Pallavi Thakur
657 अंक
Motivator

अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेर कर संजो लीजिए!

नमस्कार! मैं आकाशवाणी की युवा कलाकार हूँ। लेखन एवं हिंदी भाषा में मेरा अत्यधिक रुझान है। इस रुचि को एक ब्लॉगर के रूप में साकार करने के की कोशिश है।

जीवन में सफल होने के लिए भावनात्मक परिपक्वता कितनी ज़रूरी है ?

मित्रों, आज कल की जीवन शैली न सिर्फ फास्ट - फॉरवार्ड हो गई है, बल्कि जीवन काफी जटिल भी हो गया है। आजकल का दौर महत्वाकांक्षा, प्रतियोगिता, गतिशीलता और सफलता का दौर है।

हर व्यक्ति बड़े सपने देखता है और अपने क्षेत्र में कामयाब होना चाहता है। इसे हासिल करने के लिए व्यक्ति अपने हर कौशल का संभव प्रयोग कर रहा है। इसीलिए यह जमाना मल्टीटास्किंग और मल्टी टैलेंटेड लोगों का है।

लेकिन जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए परिश्रम और बुद्धिमता ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए व्यक्ति में भावनात्मक परिपक्वता एवं संतुलन भी अति आवश्यक है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

सफलता की बात आए तो हम तकनीकी कौशल, शारीरिक क्षमता, बुद्धिमता इत्यादि पर अधिक ज़ोर देते हैं और इन्हीं को अधिक आवश्यक मानते हैं। इन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप भावनात्मक परिप्रेक्ष्य के महत्व को हम सही तरीके से नहीं जान पाए हैं।

ऐसा शायद इसीलिए होता है क्योंकि हम उन चीजों पर अधिक ध्यान देते हैं जो सामने दिखाई देते हैं। भावनाएं दिखाई नहीं देती, इसलिए हम उन्हें आवश्यक नहीं मानते। पर क्या ऐसा करना सही है ? और क्या सच में भावनात्मक परिप्रेक्ष्य आपके सफलता से कोई संबंध नहीं रखता?

आज की चर्चा इसी विषय पर है। सबसे पहले हम बात करेंगे कि भावनात्मक परिपक्वता, जिसकी अक्सर अनदेखी कर दी जाती है क्या उस पर ध्यान दिया जाना सच में जरूरी है? और यदि हां, तो यह हमारे सफलता ने कितना और किस प्रकार योगदान करता है?

इसके लिए हमें एक उदाहरण का सहारा लेना होगा। आइए एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को मूर्त रूप देकर जीवन में सफल होना चाहता है। उसके पास तकनीकी कौशल, बुद्धिमता व शारीरिक शक्ति है। वह इन सभी कौशलों का इस्तेमाल कर सफलता के लिए कार्यरत है। लेकिन अचानक ही उसके जीवन में कोई ऐसी घटना घट जाती है जो मानसिक रूप से उसे अस्थिर कर देती है।

इस मानसिक अस्थिरता का परिणाम यह होता है कि वह अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाता। उसका मन हमेशा उदास रहता है और वह खुद को व्यवस्थित नहीं कर पाता। वह व्यक्ति यह तो जानता है कि वह इस समय भावनात्मक रूप से दुखी एवं असंतुलित है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह इस स्थिति को कैसे ठीक करे।

अपनी भावनाओं पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता और वह भावनाओं की वेग में बहता चला जाता है। इस भावनात्मक उथल-पुथल का सीधा - सीधा प्रभाव उसके काम पर पड़ता है और वह कार्य को लेकर अनुशासन खो बैठता है। साथ ही वह अपने कार्य पर पूर्ण रुप से ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता क्योंकि उसके मन में कई सारी भावनाओं के बीच द्वंद छिड़ा हुआ है।

अंत में यह होता है कि वह बहुत परेशान हो जाता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाता है। उसकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं पर उसकी भावनाएं हावी हो जाती है जो अब उसके नियंत्रण से बाहर होती हैं।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति के पास हर कौशल होने के बाद भी सफल नहीं हो पाता है। इसका एकमात्र कारण है भावनात्मक अपरिपक्वता एवं अस्थिरता। यदि वह व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना जानता तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

यह कहानी उन हजारों युवाओं की है, जो अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। अधिकतर युवा अवसाद, क्रोध, ईर्ष्या इत्यादि भावनाओं के चलते मानसिक रूप से पीड़ित होते हैं। इनका सीधा - सीधा असर उनके करियर पर और उनकी सफलता पर पड़ता है।

तो मित्रों, अब शायद आप जान गए होंगे कि इस विषय पर चर्चा करना कितना महत्वपूर्ण है और यदि इस पहलू की अनदेखी की जाए तो यह व्यक्ति के लिए कितना घातक सिद्ध हो सकता है। भावनात्मक स्वास्थ्य ना सिर्फ आपकी जिंदगी में सफलता के लिए आवश्यक है बल्कि एक खुशहाल जीवन की परिकल्पना भी इसी से सिद्ध होती है।

आवश्यकता से अधिक उत्तेजना या आवश्यकता से अधिक उदासीनता, यह दोनों ही आपके लिए हानिकारक है। नई पीढ़ी, खासकर युवाओं में भावनात्मक असहिष्णुता और अपरिपक्वता कि मामले बढ़ते जा रहे हैं। बदलती हुई जीवन शैली के साथ - साथ भावनात्मक परिप्रेक्ष्य में भी पहले की तुलना में काफी अधिक बदलाव आ गया है।

युवाओं में क्रोध का स्तर बढ़ता जा रहा है। अक्सर यह देखा जाता है कि तनावपूर्ण स्थितियों में लोग बहुत जल्दी है अपना आपा खो देते हैं और अपने क्रोध पर बिल्कुल नियंत्रण नहीं रख पाते। इसके साथ ही उन लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है जो डिप्रेशन यानी कि अवसाद, चिंता या कुंठा से पीड़ित है।

यहां तक की हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी मानसिक तनाव से गुजर रहा होता है। इसका कारण भावनात्मक रूप से असंतुलित होना ही है जिसका प्रभाव हमारे जीवन के हर पहलू पर पड़ता है।

इसी विषय पर जागरूकता लाने के लिए हमने आज एक विस्तृत चर्चा की है, जो आपको अवश्य पढ़नी चाहिए। ऊपर हमने देखा कि भावनात्मक परिपक्वता और भावनाओं पर नियंत्रण करना व्यक्ति के लिए क्यों आवश्यक है।

अब हम यह जानेंगे कि आप अपने जीवन में भावनात्मक संतुलन किस प्रकार बना सकते हैं। जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाकर आप इस लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं और पहले की तुलना में अधिक खुशहाल अधिक स्थिर व अधिक सफल व्यक्ति बन सकते हैं।

तो आइए इस संकट के निवारण की ओर चले और उन बिंदुओं को जानें :

✴ भावनाओं से भागे नहीं :

क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें अपने ही मन के अंदर चल रही भावनाओं से डर लगता है ?

ऐसे कई लोग हैं जो अपनी भावनाओं से भागते रहते हैं, अर्थात उनकी अनदेखी करते रहते हैं। इसका कारण है भावनात्मक रूप से अपने कंफर्ट जोन (comfort zone) में रहना पसंद करना और तनावपूर्ण स्थिति को ना झेल पाने की क्षमता।

ऐसे लोगों कि जीवन में जब भी कोई कठिनाई या संकटपूर्ण परिस्थितियां आती है तो वह इनका सामना करने की बजाय इन से भागना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति में लोग अंदर ही अंदर परेशान, भयभीत दुखी या उत्तेजित होते हैं लेकिन ऊपर से ऐसा दिखावा करते हैं जैसे सब बिल्कुल ठीक हैं।

आप अपनी भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन आप भूल जाते हैं कि आपके ऐसा करने से आपकी परेशानी का हल नहीं निकलने वाला। आपकी परेशानी अंदर ही अंदर आपको मानसिक रूप से प्रभावित करती रहती है और बाहरी जीवन में आप इससे भागते रहते हैं।

ऐसा बिल्कुल ना करें।

यह आपके लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। आपको आवश्यकता है कि जो भी बात आपको परेशान कर रही है आप उसका हल निकालें। तभी जाकर आप अच्छा महसूस कर सकते हैं। जीवन में आ रही मुश्किलों से मुंह मोड़ लेना और उन्हें पीठ दिखाना कभी समस्या का हल नहीं हो सकता। ऐसा कायर करते हैं।

अपनी भावनाओं की इज्जत करना सीखें। आप जो भी महसूस कर रहे हैं, जैसा भी महसूस कर रहे हैं, उसे उसी रूप में बाहर आने दे।

विपरीत प्रतिक्रिया ना करें।

याद रखें, इंसान हमेशा खुश नहीं रह सकता। जीवन में दुख का आना स्वाभाविक सी बात है। इसीलिए आज से ही आप अपनी भावनाओं की अनदेखी करना छोड़ दें। आशा है आप इस बात पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित करेंगे कि वह कौन सी बात है जो आपको परेशान या चिंतित कर रही है और उसका हल निकालने की कोशिश करें।

✴ समय की मांग को समझने का प्रयास करें :

मित्रों, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी परिस्थिति में आप बहुत अधिक क्रोधित हो गए हैं और बाद में आपको इसका पछतावा हुआ हो? या फिर कभी ऐसा हुआ हो कि किसी बात को लेकर आपने बहुत ही उदासीन रवैया दिखाया हो और बाद में आपको उसका अफसोस हो?

हम सबके जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहां हम उपयुक्त भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं कर पाते हैं। ऐसा खासकर तब होता है जब हमारे सामने कोई तनावपूर्ण स्थिति बने। ऐसी स्थिति में या तो हम आवश्यकता से अधिक उत्तेजित हो जाते हैं, या फिर कुछ ज्यादा ही उदासीन हो जाते हैं। यह दोनों ही स्थितियां दर्शाती हैं कि आप भावनात्मक तौर पर अपरिपक्व को दर्शाती है।

इसका अर्थ यह है कि आप इस बात को समझने में असफल हो गए कि उस समय आपको क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी। अधिक उत्तेजना भावनाओं का अनियंत्रित होने का परिणाम है और आवश्यकता से अधिक उदासीनता का अर्थ है कि आप अपनी भावनाओं की अनदेखी कर रहे हैं।

इस समस्या का निवारण करने के लिए आपको आज से ही यह सोचना शुरु करना होगा कि आप जिस परिस्थिति में है वह परिस्थिति आपसे क्या मांग कर रही है। जब भी आप किसी तनावपूर्ण स्थिति में पड़े तो प्रतिक्रिया देने से पहले यह सोचे कि आपको क्या करना चाहिए और किस प्रतिक्रिया का क्या परिणाम होगा।

यदि आप क्रोध में है तो आपको यह सोचना होगा कि इससे क्रोध का क्या परिणाम होगा और इससे कैसे बचा जाए। ऐसा करने से आप अधिक उत्तेजित होने से बच पाएंगे और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल हो पाएंगे।

यह प्रक्रिया लंबी है। कई बार इसका प्रयोग करने पर आप इस पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर पाएंगे। यह आदत आपको अस्थिरता से स्थिरता की ओर और अपरिपक्वता से परिपक्वता की ओर ले जाएगी। इसीलिए हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि समय की क्या मांग है।

✴ जीवन में घट रही घटनाओं से खुद को बहुत अधिक प्रभावित ना होने दें :

मित्रों, जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे जीवन में रोज कुछ नया घटित होता रहता है। कभी अच्छे पल आते हैं, तो कभी बुरे। कभी हम बहुत खुश होते हैं तो कभी बहुत उदास। यह जीवन का हिस्सा है जिससे हम सबको होकर गुजरना पड़ता है।

यह मानव का स्वभाव और उसकी प्रकृति है कि सुखद और दुखद क्षण दोनों ही व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। यदि और गहराई से समझें तो सुख और दुख के क्षण हमारी भावनाओं को अलग-अलग तरह से प्रभावित करते हैं।

ऐसे में कुछ व्यक्ति भावनाओं के इन बदलावों से बहुत अधिक अस्थिर महसूस करने लगते हैं। खासकर ऐसा तब होता है जब हमारे जीवन में कोई दुखद घटना अकस्मात घट जाए। यह हमें मानसिक रूप से बुरी तरह से प्रभावित करती है और इससे उबर पाना भी काफी मुश्किल हो जाता है।

लेकिन भावनाओं की इस जाल में फंसना आपकी सफलता में बहुत बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। अपने लक्ष्य के लिए दिन-रात कार्य कर रहा व्यक्ति यदि मानसिक रूप से असंतुलित हो जाए तो संभावित सी बात है कि उसका ध्यान उसके लक्ष्य से भटक जाएगा और चाह कर भी वह दोबारा उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएगा।

यह स्थिति आजकल लाखों युवाओं की है कि मानसिक तनाव उनके विकर्शन का कारण बनता जा रहा है। इसीलिए आपको स्वयं को स्थिर रखना सीखना होगा। जीवन में जो भी घट रहा है उससे अपने आप को बहुत अधिक प्रभावित ना होने दें।

इसके लिए आपको भावनात्मक रूप से मजबूत होने की आवश्यकता है। संयम और धैर्य का आचरण करना सीखें और दुख और सुख, हर परिस्थिति में समान रहने का प्रयास करें।

निष्कर्ष :

तो देखा आपने मित्रों, जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके किस प्रकार आप खुद को एक परिपक्व व्यक्ति बना सकते हैं। ऐसा करने से आप अपनी भावनाओं पर शत प्रतिशत नियंत्रण रख पाएंगे। इस लेख को पढ़ने के बाद आप यह जान गए होंगे कि मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक परिप्रेक्ष्य व्यक्ति के जीवन में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है।

भावनात्मक रूप से असंतुलित व्यक्ति जीवन में कभी संतुलित नहीं हो सकता और न ही कभी सफल हो सकता है, क्योंकि सफलता की शुरुआत हमारे मन से ही होती है। इसीलिए आज से अपने कौशलों को निखारने के साथ ही भावनात्मक संतुलन पर भी ध्यान देना प्रारंभ कर दें।

यह आगे जाकर आपके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। आशा है आज का यह लेख आपको बहुत पसंद आया होगा। यदि आपके मन में इस लेख से जुड़े कोई भी प्रश्न अथवा सुझाव हो तो उन्हें हमारे साथ साझा करना बिल्कुल ना भूलें। आप स्वयं को भावनात्मक रूप से नियंत्रित और संतुलित रखने के लिए क्या करते हैं, यह भी हमें लिखकर अवश्य बताएं।

अपनी राय पोस्ट करें

ज्यादा से ज्यादा 0/300 शब्दों

पोस्ट

सुबह का समय क्यों है मुल्यवान

सुबह मिलेगा समय चुराने का अवसर !

जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने !

समय चुराने का तात्पर्य किसी और के समय को चुराना नहीं है, बल्कि दिन के 24 घंटों में से उस समय का उपयोग करना है जिसे आप यूं ही गवा रहे हैं। यदि आपने बेकार हो रहे समय का इस प्रकार उपयोग कर लिया तो ऐसी स्थिति में आपके पास उस व्यक्ति की तुलना में अधिक समय होता है जो देर तक सोते रहता है।

यदि आप सुबह 8:00 बजे के स्थान पर 5:00 बजे ही उठ जाते हैं, तो सामान्य दिनों की तुलना में आपके पास उस दिन 3 घंटे अधिक होंगे। अब सोचिए कि इन तीन घंटों में आप कितने कार्यों को निपटा सकते हैं।

images (7).jpeg

➤ यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह 3 घंटे आपके लिए अमूल्य होंगे। आप इस समय में अपनी पढ़ाई का बड़ा हिस्सा कवर कर सकते हैं।

images (9).jpeg

➤ कामकाजी लोग इन 3 घंटों में उन कामों को निपटा सकते हैं, जो दिन में व्यस्तता के कारण वह नहीं कर पाते।

images (4).jpeg

➤ यह अतिरिक्त समय उन लोगों के लिए कोहिनूर हीरे समान है जो पूरे दिन में अपने लिए कुछ खास वक्त नहीं निकाल पाते। इस समय को खुद को समर्पित कर के आप अपना मानसिक, भावनात्मक विकास कर सकते हैं।

images (5).jpeg

➤ यदि आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, और समय के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो सुबह के यह कुछ घंटे आपके लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

images (10).jpeg

➤ इसके साथ ही यदि आप योग व्यायाम आदि नहीं कर पाते हैं तो आप इस समय को ध्यान, योग - व्यायाम आदि के लिए निकाल सकते हैं।

images (6).jpeg

यदि आप दिन में कुछ अधिक समय की अपेक्षा करते हैं तो भला सुबह के समय से अच्छा और क्या हो सकता है।

सुबह उठने के स्वास्थ्य संबधी लाभ

मित्रों, जब कभी भी आप सुबह बहुत जल्दी उठते हो तो आपने महसूस किया होगा कि उस दिन आप पूरे दिन तरोताज़ा, चुस्त व सक्रिय महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ देर तक सोते रहने से बाकी के समय भी आप सुस्त महसूस करते हैं।

मित्रों, यदि आप स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो सुबह जल्दी उठना आपको अपनी बीमारी से छुटकारा पाने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना इस प्रकार से की है, कि हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए।

यह नियम प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए बनाया है, मानव शरीर के लिए रात सोने के लिए और सुबह जागने के लिए बनाई गयी है। यदि हम इसके अनुरूप कार्य करेंगे, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन यदि हम इसके प्रतिकूल जाएंगे तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।

आइये चलते-चलते जाने सुबह उठने के स्वास्थ्य संबंधी लाभों को :

✴ सुबह का समय व्यायाम करने के लिए बेहतरीन समय है। इस समय किया गया योग - व्यायाम और प्रणायाम सबसे अधिक फायदेमंद है।

images.jpeg

✴ सुबह की प्रदूषण मुक्त ताजी और ठंडी हवा श्वास संबंधी विकारों, जैसे अस्थमा इत्यादि में राहत पाने के लिए बेहद कारगर है।

✴ यदि बात शरीर को विटामिन डी उपलब्ध कराने की आती है तो सुबह की धूप से अच्छा विकल्प और नहीं है। सबह की धूप शरीर पर लगाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है।

✴ सुबह का समय अवसाद, तनाव से ग्रसित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है। जो लोग मानसिक शांति चाहते हैं वह सुबह के समय सैर कर एवं प्रकृति के साथ समय बिता कर अपनी स्थिति में चमत्कारिक परिवर्तन देख सकते हैं।

प्रेरणादायक कहानी - लालच का परिणाम

मित्रों, आपने तेनालीराम की कई कहानियां सुनी होंगी। उनकी हाजिर-जवाबी और बुद्धिमता के किस्से घर-घर में मशहूर हैं। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो आपको गुदगुदाएगी भी, और एक महत्वपूर्ण सीख भी देगी।

विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अति उदार स्वभाव के थे। वह अपनी प्रजा की हर आवश्यकता पूरी करते थे। राजा के इसी उदार स्वभाव के कारण विजयनगर के ब्राम्हण बड़े ही लालची हो गए थे। वह हमेशा किसी ना किसी बहाने से अपने राजा से धन वसूल किया करते थे। एक दिन राजा कृष्ण देव राय ने उनसे कहा - "मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? " यह सुनते ही एक ब्राम्हण ने कहा- " यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम दान दें तो आपकी मां की आत्मा को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप ही पहुंच जाता है।" सभी ब्राह्मणों में ने इस पर हां में हां मिलाई।

राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों के इस प्रस्ताव से सहमत हुए। उन्होंने ब्राह्मणों को 108 सोने के आम दान कर दिए। इन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मौज हो गई। जब तेनालीराम को इस घटना की सूचना मिली, तब ब्राह्मणों के इस लालच पर उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन लालची ब्राह्मणों को सबक सिखाने की ठान ली।

जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई, तो 1 महीने बाद उन्होंने ब्राह्मणों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं । खाने-पीने और बढ़िया माल पानी के लालच में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर पर जमा हुए।

क्रोध न करने के लिए प्रेरित करते सुवचन

क्रोध न करने के लिए प्रेरित करते सुवचन.jpg

✴ जिस प्रकार रोग शरीर का छय करता है, उसी प्रकार क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।

✴ क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाता है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने से प्राणी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

✴ क्रोधी एवं अहंकारी व्यक्ति को दुनिया में कोई अधिक क्षति नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि यह 2 गुण ही उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त हैं।

✴ एक क्रोधी व्यक्ति में तीन गुण गौंण होते हैं - धैर्य, बुद्धि, एवं संवेदनशीलता। इन तीन गुणों के नाश के कारण उसकी सफलता, प्रतिष्ठा, एवं संबंधों का नाश हो जाता है।

✴ जब ज्ञान की वर्षा होती है, तब क्रोध की अग्नि धुआं बनकर उड़ जाती हैं। अतः ज्ञान अर्जित करें।

सफलता के लिए सुबह की पांच अच्छी आदतें

सफलता के लिए सुबह की पांच अच्छी आदतें.jpg

क्या आपने गौर किया है कि जिस दिन आप बहुत सुबह उठ जाते हैं, उस दिन आप तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं?

साथ ही सुबह के वातावरण में घूमने से एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुबह का समय बहुत अद्भुत होता है। यदि आप जल्दी उठते हैं, तो अन्य दिनों के मुकाबले आपके पास दिन के कुछ घंटे और बढ़ जाते हैं, जिसे आप सफलता पाने के लिए निवेश कर सकते हैं।

जी हां दोस्तों ऐसा बहुत कुछ है जो सुबह के समय करने से आप लाभान्वित हो सकते हैं। इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सुबह की वह पांच आदतें जो सफलता पाने में आपकी मदद कर सकते हैं :

अत्यधिक सोचनें की आदत से कैसे छुटकारा पाएँ

अत्यधिक सोचनें की आदत से कैसे छुटकारा पाएँ.jpg

कई बार ऐसा होता है कि कुछ चीजों या घटनाओं को लेकर हम इतना अधिक चिंतन मनन करने लगते हैं, कि वह विचार हमें परेशान करने लग जाते हैं। कभी कभार ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है, किंतु यदि आप हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर देर तक सोचनें लगे, तो यह आपके लिए समस्या बन जाएगी।

कुछ लोग तो इस आदत से इस तरह प्रभावित होते हैं, कि छोटी से छोटी चीज़ करने से पहले अनावश्यक ही हजारों बार सोचते हैं, और कुछ कर देने के बाद भी उस पर घंटों तक विचार करते रह जाते हैं। इस तरह अति अधिक सोचने से न जाने कौन-कौन से विचार मन में आने लगते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह व्याकुल हो जाता है। साथ ही, आपका आत्मविश्वास भी धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि आप हर कार्य को लेकर संशय में रहने लग जाते हैं।

इस आदत को छोड़ देना ही बेहतर होगा। लेकिन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने ही विचारों में उलझ कर रह जाते हैं। इसीलिए हम आपके लिए कुछ ऐसे बिंदु लेकर आए हैं, जिन पर गौर करने पर आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा सकते हैं :

झगड़े से बचने के लिए सुझाव

झगड़े से बचने के लिए सुझाव.jpg

दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि क्रोध के आवेश में आकर हम लड़ाई - झगड़े में कूद पड़ते हैं, लेकिन जब शांत दिमाग से इस बारे में सोचते हैं, तब हमें अपने कृत्य का पछतावा होता है।

केवल यही नहीं दोस्तों, झगड़े के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। बाद में पछताने से अच्छा है कि हम यह स्थिति आने ही ना दें। अक्सर ऐसी स्थितियों में हम समझ नहीं पाते की क्या उचित है, इसीलिए अंततः हम झगड़े में कूद पड़ते हैं। लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए कि जितना हो सके आप झगड़े को टाल सके, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।

हल्दी और सौंठ की प्रेरणादायक कहानी

हल्दी और सौंठ की प्रेरणादायक कहानी.jpg

दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही रोचक कहानी सुनाने वाले हैं। यह कहानी है दो बहनों, हल्दी और सोंठ की। हल्दी स्वभाव से परोपकारी और दयालु थी लेकिन सौंठ घमंडी और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह हमेशा अपनी बड़ी बहन हल्दी पर हुक्म जमाया करती थी। दिन यूं ही बीते रहे।

1 दिन दोनों बहनों के घर उनकी बूढ़ी नानी का संदेशा आया। बूढ़ी नानी ने अपनी मदद के लिए एक बहन को बुलाया था। संदेशा पढ़ते ही सौंठ समझ गई कि वहां जाकर उसे ढेरों काम करने पड़ेंगे, इसीलिए उसने तुरंत ही बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। जब हल्दी ने संदेश पढ़ा, वह तुरंत वहां जाकर उनकी सेवा करना चाहती थी। इसीलिए माता पिता की आज्ञा लेकर वहां अपनी नानी के घर के लिए निकल पड़ी।

रास्ते में उससे एक गाय दिखाई दी । हल्दी को देखकर उस गाय ने मदद के लिए उसे पुकारा। हल्दी तुरंत वहां गई और उसने गाय से पूछा कि उसे क्या कष्ट है। इस पर गाय ने कहा कि उसके आस पास बहुत सारा गोबर इकट्ठा हो गया है। तो क्या हल्दी इससे साफ कर देगी। हल्दी अपने परोपकारी स्वभाव के कारण तुरंत गाय की मदद के लिए मान गई और सारा गोबर साफ कर दिया। गाय बहुत प्रसन्न हुई । अब हल्दी ने गाय से विदा ली और आगे चल पड़ी। फिर उसे एक बेर का पेड़ दिखा जिसके आस पास बहुत से पत्ते बिखरे पड़े थे। हल्दी को वहां से गुजरता देख बेर ने भी उस से मदद मांगी, हल्दी ने उसके सभी बिखरे पत्तों को साफ कर दिया और बेर अति प्रसन्न हुआ। फिर कुछ दूर आगे बढ़कर उससे एक पर्वत दिखा जिसके आसपास कई ईट पत्थर थे। हल्दी ने पूरे मन से सभी ईंटों को साफ कर दिया और फिर नानी के घर की ओर चल पड़ी।

कमज़ोर आर्थिक स्थिति का सामना कैसे करें

कमज़ोर आर्थिक स्थिति का सामना कैसे करें.jpg

जीवन में कभी न कभी हम सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसे में इनसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कमज़ोर आर्थिक स्तिथि से निपटने के लिए आपको बहुत धैर्य एवं सकारात्मकता के साथ कदम बढ़ाने होंगे। हालातों से हार मान लेने से काम नहीं चलेगा। आपको इनसे उबरने के लिए अपने हौसले को बनाये रखना होगा। दोस्तों, भूले नहीं कि रात के बाद दिन ज़रूर आता है, इसी तरह दुःख के बाद सुख आना भी निश्चित है। तो आइये जानते हैं, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से आप किस तरह निपट सकते है :

✴ आवश्यकताओं को सीमित करें

जब आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तब आपको पैसे बचाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। आर्थिक हालत चरमरा जाने पर आवश्यकताएं तो उतनी ही रहती हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए पूंजी कम पड़ जाती है। ऐसे में सभी पैसे खर्च कर देना बुद्धिमानी नहीं होगी । अपनी जरूरतों को कम करें, पैसे केवल वहीं लगाएं जहां बहुत जरूरी है। जिसके बिना काम चलाया जा सकता है, उसमें पैसे खर्च ना करें ।

✴ केवल सोंचे नहीं, करें भी

हमारे पास पैसे नहीं है, अब क्या होगा क्या? क्या करना चाहिए? ऐसे सवाल मन में आने स्वभाविक हैं, लेकिन केवल इन पर सोचतें रहने से कुछ बदलने वाला नहीं है।आपको उस दिशा में काम करना होगा। अपनी माली हालत को वापस पटरी पर लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी, या फिर यह कहे कि दोगुना परिश्रम करना होगा। ऐसे में आलस्य का पूर्णतः त्याग कर दें । याद रखें कि आप आज काम करेंगे, तभी कल बेहतर होगा। फिर कभी आप ऐसी स्थिति में ना पहुंचें, इसके लिए कठोर परिश्रम कीजिए और सफल बनिए।

खेल में बेहतर प्रदर्शन कैसे करें

खेल में बेहतर प्रदर्शन कैसे करें.jpg

पेश है खेलकूद में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपाय:

☸ सही पोषण

खेलकूद में शारीरिक श्रम होता है। आप खेल के मैदान में अधिक देर तक टिके रहें, इसके लिए आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। यह ऊर्जा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से प्राप्त होती है। यदि आप स्वस्थ नहीं होंगे, तो खेल में बेहतर प्रदर्शन करना संभव नहीं है। इसीलिए आपको अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, अंडे, पनीर, अंकुरित बीज इत्यादि शामिल करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि आपका शारीरिक विकास सही ढंग से हो, और खेल में अधिक ऊर्जा की खपत को आप पूरा कर पाए।

☸ अभ्यास एवं प्रशिक्षण

हीरा जितना घिसा जाता है, उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार आप जितना अभ्यास करेंगे, उतना ही अपने खेल में अच्छे होते जाएंगे । केवल 1 दिन खेल लेने से आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। आपको निरंतर खेल के कौशल को निखारने की जरूरत है। खेल के मैदान में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको कड़ी मेहनत और अभ्यास करना होगा। जिन जगहों पर आप कमजोर हैं, अभ्यास करके उसे अच्छा करें। रोज कुछ घंटे अभ्यास के लिए निकालें। साथ ही एक अच्छे शिक्षक से बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकि आपको अपने खेल के सभी नियम, सभी बारीकियाँ समझ में आए और आपके अभ्यास को सही दिशा मिले।

☸ अनुशासन

खिलाड़ी का अनुशासित होना अत्यावश्यक है। बिना अनुशासित जीवन शैली के आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। अनुशासन आपको हर चीज में स्थापित करना होगा। कड़ी दिनचर्या का पालन करें, अभ्यास प्रतिदिन एवं समय पर करें, 1 दिन भी अभ्यास छूटने नहीं पाए, समय के पाबंद बनें, आज का काम खत्म करें, भोजन में अनुशासन रखें। तभी जाकर आप अपने खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे ।

विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण

विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण.jpg

दोस्तों, हम यह तो जानते हैं कि सकारात्मकता जब आवश्यकता से अधिक हो जाए, तब वह विषाक्त सकारात्मकता का रूप ले लेती है, जो कि हानिकारक है। हम कब इसके शिकार हो जाते हैं, पता भी नहीं चल पाता। यही नहीं, हमारे आसपास लोग इस से ग्रसित हैं, यह पहचानना भी मुश्किल है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम विषाक्त सकारात्मकता की उपस्थिति को पहचानें, और उसे खत्म करें । आइये जानते हैं विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण :

☸ यदि किसी समस्या के आ जाने पर आप उसका सामना नहीं कर पाते, और समस्या से भागने लगते हैं, लेकिन साथ ही आप खुद को और दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करते हैं आप बिल्कुल सकारात्मक हैं, पूरी तरह से ठीक हैं, तो यह विषाक्त सकारात्मकता का लक्षण है। इसीलिए अवलोकन करें कि कोई समस्या आपको अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही। यदि आप ऐसी स्थिति में भी केवल दिखावे के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसे तुरंत बदलें।

☸ यदि कोई व्यक्ति अधि तनावपूर्ण बातें नहीं सुन पाता, और हमेशा उनसे भागने की कोशिश करता रहता है, तो यह भी विषाक्त सकारात्मकता का ही 1 लक्षण है। ऐसे लोगों में यह डर होता है कि नकारात्मक बात सुनने से उनकी सकारात्मकता पर प्रभाव पड़ेगा, इसीलिए सबसे अच्छी बातें कहने को कहते हैं, और यदि कोई अपनी समस्या लेकर आए, तो वह उससे मुंह मोड़ लेते हैं।

☸ यदि कोई व्यक्ति बहुत ही बुरी परिस्थितियों में, जहां समस्या की गंभीरता पर बात करनी चाहिए, वहां भी "सब अच्छा है" ऐसा कहता रहता है, तो वह भी विषाक्त सकारात्मकता से ग्रसित है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मकता से समस्या को हल करने पर जोर नहीं देता, बल्कि सकारात्मकता के नाम पर उस समस्या को दबाने की कोशिश करता रहता है।

बच्चों के विकास के लिए खेलकूद का महत्व

बच्चों के विकास के लिए खेलकूद का महत्व.jpg

माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएं। बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई पर लगाएं, इसलिए माता-पिता अक्सर उनके खेल के समय में कटौती कर देते हैं । कई माता-पिता तो खेलकूद को केवल समय की बर्बादी मात्र मानते हैं। पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रेरित करना अच्छी बात है, पर उन्हें खेलकूद से दूर रखना आपकी भूल साबित हो सकती है।

कैसे?

इसका जवाब आपको नीचे लिखे बिंदुओं में मिलेगा। इस लेख में हम बच्चों के जीवन में खेलकूद के महत्व के बारे में बात कर रहे हैं। इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद आप की सोच जरूर बदल जाएगी, और आप स्वयं बच्चों को खेल के लिए प्रेरित करेंगे :

शारीरिक मजबूती

खेल बच्चों को मजबूत बनाते हैं। इससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता बढ़ती है, एवं वह अधिक सक्रिय रहते हैं। श्रम करने की आदत आगे जाकर उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, जिससे किसी भी काम को करने में शारीरिक कमजोरी उनके लिए बाधा नहीं बनेगी। खेल के दौरान गिरना एवं चोट लगना उनके दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक सहनशील बनाता है।

मानसिक विकास

भविष्य में जीवन के संघर्षों के सामने टिक पाने के लिए आवश्यक है कि बच्चे मानसिक रूप से भी मजबूत हो। खेल की रणनीति पर चिंतन - मनन बच्चों में बच्चे मानसिक श्रम करते हैं। खेल से मिली हार उन्हें चुनौतियों का सामना करने, एवं हार स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।

अच्छा कैसे लिखें - लेखन कौशल निखारने के सर्वश्रेष्ठ सुझाव

अच्छा कैसे लिखें - लेखन कौशल निखारने के सर्वश्रेष्ठ सुझाव.jpg

कभी नया लिखना होता है तो हम 10 बार सोचते हैं, क्या लिखें? कैसे लिखें? शुरू कैसे करें?

कभी-कभी आपके मन में किसी घटना के बारे में लिखने का विचार आता होगा। आप सहमत होंगे कि बोलना जितना आसान है, लिखना उतना नहीं क्योंकि लिखने का प्रभाव बोलने से अधिक स्थाई और प्रभावी होता है, परंतु शर्त यह है कि हमें प्रभावी ढंग से लिखना आए। जी हाँ, क्योंकि लेखन एक कौशल है। इस लेख में हम यही जानेंगे कि प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जा सकता है:

विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा

लिखित अभिव्यक्ति में हमें चाहिए कि विचारों को क्रमबद्ध करके अपने भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करें । स्वाभाविक और स्पष्ट लिखने का प्रयास करें। स्वच्छता, सुंदरता और सुडौल अक्षर का निर्माण, चौथाई छोड़कर लिखना, अक्षर, शब्द और वाक्य से वाक्य के बीच की दूरी को ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात्, लेखन सुंदर और शब्दों की वर्तनी शुद्ध हो। वाक्य की बनावट भी ठीक होनी चाहिए। साथ ही उसमें व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि ना हो। जो आप कहना चाहते हैं, वही अर्थ निकले और वही दूसरों तक पहुंचे।

अपने अंदर की झिझक को कैसे मिटाएं

अपने अंदर की झिझक को कैसे मिटाएं.jpg

दोस्तों, झिझक या शर्म हम सबों में होती है। किसी में अधिक, तो किसी में कम, लेकिन सब लोग कभी न कभी किसी न किसी स्थिति में शर्माते हैं। किंतु कुछ व्यक्ति तो ज्यादा लोगों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाते।

यह झिझक चिंता का कारण तब बनती है, जब यह आपके विकास में बाधा बन जाती है। तब, जब झिझक के कारण आपकी हानि होने लगे, पढ़ाई या नौकरी में आपका प्रदर्शन खराब होने लगे, या रोजमर्रा के कामों में भी परेशानी खड़ी हो जाए, तब आपको सजग हो जाने की आवश्यकता है। इसे इतना न बढ़ने दें कि आप कुछ भी करना चाहें तो शर्म के कारण पीछे हट जाए।

स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह शर्म बीमारी का रूप ले लेती है, जिसे ऐरिथ्रोफोबिया कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति बात-बात पर शर्म आने लग जाता है। तो अपनी शर्म को खत्म करें, ताकि आप हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत प्रदर्शन कर पाएं।

आत्मविश्वास को बल दे :

झिझक का मुख्य कारण है खुद पर विश्वास की कमी। हम हमेशा खुद को कम करके आंकते हैं । हमें लगता है कि हम में कुछ भी अच्छा नहीं है, और सामने वाले हम पर हसेंगे। पर यह केवल आपकी सोच है। सच्चाई ऐसी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें और हीन भावना मन में ना आने दे। अपनी कमजोरियों को भी आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करें, और अपनी क्षमताओं पर भी भरोसा रखें। यह मानें कि आप अपने आप में खास हैं।

लोगों को प्रभावित कैसे करें

हर कोई चाहता है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए, लोगों के बीच पसंदीदा बने। जब भी हम किसी से मिलते हैं, तो किसी न किसी रूप में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लोगों के ऊपर अपनी छाप छोड़ना एक कला है जो सबको नहीं आती। आप सोचते होंगे कि कैसे कुछ लोग भीड़ में इतने अलग दिखते हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।

मित्रों! कुछ लोगों में यह गुण पहले से होता है, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, और कुछ लोग इसे अपने अंदर विकसित करते हैं। आप भी इस कला को सीख सकते हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे आप खुद को भीर से अलग दिखा सकते हैं I

पहनावे पर ध्यान देना

लोगों की नजर में जो सबसे पहली चीज आती है, वह है आपकी वेशभूषा। अच्छे दिखने वाले व्यक्ति पर स्वतः ही लोगों का ध्यान केंद्रित हो जाता है। किंतु यहाँ अच्छे दिखने का तात्पर्य सुंदर दिखने से नहीं है।

खुद को साफ रखें, वह कपड़े पहने जिन्हें आप पूरे आत्मविश्वास के साथ वहन कर सकें, और जो आपके व्यक्तित्व को निखारे।

बेहतरीन संचार कौशल

अच्छे पहनावे से जितनी जल्दी लोगों का ध्यान आप पर केंद्रित होता है, खराब बातचीत के ढंग से उतनी ही जल्दी लोग आपसे मुंह मोड़ लेते हैं। लोगों को प्रभावित करने के लिए जरूरी है कि आपकी बातें उन्हें आपकी तरफ आकर्षित करें। इसके लिए संचार की बारीकियों पर ध्यान दें। शुद्ध एवं साफ भाषा का प्रयोग करें, आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, आवाज़ के उतार चढ़ाव पर ध्यान दें, शारीरिक हाव-भाव का ख्याल रखें, और बात करते समय आई कांटैक्ट बना कर रखें।

आलस्य पर विजय प्राप्त करें

आलस्य पर विजय प्राप्त करें.jpg

दिन भर सोते रहना कितना अच्छा लगता है ना !

हम उन दिनों की कल्पना करते हैं, जब हम सिर्फ आराम करें। न जाने कितने ही कामों को न करने की इच्छा के कारण हम बहाने बना लिया करते हैं। यह अनिच्छा ही आलस्य है, जिसे हमारे शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आइए इस श्लोक को पढ़ें :

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्

आधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्

अर्थात आलस करने वाले को विद्या कहां? जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहां? निर्धन व्यक्ति के पास मित्र कहां? और मित्र के बिना सुख कहां?

इसीलिए आप भी सावधान हो जाएं, और आलस करना छोड़ें।

उपाय :

अनुशासन में रहें और नियम बनाएं

आलस को खत्म करने के लिए आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। खुद के लिए कड़े नियम बनाएं, और उन नियमों को तोड़ने की इजाजत खुद को ना दें। मन के बहकावे में बहकने से खुद को रोकें, और मन ना होने पर भी किसी भी काम को नजरअंदाज ना करें।

नियम टूटने पर सजा के लिए तैयार रहें

खुद के बनाए नियम तोड़ना आसान है, क्योंकि आपको सजा देने वाला कोई नहीं होता। हम बड़ी आसानी से तय किए गए नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं इसीलिए नियमों के साथ सजा भी तय करें। जब भी नियम टूटें, तो खुद को कड़ा दंड दें। इससे आपको ना चाहते हुए भी आलस को त्यागना ही होगा।

खुद को सक्रिय बनाएं

ऐसी क्रियाओं में स्वयं को संलग्न करें, जिनमें आपकी सक्रियता बढे। सुबह दौर लगाएं, शारीरिक कार्य करें, खेल खेले इत्यादि। इससे आपकी आलसी प्रवृत्ति बदलेगी और आप सक्रिय हो पाएंगे।

दृढ़ संकल्प

बिना दृढ़ संकल्प के आपके सारे प्रयास निरर्थक रह जाएंगे। इसीलिए मन में ठान लीजिए, कि आपको आलस छोड़ना है। साथ ही बीच-बीच में स्वयं को इस दिशा में बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें।

स्वस्थ रहने के लिए खुद को प्रकृति से जोड़ें

स्वस्थ रहने के लिए खुद को प्रकृति से जोड़ें.jpg

आजकल हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग का शिकार है। पहले की तुलना में अब लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं। यहां तक कि नवजात शिशु भी जन्म के साथ ही जॉन्डिस, निमोनिया जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। यदि आज से कुछ दशक पहले की तस्वीर देखी जाए, तो लोग अधिक स्वस्थ हुआ करते थे, और कहीं अधिक लंबा जीवन जिया करते थे। स्वास्थ्य के स्तर में इतनी गिरावट का सबसे मुख्य कारण है बदलती जीवनशैली।

आधुनिक जीवनशैली उपकरणों से घिरी हुई है। हम प्रकृति से दिन-ब-दिन दूर होते जा रहे हैं।

घर में पेड़ पौधे नहीं, बल्कि मोबाइल फ्रिज जैसे ढेरों उपकरण हैं। सूर्य एवं चंद्रमा की रोशनी छोड़ हम बनावटी लाइटों के बीच रहते हैं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ हमारा भोजन हैं, कच्चे फल सब्जियों की जगह हम जंक फूड खाना पसंद करते हैं, व्यायाम की जगह स्थूल जीवन शैली के हम आदी हो गए हैं, यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और जिस जल को ग्रहण करते हैं, वह भी शुद्ध नहीं है। ऐसे में कैसे स्वास्थ्य की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है?

अपने आसपास देखिए। प्रकृति है?

नहीं!

जिस प्रकृति का हम हिस्सा हैं, जिसने हमें बनाया है, उससे दूर होकर हम कैसे ठीक रह सकते हैं ? अपने शरीर की संरचना को समझिये। यह मशीनों के लिए नहीं बनी है। इसीलिए स्वस्थ रहना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है, जब तक आप खुद को प्रकृति से नहीं जोड़ेंगे।

यह सच है कि आप पूरी तरह से आधुनिकता के इस मशीनी माहौल से नहीं बच सकते हैं, लेकिन अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो आप कर सकते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति की गोद में फिर से लौटने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं:

युवा पीढ़ी मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से कैसे छुटकारा पा सकते हैं
युवा पीढ़ी मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से कैसे छुटकारा पा सकते हैं.jpg
आज या आप में से कितने हैं जो फोन के बिना 1 मिनट भी नहीं रह पाते? और ऐसे कितने हैं जो बिना मतलब सोशल मीडिया के पोस्ट को स्क्रॉल करते रहते हैं?

आपने से अधिकांश लोग इनमें से किसी ना किसी आदत के आदी होंगे। आजकल हर दूसरा व्यक्ति इस आदत का शिकार है। सोते, जागते, खाते, पढ़ते, हर वक्त लोग सोशल मीडिया पर जमे रहते हैं, जहां घंटों कब बीत जाते हैं, पता भी नहीं चलता। कुछ खाया, या पिया इसकी भी सुध नहीं रहती। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग एक दूसरे से बात करने से ज्यादा फोन पर चैटिंग करना पसंद करते हैं।

ऐसा नहीं है कि इस स्थिति से हम अनभिज्ञ हैं, हम सभी सोशल मीडिया की आदत के बुरे प्रभावों से पूरी तरह वंचित हैं, लेकिन फिर भी कुछ नहीं कर पा रहें। मानो जैसे हम इस जाल में बुरी तरह से फंस गए हों। यह लत बिल्कुल नशे की लत की जैसी है, जो बुरी है यह तो हम जानते हैं, पर इसे छोड़ नहीं पा रहे। इस के चक्कर में पढ़ाई, कैरियर, परिवार, संबंध, सब पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

आखिर करें तो क्या करें ?

हम जानते हैं कि आप इस लत से परेशान हैं, लेकिन करना क्या है यह नहीं समझ पा रहे। तो घबराइए नहीं। कहते हैं ना, जहां चाह वहां राह !

यही राह दिखाने के लिए हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ बेहद सरल किंतु प्रभावी उपाय जो आपको इस लत को छोड़ने में मदद कर सकते हैं I
अधिक पढ़ने पर भी अच्छे अंक क्यों नहीं आते - उपाय

अधिक पढ़ने पर भी अच्छे अंक क्यों नहीं आते - उपाय.jpg

आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा, कि कुछ बच्चे कम पढ़कर भी अच्छे अंक कैसे ले आते हैं?

जबकि कुछ बच्चे जी तोड़ मेहनत करते हैं, पर उनके अंक उस मेहनत के अनुरूप नहीं होते। जब बच्चे साल भर पूरी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, और तब भी उनके अंक संतोषजनक नहीं होते, तब उनका मनोबल टूट जाता है। वह बहुत निराश हो जाते हैं। ऐसे में बच्चे तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। बच्चों के कोमल मन पर निराशा की यह छाया नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह नन्हे फूल मुरझा जाएंगे।

इस स्थिति में फंसे बच्चों की मदद करने के लिए आज के लेख में हम बताने जा रहे हैं, कि आपको अच्छे अंक लाने के लिए कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है :

☸ सबसे पहली सीख, रटे नहीं, कंठस्थ करें।

रटंत विद्या बहुत हानिकारक है। बिना भावार्थ समझें केवल शब्दों या वाक्य को याद कर लेने से आपके ज्ञान में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी चीजें आपको बस कुछ समय तक ही याद रहती है। इस तरह से याद करने वाले बच्चे, तब पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जब सवाल थोड़ा भी घुमा दिया जाता है। क्योंकि आपने जो रट लिया, आपको बस उतना ही आता होता है। इसीलिए याद रखे बच्चों, आप जो भी पढ़ रहे हैं, उससे रटे नहीं, बल्कि समझे कि पाठ में आपको क्या समझाया जा रहा है। एक बार जब विषय वस्तु आपके समझ में आ जाएगी, तब आप उससे संबंधित प्रश्नों को हर तरह से हल कर पाएंगे ।

सेवाएं

कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।

राय

क्या पढ़ाई में आपका मन नहीं लगता है?
नमस्कार मित्रों ! शायद आपका मन कुछ नया पढ़ने का कर रहा है और शायद आपके मन की बात हम तक पहुंच गई है। इसीलिए हम आपके सामने हाजिर हैं एक और बेहतरीन लेख लेकर जो न केवल शिक्षाप्रद है, बल्कि हजारों युवाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने में सक्षम है। मित्रों, जीवन में कुछ करने के लिए, एक अच्छा मुकाम हासिल करने के लिए और सफलता पाने के लिए पढ़ाई से जरूरी और कुछ भी नहीं है। यह विषय चिंताजनक है कि आज की युवा पीढ़ी इस बात के महत्व को भूलती जा रही है और पढ़ाई करना उनकी...View more
क्या आप सेल्फ स्टडी करते हैं : जानें क्यों है ज़रूरी सेल्फ स्टडी
नमस्कार मित्रों! आज हम आपके सामने हाजिर है एक नए लेख को लेकर जो एक ऐसे विषय पर चर्चा करता है जिसकी लोकप्रियता शायद कम होती जा रही है। इस विषय को आज की चर्चा का विषय चुनने का कारण यह है कि हम आजकल इस बारे में कम बात करने लग गए हैं और इसके महत्व को भूलते जा रहे हैं। इसीलिए यह चर्चा न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि आवश्यक भी है। तो मित्रों, आज हम बात कर रहे हैं स्वाध्याय या सेल्फ स्टडी के महत्व पर। मित्रों, इससे पहले कि हम इस लेख को शुरू करें हमारे पास...View more
क्या आप खुश हैं : आइये चलें एक बेहतर जीवन की ओर
मित्रों, यदि आपसे यह सवाल पूछा जाए कि क्या आप अपने जीवन में खुश हैं तो आपका जवाब क्या होगा? कई लोगों के लिए यह प्रश्न काफी जटिल साबित होता है क्योंकि हर व्यक्ति के मन में अधूरी इच्छाएं और आकांक्षाएं होती हैं, और उन्हें नजरअंदाज करके यह कहना कि "हम खुश हैं" उनके लिए काफी मुश्किल बन जाता है। गौरतलब है कि ज्यादातर लोगों का जवाब हमेशा "ना" में होता है। भला ऐसा क्यों है ? जब हम से यह सवाल पूछा जाता है कि हम अपने जीवन में खुश हैं या नहीं, तब हम इस प्रश्न का अवलोकन...View more
चरित्रवान कैसे बने
मित्रों, हम अपने जीवन में कई सारे लोगों से मिलते हैं। कुछ लोगों से मिलने के बाद हमारे मुख से स्वतः ही निकलता है कि वाह! कितना उत्तम चरित्र है। वहीं हम कभी-कभी कुछ ऐसे लोगों से भी दो-चार होते हैं जिनका व्यवहार एवं आचरण अनुचित होता है और हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस व्यक्ति का चरित्र ठीक नहीं है।चरित्र के मापदंड पर व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने का पैमाना निर्भर करता है। अर्थात चरित्र एक महत्वपूर्ण गुण है। मित्रों, कहा जाता है कि चरित्र व्यक्ति के अंतर्मन का आईना होता है। चरित्र केवल शब्द मात्र...View more
आइए साक्षात्कार के डर को भगाएं
नमस्कार पाठकों ! आशा है कि आप सब ठीक होंगे और अपने कामों में व्यस्त होंगे। यूँ तो हमारी कोशिश हमेशा यही होती है कि अपने प्रत्येक लेख से हम पाठकों की सभी श्रेणी को संतुष्ट एवं आनंदित करें, किंतु आज का लेख खास तौर पर हमारे कुछ मित्रों के लिए है। हमारे पाठकों की सूची में जितने युवा मित्र हैं, आज का यह लेख उन सभी के लिए बहुत खास होने वाला है क्योंकि आज की चर्चा खास तौर पर युवाओं एवं उनके करियर से जुड़े एक महत्वपूर्ण विषय पर समर्पित है। मित्रों, आजकल युवा पढ़ाई एवं करियर को...View more
परिक्षा के डर को दूर करने के लिए सुझाव
 नमस्कार मित्रों, आज का लेख ऐसे विषय पर आधारित है, जो खासकर विद्यार्थियों के लिए है। यह उन अभिभावकों के लिए भी उपयोगी है जिनके बच्चे स्कूल अथवा कॉलेज में शिक्षारत है। जैसा कि आप शीर्षक पढ़ कर समझ गए होंगे, आज के लेख में हम परीक्षा के बारे में चर्चा कर रहे हैं। मित्रों, अक्सर यह देखा जाता है कि बच्चे परीक्षा से बहुत डरते हैं। परीक्षा का नाम सुनकर ही उनके चेहरे उतर जाते हैं और ऐसा लगता है मानो यह उनके जीवन का सबसे डरावना अध्याय है। जी हां, कई छात्रों की स्थिति बिल्कुल ऐसी है।ऐसे में...View more

मेरा विषय

दोहा-संग्रह
1) रहीम के दोहे2) कबीर के दोहे 3) सूरदास के दोहे4) बिहारी के दोहे5 ) तुलसीदास के दोहेView more
समस्या का समाधान
समस्या हल करने के टिप्स और ट्रिक्सView more
असफलताओं से सीखो
असफलता दिखाती है नई राह I असफलता ही सफलता का स्तम्भ है I असफलता, सफ़लता तक पहुँचने का पहला कदम है IView more
संघर्ष और सफलता
सफलता पाने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। संघर्ष ही है सफलता की कुंजी | ”जिस संघर्ष में आज आप हैं वो आपके कल के लिए ताकत विकसित कर रहा है।” – रॉबर्ट टयूView more
प्रति दिन कुछ नया सीखें
कुछ नया सीखें हर दिन - किताबें पढ़ें, सीखें नई तकनीक इंटरनेट का उपयोग नई जानकारी सीखने के लिए करिए।View more
कलम, कागज़ और... मैं!
नमस्कार! मैं आकाशवाणी (All India Radio) की कलाकार पल्लवी ठाकुर हूँ। लेखन में मेरा रुझान है और यह मेरा काम भी है। मैं बिहार की रहने वाली हूँ। धन्यवाद! View more

मेरा ग्रुप

0 टिप्पणी

अभी कोई टिप्पणी नही