कबीर दास के दोहों से जानें जीवन का यथार्थ

कबीर दास के दोहों से जानें जीवन का यथार्थ

  

1) माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रोंदे मोय
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रो दूंगी तोय

प्रस्तुत दोहे में कबीर ने बताया है कि समय सबसे अधिक बलवान होता है । समय के सामने बड़े से बड़े शूरवीर, राजा, बलवान व्यक्ति भी घुटने टेक देते हैं। समय में इतनी शक्ति होती है कि वह राजा को रंक और अमीर को शफीर बना देता है। समय की इसी शक्ति की व्याख्या करते हुए कबीर साहब ने इस दोहे में मिट्टी एवं कुम्हार के प्रसंग का उल्लेख किया है।

मिट्टी, जिसे कबीर दास जी ने अवधी भाषा में माटी कहकर संबोधित किया है । वह कुम्हार से कहती है कि, हे कुम्हार ! तुम मुझे क्यों रौंद रहे हो ? आज भले ही तुम मैं तुम्हारे द्वारा रौंदी जा रही हूं, परंतु एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब मैं तुम्हें रौंदूंगी। जब तुम मेरे स्थान पर होगे, और मैं तुम्हारे स्थान पर।

मिट्टी द्वारा यह कहा जाना कि वह भी किसी दिन कुम्हार को रौंदेगी, इसका तात्पर्य इस बात से है कि जो कुम्हार आज मिट्टी को नीचा समझ रहा है, वह कल मृत्यु को प्राप्त होगा और इसी मिट्टी में मिल जाएगा। जिस शरीर पर उसे इतना अभिमान है वह शरीर ही नहीं बचेगा। अर्थात सबका समय बदलता है । समय सदा गतिमान है। समय किसी को भी कहीं भी लाकर खड़ा कर सकता है । इसीलिए किसी को भी अपने पद, अपनी प्रतिष्ठा, अथवा अवस्था पर अभिमान नहीं करना चाहिए और ना ही दूसरों को अपने से नीचा समझना चाहिए क्योंकि समय बदलने पर वही व्यक्ति बहुत बड़ा बन सकता है।

2 ) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा अपना, मुझ सा बुरा न कोय

प्रस्तुत दोहे में कबीर दास जी ने उन लोगों को बहुत बड़ी सीख दी है। जो हमेशा दूसरों की गलतियां और बुराइयां तलाशने में लगे रहते हैं, लोग दूसरों की बुराइयां बहुत जल्दी निकाल लेते हैं, पर जब बात खुद की आती है, तो वह अपनी आंखें मूंद लेते हैं। संत कबीर ने यही संदेश दिया है कि हमें पहले स्वयं को सुधारना चाहिए, स्वयं को बेहतर बनाना चाहिए और फिर दूसरों से कहना चाहिए ।

कबीर जी कहते हैं कि मैं इस संसार में बुराइयां खोजने निकला था। किंतु मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। पर जब मैंने अपने हृदय में झांका तो मैंने यह पाया कि इस संसार में मुझसे अधिक बुरा और कोई भी नहीं है, मैं ही इस संसार का सबसे बुरा व्यक्ति हूं।

अर्थात हम दूसरों में बुराइयां खोजने के क्रम में स्वयं का अवलोकन करना भूल जाते हैं। हमारे अंदर इतनी अशुद्धियां विद्यमान है किंतु हम दूसरों में दोष निकालने में व्यस्त रहते हैं। यदि हम खुद के अंदर झांके, अपनी आत्मा से सवाल करें, तो हम पाएंगे कि बाकी सब से अधिक बुराइयां हम में ही मौजूद हैं।

यदि हर व्यक्ति सबसे पहले खुद की बुराइयां खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाए तो इस संसार में कोई भी बुरा नहीं बचेगा। संसार से बुराइयां खत्म करने का एकमात्र तरीका यही है कि हम पहले अपने अंदर की बुराइयों को खत्म करें।

3 ) यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान

इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की उदारता एवं महानता से हमें परिचित कराया है। मनुष्य के जीवन में गुरु के स्थान को ईश्वर के स्थान से भी उच्चतम बताया गया है। वह इसीलिए क्योंकि वह गुरु ही है जो हमें ईश्वर की भक्ति का मार्ग दिखाते हैं, ईश्वर क्या है, यह समझाते हैं।

गुरु बिना शिष्य बेकार परी उस मिट्टी के ढेर के समान होता है जो किसी के काम नहीं आती है। उस बेकार मिट्टी को गुरु अपने ज्ञान द्वारा सुंदर रूप एवं सदृढ़ आकार प्रदान करता है। गुरु की इस महिमा का प्रतिपादन करते हुए साहब कहते हैं कि यह जो तन, अर्थात शरीर है वह विष की बेलरी के समान है ।

अर्थात विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान है। जहां एक ओर यह शरीर अज्ञान रूपी विष से पूरी तरह भरा हुआ है, वहीं गुरु का रोम-रोम ज्ञान रूपी अमृत की खान के समान है। गुरु का ज्ञान ऐसा है कि उनकी हर वाणी अमृत की बूंदों के समान पवित्र है। ऐसे गुरु को पाने के लिए यदि अपना शीश भी दान करना पड़े, तो यह सौदा भी सस्ता ही होगा क्योंकि गुरु के मूल्य के समान इस संसार में कुछ भी नहीं है।

4 ) निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाए
बिन साबुन पानी के, निर्मल करे सुहाए

कबीरदास जी कहते हैं कि वह व्यक्ति जो आपकी निंदा करते हैं, उन्हें सदैव अपने निकट ही रखना चाहिए, ना कि उन से दूरी बनानी चाहिए। आपके मन में यह विचार आता होगा की निंदा करने वालों से निकटता तो भली नहीं है, क्योंकि इससे हमें दुख मिलता है। किंतु जब आप कबीर दास जी द्वारा दिए गए संदेश को जान जाएंगे तब आप समझेंगे की बातों ही बातों में साहब जी ने कितनी बड़ी सीख दे दी है।

कबीर कहते हैं जो लोग हमारी निंदा करते हैं, वह सदैव पास रखने योग्य हैं । ऐसे लोगों को अपने आंगन में जगह देनी चाहिए। क्योंकि वह सदैव हमारे अवगुणों को उजागर करते रहते हैं, वह हमारी हर गलती पर की आलोचना कर हमें बार-बार अहसास करवाते हैं कि हमारे द्वारा भूल हुई है।

ऐसे में कबीर जी ने कहा है कि इन व्यक्तियों को हमेशा अपने निकट रखना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति हमेशा हमें हमारी गलतियों का बोध करवाते रहते हैं, जिससे हम अपनी हर बुराई को जान पाते हैं और उसे एक-एक करके सुधार पाते हैं । इस प्रक्रिया से हम खुद को और बेहतर बनाते हैं, और अपने स्वभाव को निर्मल करते जाते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक बिना साबुन और पानी के ही हमारे स्वभाव को निर्मल बना देते हैं। यह हमारे लिए एक सुनहरे अवसर के समान है अपनी निंदा में अपने अवगुणों को सुधारने का मौका तलाश सकते हैं।

5 ) काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होवेगी, बहुरि करेगा कब

यह दोहा कबीर दास के सबसे प्रसिद्ध दोहों में से एक है। इस दोहे में कबीर दास जी ने वर्तमान समय के महत्व के बारे में बताया है। हम अक्सर आज के काम कल और कल के काम परसों पर टाल देते हैं। हमारे इस आचरण पर असहमति जताते हुए साहब कहते हैं कि जो काम कल करना है उसे आज ही निपटा लिया जाए और जो काम आज करने हैं उसे अभी ही खत्म कर लिया जाए।

यदि आज के काम बाद पर छोड़ दिए गए और पल भर में प्रलय आ गई, तो वह काम करने का समय फिर कभी नहीं आएगा। समय बहुत ही बलवान है। कल क्या हो कोई नहीं जानता । जीवन कितना है, यह भी कोई नहीं जानता। अतः हमारे पास समय बहुत कम है । आलस्य में इस बहुमूल्य समय का नाश करके हम स्वयं का नाश कर लेंगे। इसीलिए जो समय हमारे पास है, उसका पूरा एवं सार्थक उपयोग करना चाहिए।


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