
मित्रों, आज के लेख की शुरुआत हम इस पंक्ति से करने जा रहे हैं -
"तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य !"
जी हां ! यह पंक्ति उस महापुरुष द्वारा कही गई है, जिनके वचनों का विश्व भर में अनुसरण किया जाता है। वह और कोई नहीं, बल्कि महात्मा बुद्ध हैं।
उन्होंने कहा था कि - जिस प्रकार सूरज और चांद छुपाए नहीं जा सकते, क्योंकि उनका उदय होना निश्चित है, उसी तरह सच को छुपाने की चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न कर ली जाए, किंतु वह दमकते सूर्य और चंद्रमा की तरह उजागर हो ही जाता है।
तभी तो कहा गया है - "सत्यमेव जयते", अर्थात सत्य की सदैव जीत होती है। यह केवल किताबी बातें नहीं हैं, सत्य की यह भूमिका जीवन के हर चरण पर लागू होती है।
मित्रों, आपने अनुभव किया होगा कि जब आप सच के साथ खड़े होते हैं, तब आपमें एक अलग ही आत्मविश्वास होता है और आपका मन बिल्कुल शांत रहता है। वहीं उसके विपरीत अगर कभी किसी परिस्थिति में झूठ बोलना पड़े, तो आपके मन में शंका, डर और अशांति फैली रहती है।
ऐसा इसलिए क्योंकि यह दुनिया सत्य के सिद्धांत पर चलती है। जो नश्वर है, वह झूठ है। किंतु जो हमेशा रहेगा, जो अमर है, वह सत्य ही है। इसीलिए सच बोलने वाले के अंदर अदम्य साहस एवं अटूट विश्वास होता है।
यह सब जानते हुए भी कई लोग झूठ का रास्ता चुन लेते हैं, क्योंकि एक पल को उन्हें यह रास्ता आसान दिखाई पड़ता है। लेकिन इस रास्ते पर चलने के बाद व्यक्ति इसमें पूरी तरह से उलझ कर रह जाता है। एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ और बोलने पड़ते हैं। ऐसे में इंसान मन की शांति कभी नहीं पाता।
साथ ही, झूठ की उम्र लंबी न होने के कारण एक न एक दिन उसका झूठ उजागर हो ही जाता है। तब व्यक्ति कहीं का नहीं रहता। यही कारण है कि संसार की हर सभ्यता ने मानव को सत्यव्रत का पालन करने की शिक्षा दी है। सत्य के मार्ग पर चलना कठिन जरूर है, लेकिन यही मार्ग हमें जीवन के यथार्थ तक ले जाता है। याद रखें, सत्य प्रताड़ित हो सकता है, किंतु पराजित नहीं!
सच की शक्ति से इतिहास में सभी महापुरुष भली-भांति परिचित थे। इसीलिए उन्होंने स्वयं तो जीवन पर्यंत सत्यव्रत का पालन किया ही, इसके साथ मानव जाति को भी सदैव सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
इसीलिए हमारा यह कर्तव्य बनता है कि महापुरुषों की सीखों से प्रेरणा लेकर हम कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सच का दामन ना छोड़े। इस विषय पर और विस्तारित चर्चा के लिए हम आज आपके लिए कुछ ऐसे दोहे लेकर आए हैं, जिसमें सत्य और इससे जुड़े कई पहलुओं की चर्चा की गई है। आइए जानें :
1 ) साँच शाप न लागे, साँच काल न खाय।
साँचहि साँचा जो चले, ताको कहत न शाय।।
प्रस्तुत दोहे में कवि कबीर दास जी ने सत्य की शक्ति का वर्णन किया है। सत्य अथाह शक्ति है, यही यथार्थ है। सच बोलने वाले को तीनों लोकों का भी भय नहीं होता, क्योंकि सत्यवादी से तो स्वयं यमराज भी डरते हैं।
सत्य को दबा पाने की अथवा छुपा पाने की क्षमता संसार में किसी भी वस्तु में नहीं है। यही संदेश देने के लिए कविवर ने इस दोहे की रचना की है और कहा है कि सांच, अर्थात सत्य बोलने वाले को कोई श्राप नहीं लगता, किसी की बद्दुआ का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
सत्य को न ही काल खा सकता है, अर्थात सत्य अमर एवं अजेय है। यह कभी नहीं मरता। जो भी सत्य के सांचे में ढल जाता है, अर्थात जो मन-कर्म एवं वचन से सत्य का साथ देता है, उसका भला कौन नाश कर सकता है?
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी झूठ का साथ नहीं देना चाहिए। सत्य को अमर बताते हुए कवि ने हमें यह प्रेरणा दी है कि झूठ की आयु बहुत छोटी होती है, यह जल्दी ही मर जाता है। जो जीवित रहता है, वह केवल सत्य है।
2 ) साँचे कोई न पतीजई, झूठै जग पतियाय।
गली गली गोरस फिरे, मदिरा बैठि बिकाय।।
उपर्युक्त दोहे की पहली पंक्ति में कवि शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सच बात को कोई नहीं मानता। सच पर विश्वास करने वाला कोई भी नहीं है, सभी लोग केवल झूठी बातों पर ही विश्वास करते हैं।
सत्य लोगों के कानों में चुभता है किंतु झूठ उन्हें कर्णप्रिय है। दुनिया की यह रीत ठीक वैसी ही है, जैसे गोरस अर्थात गाय का दूध एवं दही बेचने वाले को स्वास्थ्य के लिए उत्तम व शुद्ध दूध को बेचने के लिए गली-गली घूमना पड़ता है। किंतु वह शराब, जो संपूर्ण दोषों से भरी है, जो मनुष्य के चरित्र एवं स्वास्थ्य दोनों का पतन करती है, वह बैठे-बैठे ही बिक जाती है। उसे बेचने वाले को कहीं नहीं जाना पड़ता।
इसी प्रकार सच को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लाख जतन करने पड़ते हैं, किंतु झूठ आसानी से अपना स्थान बना लेता है। प्रस्तुत दोहे में कवि ने बहुत ही गंभीर बात का जिक्र किया है।
उन्होंने समझाया है कि संसार पथभ्रष्ट हो रहा है। अतः संसार के इस स्वभाव में खुद को ना ढालें। सच्चे बनें और सच का साथ दें, क्योंकि झूठ में कितनी ही शक्ति क्यों ना हो, विजय तो सत्य की ही होती है। याद रखें सत्य प्रतारित हो सकता है, किंतु पराजित नहीं।
3 ) साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जिस हिरदे में साँच है, ता हिरदै हरि आप।।
प्रस्तुत दोहे में कवि कहते हैं कि सत्य के समान संसार में कोई जप - तप नहीं है, और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है। अर्थात, कवि ने झूठ बोलने वाले और झूठ का साथ देने वाले को सबसे बड़े पापी की उपमा दी है।
वह कहते हैं कि जिसके हृदय में सत्य रम गया, अर्थात जिसने सत्य को मन - कर्म एवं वचन से अपना लिया, उसके हृदय में स्वयं हरि, यानी कि ईश्वर का वास होता है। प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि ने मानव को सत्यवादी बनने के लिए प्रेरित किया है। सत्य का मार्ग ही सुमार्ग है। झूठ के मार्ग पर चलकर हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है । वह सत्य ही है जो जीवन को सार्थक बनाता है। अतः स्वयं भी सत्य बोलें और दुसरो को भी इसका आचरण करने को कहें।
4) झूठे को झूठा मिले, दूंणा बढे स्नेह।
झूठे को साँचा मिले, तब ही टूटे नेह।।
5 ) साँच कहूं तो मारिहैं, झूठे जग पतियाई।
यह जग काली कूकरी, जो छेड़े तो खाय।।
दुनिया की यह कैसी रीत है कि यहां सिर्फ झूठ का बोलबाला है। जो शाश्वत है, जो सत्य है लोग वह सुनना पसंद नहीं करते, किंतु जो झूठ है, उसे बड़े आनंद से सुनते एवं मानते हैं।
दुनिया की इसी रीत को उजागर करते हुए कबीर दास जी ने दोहे की प्रथम पंक्ति में कहा है कि यदि मैं सच कह दूं, तो लोग मुझे मारने के लिए दौड़ेंगे, अर्थात सच लोगों को अच्छा नहीं लगता और सच बोलने वाला उनका शत्रु बन जाता है।
यहां तो लोग झूठ बोलने पर ही मानते हैं, इन्हें झूठ पर ही विश्वास है। इस संसार का स्वभाव उस काली कुत्तिया के समान हो गया है, जिसे यदि किसी ने तनिक भी छेड़ दिया तो वह उसे काट खाएगी। तात्पर्य यह है कि यदि आपने वह नहीं बोला जो लोग सुनना चाहते हैं, और यदि सच कह दिया तो लोग आपके दुश्मन बन कर आपको कष्ट पहुंचाएंगे।
दोस्तों, हमें इस दोहे में छुपे गहरे संदेश को समझना चाहिए। कवि ने बातों ही बातों में यह कह दिया कि हम झूठी दुनिया में जी रहे हैं। सत्य हमें अच्छा नहीं लगता क्योंकि सत्य का मार्ग कठिन व दुर्गम है।
सत्यव्रत पर डटे रहने के लिए व्यक्ति को कई कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं। पथ-पथ पर खुद को साबित करना पड़ता है और कई बार प्रताड़ित भी होना पड़ता है। इसीलिए लोग वह मार्ग चुनते हैं जो आसान है, अर्थात झूठ का मार्ग।
हम सभी इस झूठ के मार्ग पर चल पड़े हैं। अतः सच कड़वा होता है, इसे सुनने के लिए सहिष्णुता आवश्यक है, जो केवल तब ही आ सकती है जब हम सत्य को स्वीकार करें। याद रखिए सत्य ही जीवन का यथार्थ है। इसीलिए इस मार्ग से कभी ना भटकिए।
6 ) लेखा देणां सोहरा, जो दिल साँचा होय।
उस चंगे दीवान में, पला न पकड़ै कोय ।।
इस दोहे में कवि ने यह संदेश दिया है कि सच के रास्ते पर चलने वाले के लिए हर मुश्किल आसान हो जाती है। कवि कहते हैं कि हे मनुष्य ! अगर तेरा दिल सच्चा है तो सारा लेना देना आसान हो जाएगा। ईश्वर के दरबार में जाने पर तुझे कोई उलझन नहीं होगी, क्योंकि उलझन तो उसे होती है जिसके हिसाब किताब में गड़बड़ी हो, अर्थात जो झूठ फरेब का साथ देता हो।
जब तू उस दीवान, अर्थात ईश्वर के दरबार में पहुंचेगा तो कोई भी तेरा पल्ला नहीं पकड़ेगा, कोई तुझसे सवाल नहीं करेगा। क्योंकि तेरा सारा हिसाब किताब साफ सुथरा होगा। भाव यह है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाला केवल पुण्य कमाता है। सच का साथ देने वाले का संरक्षण स्वयं ईश्वर करते हैं। अतः हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और सच का साथ देना चाहिए।
निष्कर्ष :
तो दोस्तों आज का यह लेख आपको कैसा लगा? आशा है कि कबीर दास जी के यह दोहे पढ़ने के बाद आप सत्य व्रत का पालन करने के लिए प्रेरित हो चुके हैं और जीवन में हमेशा इसे निभाने का निश्चय कर चुके हैं। याद रखिए दोस्तों, झूठ का परिणाम हमेशा बुरा होता है। झूठ अपने साथ कुंठा, शंका, शत्रुता, कलह, अशांति इत्यादि लेकर आता है। वहीं यदि व्यक्ति सच्चा हो, तो वह हर प्रकार से शांति पाता है। अब आपको तय करना है कि आप किसे चुनते हैं।