभूति इत्यादि।

इसके अलावा डर भी ऐसी ही एक भावना है। यदि कोई आपका इस बात को लेकर मजाक उड़ाता है कि आप बहुत डरते हैं, और वह व्यक्ति किसी भी चीज से नहीं डरता, तो सबसे पहले यह समझ लीजिए कि उनकी धारणा बिल्कुल गलत है।

दुनिया में ऐसा कोई जीव नहीं है जिसके अंदर डर की भावना ना हो। डर का होना अस्वाभाविक नहीं, बल्कि स्वाभाविक बात है क्योंकि यह मनुष्य की प्रकृति है कि वह किसी न किसी चीज़ से डरता है।

मित्रों, भय या डर मनुष्य की सबसे शक्तिशाली भावनाओं में से एक है। इसका हमारे शरीर एवं मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम रोज़मर्रा की जिंदगी में ऐसी कई परिस्थितियों का सामना करते हैं जब हमारे अंदर यह भावना विकसित होती है, जैसे कहीं आग लग जाना, आपदा का आना, चोट लग जाना, असफल हो जाना या किसी प्रियजन को खो देना।

इन सब परिस्थितियों में हमारे अंदर भय का विकास होता है जिसके कारण हम तनाव ग्रस्त और घबराहट महसूस करते हैं। मित्रों, भय एक समान्य प्रतिक्रिया है जो हमारे शरीर को किसी नुकसान से सावधान और सतर्क होने की चेतावनी देती है। क्योंकि यह सामान्य मानवीय भावना है जो कि प्राकृतिक रूप से सभी मनुष्यों के अंदर पाई जाती है, इसीलिए आपके शरीर में डर की उपस्थित होना कोई बुरी बात नहीं है।

लेकिन किसी भी चीज़ की अति, अर्थात किसी भी चीज़ का जरूरत से ज्यादा होना बुरा होता है। इसी तरह डर हमारे लिए समस्या तब बन जाता है जब यह जरूरत से ज्यादा प्रबल होने लगे।

यदि आपके साथ भी यही समस्या है और आपका डर आप पर हावी हो जाता है तो जरूरत है कि आप इस पर नियंत्रण साधे। आज का लेख इसी विषय पर आधारित है और इस लेख में उन सभी क्षेत्रों की चर्चा की गई है जिनका संबंध डर से है।

मित्रों, इस लेख में ना सिर्फ हम डर के कारणों व उनके हल की चर्चा करेंगे, बल्कि हम इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषण करेंगे जिससे आप हर उस बारीकी को जान पाए जो डर को हरा पाने के लिए आवश्यक है।

इस लेख में आपको अपने हर सवाल का जवाब मिलेगा और आपको यह रणनीति भी पता चलेगी कि डर को हराने के लिए किस प्रकार और किस दिशा में काम करना होगा। तो आइये जानें डर को खत्म करने की रण नीतियाँ :

✴ अपने डर को समझे :

डर का सामना करने और उस पर जीत हासिल करने के क्रम में यह सबसे पहला और सबसे मुश्किल चरण है, लेकिन वहीं यह सबसे जरूरी भी है।

आप तब तक डर से ऊबर नहीं सकते जब तक वह आपके अवचेतन मन के किसी कोने में पड़ा रहेगा। आपको अपनी चेतना का इस्तेमाल करते हुए सबसे पहले अपने डर के क्षेत्रों, उसके कारणों और फिर लक्षणों को समझना होगा।

इन सब बातों का अवलोकन करने के बाद आपको यह पता चल जाएगा कि अपने डर का सामना करने और इस पर विजय प्राप्त करने के लिए आपको कौन सी रणनीति का पालन करना है।

साथ ही यह जान लेने के बाद कि भय पूर्ण परिस्थिति में आपके शरीर के अंदर कौन-कौन से लक्षण विकसित होते हैं आप अगली बार से बेहतर रूप से इस पर नियंत्रण कर सकेंगे। इसलिए डर को वैज्ञानिक रूप में समझें। ऐसा करने के लिए आपको तीन चरणों में काम करना होगा।

पहला चरण है :

1 ) किन परिस्थितियों में आपको डर लगता है :

हर व्यक्ति की प्रकृति और व्यक्तित्व अलग होती है। इसीलिए हर व्यक्ति के लिए भय के कारण भी अलग-अलग होते हैं। कुछ लोग नए लोगों से मिलने से डरते हैं, तो कुछ लोग सबके सामने बोलने से डरते हैं। कुछ लोग ऊंचाई या गहराई से डरते हैं, तो कुछ अंधेरे से।

इस प्रकार हर व्यक्ति के लिए डर के मायने अलग अलग होते हैं। अब आपको इस बात का अवलोकन करना होगा कि किन परिस्थितियों में आप डर जाया करते हैं। कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है जब हमारा मन शंका, घबराहट से भर जाता है लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि ऐसा किस कारण से होता है।

हो सकता है कि आपके शरीर की यह प्रतिक्रिया डर के कारण हो। इसीलिए आपको बड़ी गहराई से यह देखना होगा कि किस-किस चीजों से आप को डर लगता है।

2 ) डर लगने का कारण क्या है :

एक बार जब आपने यह जान लिया है कि आपको किन परिस्थितियों और किन चीजों से डर लगता है, तो अब दूसरा चरण है यह जानना कि आखिर आप क्यों डरते हैं ?

वह कौन सी बात है जो आपको विचलित कर रही है। उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि आप सबके सामने बोलने से डरते हैं। सार्वजनिक जगहों पर बोलना आप का डर है। तो अब यह पता लगाएं कि आपका यह डर आखिर किस बात से आता है?

क्या आप अपनी क्षमता और वाक कौशलों को लेकर शंकित हो जाते हैं? या आपको लगता है कि श्रोता आपको सुनकर कहीं आप का मजाक तो नहीं उड़ाएंगे, आप इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग आपकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे? या फिर आप यह सोचते हैं कि आप सब की अपेक्षाओं पर खड़े नहीं उतर पाएंगे?

इन सभी में से कोई तो एक ऐसी वजह होगी जो आपके भय का कारण हो। इसी तरह इस उदाहरण की भांति अपने डर के क्षेत्रों में सभी कारणों को लागू करें और पता लगाएं कि आपके लिए कौन सा कारण वैध है। इन सभी कारणों में से जो भी आपके डर का कारण हो उसे जान लेने के बाद आप उसे खत्म करने के हल को बेहतर ढंग से ढूँढ पाएंगे।

3) लक्षणों का पता लगाना :

मित्रों, एक बार जब आपने डर का कारण जान लिया हो तो अब अगला चरण है उसके लक्षणों को पहचानना। इसका मतलब यह है कि जब भी आप तनावपूर्ण परिस्थितियों में जाते हैं, जहां आपका सामना आपके डर से होता है, तब शारीरिक और भावनात्मक रूप से आपके अंदर क्या क्या बदलाव आते हैं।

इन लक्षणों को पहचानना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि तभी आप इन्हें नियंत्रण में कर पाएंगे।

मित्रों, कुछ लक्षण शारीरिक होते हैं, जैसे कि पसीने का आना, हाथ और पांव का थरथराना, कुछ ना बोल पाना, आवाज का लड़खड़ाना, गला सूखना या अत्यधिक प्यास लगना।

वहीं दूसरी ओर कुछ लक्षण भावनात्मक होते हैं अर्थात वह दिखाई नहीं देते हैं। जैसे मन का निराश हो जाना, अत्यंत दुखी हो जाना, रोना आने लगना या तबीयत का खराब महसूस होना।

हर व्यक्ति में अलग-अलग लक्षण दिखते हैं। इनमें से कुछ लक्षण तो सामान्य और नज़र अंदाज़ करने लायक होते हैं, किंतु कुछ लक्षण अत्यंत प्रबल और गंभीर होते हैं। इसीलिए आपको बहुत समय देकर, बहुत धैर्य के साथ गहराई से अवलोकन करना होगा कि आपके अंदर कौन-कौन से लक्षण विकसित होते हैं और अगली बार जब भी आपको यह लक्षण दिखाई पड़े तो उसी वक्त सतर्क हो जाएं।

✴ डर का सामना करें :

अपने डर के कारण और लक्षणों को भली - भाँति जान लेने के बाद अब बारी आती है उनसे निपटने की।

केवल लक्षण जान लेना पर्याप्त नहीं है। उन लक्षणों को जड़ से खत्म करना आवश्यक है। इसीलिए डर को हराने के लिए जितना जरूरी उसे गहराई से समझना है, उतना ही जरूरी है उसका सामना करना । जब तक आप अपने डर का सामना नहीं करेंगे, तब तक आप इसके प्रभाव से खुद को मुक्त नहीं कर पाएंगे।

मित्रों, अत्यधिक भय तब लगता है जब यह आप पर हावी होने लगता है। यहाँ आपको स्थिति बदलनी है और अपनी भावनाओं के मुकाबले आपको अपना प्रभुत्व बनाए रखना है। याद रखें आप भावनाओं पर नियंत्रण करते हैं भावनाएं आपको नियंत्रित नहीं करती हैं।

ऐसा करने के लिए बजाय इसके कि आप परिस्थितियों से भागे, आपको उन परिस्थितियों में जाना होगा जहां आप तनाव ग्रस्त, डर, शंका व घबराहट महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया शुरुआत में बहुत तनावपूर्ण हो सकती है और आप काफी असहज भी महसूस कर सकते हैं लेकिन यह कदम उठाना बहुत जरूरी है।

उदाहरण के रूप में अंधेरे में रखी हुई रस्सी सांप की तरह दिखाई देती है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो कोई सांप हो और हम यह देख कर डर जाते हैं। जब तक हम उस रस्सी को अंधेरे में दूर से देखते रहेंगे तब तक वह हमें सांप की तरह दिखाई देती रहेगी और हम डरते रहेंगे।

हमारा डर तब ही खत्म होगा जब हम उस रस्सी के पास जाकर खुद जांच करेंगे। एक बार जब हमें पता चल जाता है कि वह कोई सांप नहीं बल्कि समान्य सी रस्सी है, तब हमारा डर स्वतः ही खत्म हो जाता है।

मित्रों, यही मूलभूत प्रक्रिया है जो कि हर प्रकार के भय पर लागू होती है। इसीलिए बहुत जरूरी है कि आप उन चीजों में हाथ आजमाएं जिन्हें आप करने से डरते हैं, चाहे आप का प्रदर्शन कैसा भी हो।

हो सकता है आप का प्रदर्शन खराब या बहुत ही खराब हो और आप हंसी या मजाक का पात्र बनें। लेकिन ऐसा केवल एक बार या दो, या तीन बार होगा। अगली बार जब आप फिर से स्वयं को उस परिस्थिति में डालेंगे तो आपका डर पहले की तुलना में बहुत कम या फिर पूरी तरह खत्म हो चुका होगा।l

पहले जहां आप असहज, शंकित और भयभीत महसूस करते थे वहां आप स्वयं को सहज, आत्मविश्वासी पाएंगे। तो आशा है कि अब आप यह समझ चुके होंगे कि हम परिस्थितियों से नहीं डरते हैं, बल्कि केवल उनका सामना करने से डरते हैं।

हमारा डर खत्म इसीलिए नहीं होता क्योंकि हम अपने डर का सामना ही नहीं करते, बस हर पल उससे भागते रहते हैं। लेकिन जब आप इस बात को समझ जाएंगे कि डर सिर्फ तब तक ही लगता है जब तक आप उस परिस्थिति में पहुंच न जाए, तब आप अपनी इस भावना पर बहुत अच्छी तरह से काबू पा सकेंगे।

✴ विश्वास की क्रिया विधि को समझें :

मित्रों, डर की भांति विश्वास भी इंसानी मस्तिष्क की एक प्राकृतिक भावना है। यह भावना इतनी प्रबल और इतनी शक्तिशाली है कि हम जिस चीज़ पर विश्वास करते हैं असल जिंदगी में वही हो जाता है।

यह सिर्फ सुनी सुनाई बातें नहीं, बल्कि विज्ञान द्वारा साबित की जा चुकी हैं। मस्तिष्क का मनोविज्ञान पूरी तरह से विश्वास के नियमों पर आधारित है और इन्हीं नियमों से संचालित होता है।

जब भी हमारे जीवन में कुछ अच्छा होता है तो उसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे विचारों, अर्थात हमारे विश्वास का होता है। जब हम अच्छा सोचते हैं तो असल जिंदगी में भी अच्छा हीं होता है। लेकिन जब हम अपने डर के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तब हमारा मस्तिष्क नकारात्मकता से भर जाता है। हम अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं पर इस प्रकार शांकित हो जाते हैं कि हम सभी नकारात्मक बातों पर विश्वास कर बैठते हैं।

मान लेते हैं कि आप सबके सामने बोलने से डरते हैं क्योंकि आपके अंदर यह डर है कि आप सबके सामने जाकर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। यह आपके मन में भय के कारण उपजा एक विचार है, जिस पर आप विश्वास कर लेते हैं। इसीलिए जब आप सबके सामने बोलने जाते हैं तो आप का प्रदर्शन खराब हो जाता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस मामले में अच्छे नहीं है या आपके बातचीत का कौशल अच्छा नहीं है। आप बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं, बावजूद इसके आप अच्छा प्रदर्शन इसीलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि आपने अपने मन में यह धारणा और विश्वास स्थापित कर लिया है कि आप से कोई गलती जरूर होगी। और परिणाम स्वरूप ऐसा हीं होता है।

भय के प्रभाव में आई आपके मन की यह भावना इतनी प्रबल होती है कि आपका अवचेतन मन इसी पर विश्वास कर लेता है और असल जिंदगी में इसी को सच बना देता है। यह सब विश्वास का खेल है। याद रखें, नकारात्मक विचार असल जिंदगी में नकारात्मक परिस्थितियाँ पैदा करते हैं और सकारात्मक विचार सकारात्मक परिस्थितियाँ।इसीलिए आपको इस बारे में बहुत सतर्क रहना होगा कि आप किन बातों और नियमोंपर विश्वास कर रहे हैं।

कई बार ऐसा होता है कि हम यह ठान लेते हैं कि हम अपने आप पर पूरा विश्वास रखेंगे लेकिन जैसे ही हमारे अंदर डर विकसित होने लगता है हमारा विश्वास नकारात्मकता की ओर झुक जाता है।

आपको इसी पर नियंत्रण साधने की आवश्यकता है। चाहे आप का डर आपको कितना भी नकारात्मक होने को क्यों ना कहे, आपको अपने मन में यह विश्वास बनाए रखना है कि आप बेहतर हैं और आप बेहतर कर सकते हैं।

यहां एक और बात समझी जानी चाहिए कि विश्वास की क्रिया विधि और संचालन प्रक्रिया को अपने नियंत्रण में करने की प्रक्रिया में आपको कुछ समय लग सकता है। हो सकता है एक या दो बार आपके द्वारा मन में बनाया हुआ विश्वास सफलतापूर्वक निष्पादित ना हो सके, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह प्रभावशाली नहीं है। यह कुछ समय अवश्य लेगा इसीलिए आपको हार नहीं माननी है।

✴ तत्काल उपाय :

विश्वास का मनोविज्ञान और उसकी कार्यविधि आपके अंदर धीरे-धीरे विकसित होगी। लेकिन आपके पास कुछ तत्काल उपाय भी होने चाहिए जिन्हें आप तुरंत ही लागू कर सकें और अपने डर को कम कर सकें। इसीलिए अगली बार जब भी आपको ऐसा लगे कि आपके मन के अंदर डर के भाव विकसित हो रहे हैं और धीरे-धीरे आप पर हावी हो रहे हैं, तब खुद को शांत करें और गहरी साँसे ले।

मित्रों, श्वास का हमारे शरीर एवं हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। गहरी सांसे लेने से हमारे शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचता है जिससे रक्त का प्रवाह बेहतर होता है और शरीर की सभी कोशिकाएं अधिक सक्रिय होती हैं।

इससे व्यक्ति पहले से कहीं बेहतर महसूस करता है और उसके सोचने और समझने की क्षमता में वृद्धि होती है। इसीलिए कम से कम 5 मिनट तक गहरी सांसे अंदर भरे और छोड़े।

इसके अलावा आप एक और उपाय अपना सकते हैं । आप उल्टी गिनती भी कर सकते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कि भला गिनती का डर से क्या संबंध है ?

मित्रों, यह एक तरीका है खुद को शांत करने का। जब भी हमें डर लगता है तब हम सकारात्मकता और नकारात्मकता के युद्ध के बीच में फंस जाते हैं। एक तरफ हम सकारात्मक होने की कोशिश करते हैं, तो वहीं डर हमारे मन में नकारात्मक विचारों का बीजारोपण करता रहता है।

इस प्रकार मस्तिष्क अव्यवस्थित हो जाता है और मन विचलित होने लगता है। स्वाभाविक सी बात है कि जब आपके मन के अंदर इतनी हलचल चल रही हो तो आप सामान्य नहीं रहते है।

ऐसे में यह समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि किस प्रकार परिस्थिति का सामना किया जाए। इसीलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति में आप खुद को शांत बनाए रखें जिसके लिए उल्टी गिनती का सहारा लेना अच्छा विकल्प है। इसीलिए 10 से लेकर 1 तक उल्टी गिनती धीरे-धीरे करें। इसके साथ अपनी आंख बंद कर ले और अपना पूरा ध्यान अपनी गिनती पर केंद्रित कर ले। जब 10 सेकंड बाद आप अपनी आंखों को खोलेंगे तो आप खुद को पहले की तुलना में ज्यादा शांत और स्थिर पाएंगे।

✴ पूर्वाग्रह की आदत को त्याग दें :

दोस्तों, बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते हैं कि हर काम सोच समझ कर करना चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यदि आप अत्यधिक सोचने लगे तो यह आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है ?

जी हां ! अत्यधिक सोचने की आदत पूर्वाग्रह को जन्म देती है। पूर्वाग्रह का अर्थ होता है किसी भी चीज़ के बारे में पहले से ही राय बना लेना। इसका मतलब है कि आप किसी चीज के बारे में इतना अधिक सोचने लग जाते हैं कि आप उन चीजों की भी कल्पना कर लेते हैं जो अस्तित्व में नहीं होती हैं।

यह डर का एक बहुत बड़ा कारण है। जब भी हम ऐसी परिस्थितियों में जाते हैं, तब हम अत्यधिक सोचने लगते हैं जिसके कारण हमारा डर बढ़ता ही जाता है। हमें ऐसा करने से हमेशा बचना चाहिए। इसकी जगह आपको उतना ही सोचना चाहिये, जितना कि आवश्यक हो।

फिर आगे जो होगा देखा जाएगा। आप ही सोचिए भला उस अत्यधिक सोच-विचारने का क्या फायदा जिसके कारण आपका मन उस शंकित व भयभीत हो जाए?

इसीलिए यदि आप डर को हराना चाहते हैं, तो पूर्वाग्रह को खत्म करना और अत्यधिक सोचने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है। तो आज से ही इस दिशा में काम करना शुरू कर दें।

✴ आत्मविश्वास सबसे बड़ा शस्त्र :

मित्रों, आत्मविश्वास सिर्फ सफलता की कुंजी ही नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में हर उपलब्धि की कुंजी है। इस लेख में आप पढ़ चुके हैं कि डर लगने का कारण आपकी शंकाएं होती हैं। मन शंकित तभी होता है जब हम अपनी क्षमताओं को लेकर आश्वस्त नहीं होते हैं।

यह और कुछ भी नहीं बल्कि आत्मविश्वास की कमी है।

मित्रों, आत्मविश्वास का अर्थ है स्वयं पर विश्वास। और आप यह भी कह सकते हैं कि आत्मविश्वास और डर एक दूसरे की दुश्मन है क्योंकि जहां डर है, वहां आत्मविश्वास नहीं और जहां आत्मविश्वास है, वहां डर की कोई गुंजाइश नहीं होती।

आप ही सोचिए यदि आप स्वयं को लेकर बिल्कुल आश्वस्त रहेंगे तो फिर आपको डर किस बात का लगेगा?

आपको यह भरोसा होगा कि यदि आप सबके सामने बोलेंगे या सार्वजनिक रूप से कोई काम करेंगे तो वह अच्छा होगा क्योंकि आपको अपनी क्षमताओं पर विश्वास है। ऐसी स्थिति में डर लगने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसीलिए मित्रों डर को हराने के लिए आत्मविश्वास एक बहुत बड़ा अस्त्र है।

आपने देखा होगा कि ऐसे लोग जो आत्मविश्वासी नहीं होते हैं, वह भयभीत, दब्बू और उदासीन किस्म के होते हैं। वहीं दूसरी ओर आत्मविश्वासी व्यक्ति ऊर्जा, साहस और उत्साह से भरा हुआ होता है। आपको भी ऐसा ही बनना है।

आत्मविश्वास विकसित करने के लिए आपको अपने कौशलों को निखारना होगा, जिसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। साथ ही आप जैसे हैं, खुद को वैसे ही स्वीकार करें। अपनी कमियों पर नहीं, बल्कि अपनी श्रेष्ठताओं पर पर ध्यान दें और उनके बारे में अच्छा महसूस करें।

इसके साथ ही स्वयं की तुलना दूसरों से करना छोड़े और इस बात को समझे कि हर व्यक्ति अपने आप में अलग और अनोखा होता है। दूसरों से तुलना करने से आपका मनोबल कम होता है। ऐसा करना छोड़ दे। दूसरों की क्षमताओं को भी गले लगाएं और अपनी प्रतिभाओं की भी सराहना करना सीखें।

इसके अलावा आप बाहर से भी कुछ बदलाव कर सकते हैं, जैसे वह कपड़े पहने जिसमें आप सहज महसूस करते हो, खुद को साफ रखें जिससे आप दूसरों के सामने जाने में कोई झिझक ना महसूस करें। नए लोगों से मिलना जुलना शुरू करें और उनसे बातें करें ताकि आपकी झिझक दूर हो और खुद से ढेर सारा प्यार करें।

बस इतना सा करके देखिए और कुछ ही समय में आप अपने आप को बिल्कुल बदला हुआ पाएंगे।

निष्कर्ष :

तो प्रिय पाठकों, यह था आज का लेख। संक्षिप्त रूप में कहे तो डर पर जीत हासिल करने के लिए आपको सबसे पहले उसे समझना होगा और फिर उस से निपटने के लिए उपायों को लागू करना होगा। आपकी डर से यह लड़ाई प्रभावी हो इसके लिए हमने हर एक बिंदु पर विस्तार से वर्णन किया है ताकि आपके मन में कोई भी शंका ना रह जाए।

इस लेख को पढ़ने के बाद अब वक्त आ गया है कि आप अपने जीवन में डर के साथ लड़ाई शुरू करें और इस में विजयी बने। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है । उसी प्रकार आप भी अपने डर पर शत-प्रतिशत काबू पा सकते हैं। आवश्यकता है नियमितता की।

कई बार आपको ऐसा लग सकता है कि आपकी कोशिशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। किंतु आप हार ना माने और ना ही अपने प्रयासों पर पूर्ण विराम लगाएं। नियमित रूप से अपने प्रयासों को जारी रखें और आप देखेंगे कि धीरे-धीरे डर, उनके कारण व लक्षण सभी समाप्त होते जा रहे हैं।

तो आशा है कि यह लेख आपके लिए प्रेरणा का स्रोत बना होगा। यूं तो इस लेख में हमने आपकी सभी शंकाओं का निदान करने का प्रयास किया है लेकिन फिर भी यदि आपके मन में कोई प्रश्न हो तो आप पोस्ट के माध्यम से हमसे जरूर पूछ सकते हैं।

इसी के साथ यदि इस लेख से जुड़ी कोई राय आपके मन में हो तो उसे हमारे साथ साझा करना बिल्कुल ना भूलें। हमें आपके पोस्ट का इंतजार रहेगा।


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