वाणी पर महा कवियों के बहुमुल्य दोहे

वाणी पर महा कवियों के बहुमुल्य दोहे

  

पाठकों, आपने कई बार यह सुना होगा कि हमें अच्छा बोलना चाहिए। क्या आपने सोंचा है कि सभी मधुर वचन बोलने की सीख क्यों देते हैं? यदि आपने अभी तक इस पर विचार नहीं किया है, तो अब समय आ गया है कि आप इस पर चिंतन करें।

मित्रों, वाणी के रूप में ईश्वर ने हमें एक अद्भुत शक्ति दी है, जिसमें असंभव को भी संभव करने की क्षमता है। वाणी की इस शक्ति से महापुरुष भली भाँति परिचित थे। इसलिए उन्होंने समय-समय पर अपने उपदेशों द्वारा मानव को मीठे वचन बोलने की शिक्षा दी है।

आज हम दोहों के माध्यम से महापुरुषों के उन्हीं उपदेशों को आपके समक्ष लेकर आए हैं। आइए जानें कवियों ने वाणी को लेकर क्या शिक्षांए दी हैं :

1 ) शब्द सम्हारै बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव।
एक शब्द औषधि करे, एक करे घाव।

ऊपर लिखा हुआ दोहा महानतम रहस्यवादी कवि कबीर दास जी द्वारा रचा गया है। यह दोहा विशेषकर उन लोगों के लिए है जो बोलने से पहले सोच विचार नहीं करते।

यदि आपको यह लगता है कि आपका अपनी वाणी पर कोई नियंत्रण नहीं है, अथवा आप यह सोचते हैं कि आपकी वाणी कैसी भी हो, भला इसका क्या प्रभाव पड़ता है, तो आज यह दोहा आपको अवश्य पढ़ना चाहिए।

दोहे की पहली पंक्ति में कविवर ने कहा है कि शब्द के हाथ अथवा पांव नहीं होते। वह हमारे मुख से स्वतः ही बाहर नहीं आते। यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है कि हम ऐसे शब्दों को बोलने का निर्णय करते हैं।

हम मीठे शब्द बोलें, अथवा कटु वचन बोलें, यह हमारे नियंत्रण में है। इसीलिए कबीरदास जी कहते हैं कि शब्दों को संभाल कर, भली प्रकार सोच विचार कर मुख से बाहर निकालना चाहिए।

कवि आगे कहते हैं की वाणी दो प्रकार की है : एक शब्द मुख से निकलकर औषधि समान काम करता हैं, और एक शब्द लोगों के मन पर घाव कर जाता है। यदि आप यह सोच रहे हैं कि कबीर दास जी ने एक शब्द को औषधि और दूसरे को घाव सदृश्य क्यों बताया है ?

तो ऐसा इसीलिए है क्योंकि मीठे शब्द व्यक्ति के चित्त को प्रसन्न कर देते हैं, उनकी चिंताओं एवं दुख को कम करके औषधि के समान उनके मन को स्वस्थ करते हैं । वही किसी के द्वारा कही गई खरी-खोटी बातें व्यक्ति को कष्ट पहुंचाती हैं और सदैव घाव के समान चुभती रहती हैं। अतः हमें सोच समझकर बोलना चाहिए।

2) कागा काको धन हरै, कोयल काको देत ।
मीठा शब्द सुनाए के, जग अपनो कर लेत।


प्रस्तुत दोहा महान संत कवि श्री कबीर दास जी द्वारा रचा गया है, जिसके माध्यम से उन्होंने बताया है कि मीठी वाणी में कितनी शक्ति होती है। मनुष्य अपने रूप, रंग, धन, प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि अपनी वाणी से अपनी पहचान बनाता है।

कबीरदास जी कहते हैं कि कौआ आखिर किस का धन चुरा लेता है ? अथवा कोयल भला किसे धन देती है ? कौआ किसी का धन नहीं चुराता, फिर भी लोग उसे देखना तक पसंद नहीं करते । वहीं दूसरी ओर कोयल किसी को धन नहीं देती, फिर भी सभी लोगों को वह प्रिय लगती है।


ऐसा क्यों?

दोनों में से कोई भी ना ही व्यक्ति को लाभ अथवा हानि पहुंचाता है । फिर भी एक से सब ईर्ष्या करते हैं एवं दूसरे से सभी प्रेम करते हैं। दोनों के बीच अंतर है वाणी का। कोयल की वाणी मिश्री के समान सुमधुर एवं चित्त को प्रसन्न कर देने वाली होती है। वह मीठे शब्द सुना कर सभी को अपना बना लेती है।

कौए के मुख से निकली बोली कर्कश होती है जिसके कारण कोई भी उसे पसंद नहीं करता। इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यह व्यक्ति की वाणी ही है, जो उसे लोगों की नजर में अच्छा या बुरा बनाती है।

3 ) सचिव बैद गुरु तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर, होई बेगहिं नास।

पाठकों, अभी तक आपने यह जाना कि व्यक्ति को सदैव मीठे वचन बोलने चाहिए। किंतु यह मधुर शब्द हमारे सच्चे मन से निकलने चाहिए। जब व्यक्ति किसी भय अथवा निहित स्वार्थ के कारण केवल मीठे वचन बोले तो ऐसे वचन सबके पतन का कारण बनते हैं। यही सीख तुलसीदास जी ने इस दोहे में दी है।

तुलसीदास जी कहते हैं कि सचिव अर्थात मंत्री, वैद्य, एवं गुरु, यदि यह तीनों व्यक्ति भय के प्रभाव में आकर, या किसी लोभ के कारण, अथवा व्यक्तिगत स्वार्थ की सिद्धि के कारण वश प्रिय वचन बोलते हैं, तो इनके मीठे शब्दों का परिणाम विनाशकारी होता है।

अतः तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य, एवं गुरु की इस प्रकार की मीठी वाणी से राज्य, धर्म, एवं शरीर का पतन निश्चित है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी-कभी कटु वचन बोलना आवश्यक है। ऐसी वाणी, जो क्षण भर के लिए मनुष्य को कर्णप्रिय लगे, किंतु वास्तव में उसके अहित का कारण बने, ऐसे मीठे वचन का कोई लाभ नहीं।

4 ) ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे, आपहुँ सीतल होय।


प्रस्तुत दोहे के रचयिता विश्व विख्यात कवि कबीर दास जी हैं। इस दोहे की रचना कर कबीर दास जी ने जन-जन को मार्गदर्शन दिया है कि मनुष्य की वाणी कैसी होनी चाहिए।

उन्होंने बताया है कि मीठी वाणी कितना चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करती है। वह कहते हैं कि हमें अपने मन से अहंकार, अभिमान एवं अहम की भावना का त्याग करके मीठी वाणी बोलनी चाहिए। हमारी वाणी ऐसी हो कि वह दूसरों तक पहुंचे तो उन्हें शीतलता प्रदान करें, और साथ ही हमें भी सुख की अनुभूति कराए।

इस दोहे से हमने यह जाना की मीठी वाणी मन के लिए औषधि सदृश है, जिससे मन को शीतलता मिलती है । मुंह से निकले कटु वचन न केवल सामने वाले व्यक्ति को कष्ट पहुंचाते हैं, बल्कि हमें भी कुंठित करते हैं। किंतु मधुर वचन से दोनों ही पक्षों को शीतलता एवं सुख मिलता है। अतः हमें सदा अपनी वाणी में मधुरता रखनी चाहिए।

5 ) तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहूँ ओर।
वशीकरण एक मंत्र है, तजियेवचन कठोर।

तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा मीठे वचन की महत्ता का बखान कर रहा है। तुलसीदास जी पहली पंक्ति में कहते हैं कि मीठे वचन से सब और सुख उत्पन्न होता है। अर्थात मुख से निकली मधुर वाणी से सब तरफ सुख व्याप्त होता है।

कविवर ने मीठे बोल को वशीकरण मंत्र कहते हुए बताया है कि यह एकमात्र ऐसा वशीकरण मंत्र है, जिससे किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है। अतः मानव को कठोर वचन का त्याग कर मीठे वचन का आलिंगन करना चाहिए।

आप सोच रहे होंगे कि तुलसीदास जी ने इसे वशीकरण मंत्र क्यों कहा है। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि मीठे बोल लोगों को मोहित कर लेते हैं। जिस वाणी में आदर, प्रेम, एवं सम्मान की भावना निहित होती है, ऐसी बोली से भला कौन प्रसन्न नहीं होता ? अतः सदैव सुमधुर बोल ही बोलें।

6 ) ऐक शब्द सों प्यार है, ऐक शब्द कू प्यार।
ऐक शब्द सब दुसमना, ऐक शब्द सब यार।

उपर्युक्त दोहे में कबीर दास जी ने इस ओर इंगित किया है कि वाणी ही सबसे अधिक सामर्थ्य वान है। इसमें शत्रु को मित्र, और मित्र को शत्रु बनाने की ताकत है। आखिर क्या है वाणी की ताकत ? आइए जानें।

पहली पंक्तियों में कबीर दास जी ने कहा है कि एक शब्द ऐसा है , जिससे प्रेम उत्पन्न होता है, एवं एक शब्द ऐसा है जिससे प्रेम नष्ट होता है, अर्थात शत्रुता पनपती है। दोनों ही शब्द उसी मुख एवं उसी जिह्वा से निकलते हैं, किंतु एक शब्द से सभी मनुष्य शत्रु बन जाते हैं, और एक शब्द से शत्रु भी यार, अर्थात मित्र बन जाता है।


अतः सब वाणी का ही खेल है । यदि मीठे वचन बोले जाए, तो सबके मन में प्रेम स्थापित होता है किंतु वचन कटु हो, तो मनुष्य क्रोध भाव से भरकर शत्रु बन जाता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौन से शब्दों का चुनाव करते हैं।

7 ) दौनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।
जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं।


उपर्युक्त दोहा कविवर रहीम जी द्वारा रचित है, जहां उन्होंने यह संदेश प्रतिपादित किया है कि बोली, अर्थात वाणी ही हमारी पहचान है। वह कहते हैं कि काक, अर्थात कौआ एवं पिक, यानि की कोयल देखने में एक ही समान है। उनका रंग - रूप, आकार इत्यादि सभी एक जैसे हैं।

कौन कौआ है, और कौन कोयल है, लोग अक्सर यह पहचानने में धोखा खा जाते हैं। उनकी पहचान केवल तभी होती है, जब वसंत ऋतु का आगमन होता है और जब उनकी बोली सुनाई पड़ती है। कोयल की मीठी कुक एवं कौए के कर्कश स्वर सुनकर दोनों के बीच का अंतर पता चल जाता है।

प्रस्तुत दोहे का भावार्थ यह है कि व्यक्तियों के बीच अंतर उनकी वाणी से ही पता चलता है, ना की वेशभूषा, रंग - रूप इत्यादि से। हमारे मुख से निकले शब्द ही हमारे विचार एवं व्यक्तित्व का आईना होते हैं। इसीलिए मीठी वाणी वाले व्यक्ति को सज्जनों की उपमा दी जाती है और दुर्जन व्यक्ति अपने शब्दों से ही पहचाने जाते हैं। अब आपको तय करना है कि आप क्या बनना चाहते हैं।


निष्कर्ष
ऊपर दिए गए सभी दोहे मीठी वाणी बोलने के लिए प्रेरित करते हैं। तुलसीदास, रहीम एवं कबीर दास जी द्वारा रचित यह दोहे हमें एक तरफ कटु वचन की बुराइयों से दो - चार करवाते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मीठे बोल की महत्ता का बोध भी करवाते हैं।

मित्रों, वाणी ही मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत एवं सबसे बड़ी कमजोरी है। नापतोल कर, सोच - समझकर बोले गए शब्द व्यक्ति के बिगड़े काम को भी बना देते हैं, एवं बिना सोचे समझे बोले गए शब्द बने बनाए काम को भी बिगाड़ देते हैं। आज इन सभी दोहों से हमें यह सीख मिली है कि सदैव मनुष्य मधुर शब्दों को ही अपनी जिह्वा पर स्थान देना चाहिए। आशा है इसका पालन आप सदैव करेंगे।


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