सकारात्मक सोच: सफलता का स्त्रोत
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अगर सोच सकारात्मक है तो सफलता भी कदम अवश्य ही चूमती है। सकारात्मक सोच किसी भी मनुष्य को कहीं से कहीं पहुंचा सकती है।


किसी भी कार्य को करने से पहले संदेह में पड़ना या डर जाना, कार्य को करने से पहले असमंजस में पड़े रहना, ये सब नकारात्मक सोच की निशानियां हैं। और जिस कार्य के प्रारब्ध में ही इतने संशय उत्पन्न हो जाएं तो कार्य का शुरुआत से पहले ही विफल होना तय है।


इतिहास में कितने ही उदाहरण ऐसे भरे पड़े हैं कि सेना के नायकों ने कम सैन्यबल होते हुए भी कितनी ही महत्वपूर्ण लड़ाइयों को जीता। वह भी केवल सकारात्मक सोच के बल पर। सकारात्मक सोच के बल पर अपनी सेना में स्फूर्ति और जोश का संचार करके कठिन से कठिन युद्ध को भी जीता गया।


किसी भी कार्य की सफलता को उसके चरम तक पहुंचाने के लिए खुद पर विश्वास होना बहुत जरूरी है और खुद पर विश्वास आता है सकारात्मक सोच होने पर।
छात्र किसी भी कठिन से कठिन विषय को भी दृढ़ता के साथ उत्तीर्ण कर सकता है परन्तु उसके लिए भी सबसे जरूरी चीज है खुद पर विश्वास। विश्वास यह कि मै अमुक कार्य कर सकता हूं। और आत्मविश्वास आता है सकारात्मक सोच का संचार होने पर।


जिसमे आत्मविश्वास की कमी होती है वह व्यक्ति हमेशा हताशा से घिरा रहता है, उसे अपने ही कार्यों पर संदेह रहता है। ऐसे निर्बल व्यक्ति को भी अगर ये विश्वास दिला दिया जाए कि तुम अमुक कार्य को कर सकते हो बहुत ही सुंदर और प्रभावी तरीके से, यह सकारात्मक सोच उसके मस्तिष्क में आते ही वह कार्य को करने के लिए तत्पर हो जाता है और भली प्रकार से सफल भी हो पाता है। यह हम स्वयं भी निजी जीवन में परख सकते हैं।