Pallavi Thakur
657 अंक
Motivator
अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेर कर संजो लीजिए!
नमस्कार! मैं आकाशवाणी की युवा कलाकार हूँ। लेखन एवं हिंदी भाषा में मेरा अत्यधिक रुझान है। इस रुचि को एक ब्लॉगर के रूप में साकार करने के की कोशिश है।
मित्रों, इस लेख को पढ़ने वाले हमारे कई सारे पाठकों में से कुछ विद्यार्थी होंगे, कुछ अपनी शिक्षा पूरी कर चुके होंगे, अथवा कुछ नए कौशलों को सीखना चाहते होंगे। मित्रों, विद्या का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन यापन के लिए मनुष्य को कुछ कौशलों की आवश्यकता होती है, जिनका उपयोग कर वह अपनी आजीविका की व्यवस्था कर सके।
यह कौशल विद्या से ही प्राप्त होते हैं। विद्या द्वारा अर्जित किए गए ज्ञान का उपयोग कर ही व्यक्ति अपनी जीविकोपार्जन करता है। एक अशिक्षित व्यक्ति को अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसे पढने, गिनती करने, लिखने, अथवा लिखी हुई चीजों को समझने में बहुत कठिनाई होती है। साथ ही, कौशलों के अभाव में उसे आजीविका के साधन भी उपलब्ध नहीं होते।
इसीलिए जन्म लेने के बाद बच्चे के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता उसकी विद्या प्राप्ति को बनाया जाता है। मित्रों, विद्या प्राप्ति केवल जीविका के साधन जुटाने के लिए यह आवश्यक नहीं है, और न ही यह केवल किताबी ज्ञान देती है, बल्कि विद्या मनुष्य के समुचित विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। विद्या के माध्यम से ही व्यक्ति को जीवन के उद्देश्य, अपने कर्तव्य, धर्म, मानवता, व्यवहारिक ज्ञान का भी बोध होता है।
विद्या द्वारा ही मनुष्य अनुशासन, आचरण, व्यवहार इत्यादि के बारे में जान पाता है। जीवन में क्या सही और क्या गलत है, इसका बोध भी विद्या प्राप्ति से ही होता है। इसी कारण वश रचनाकारों एवं महान पुरुषों ने सदैव से ही विद्या का स्थान जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बताया है। इसी कड़ी में हम आपके लिए संस्कृत भाषा में लिखे कुछ श्लोक लेकर आए हैं जो बताते हैं कि मनुष्य के जीवन में विद्या कितनी महत्वपूर्ण है :
1) सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
प्रस्तुत श्लोक में यह बताया गया है कि विद्या प्राप्ति का मार्ग सुगम नहीं है। श्लोक की पहली पंक्ति के अनुसार सुख की अभिलाषा रखने वाले को विद्या कहां से मिले, एवं विद्या की कामना रखने वाले को सुख भला कैसे प्राप्त हो?
सुखार्थी, अर्थात सुख चाहने वाले को विद्या त्याग देनी चाहिए एवं विद्या प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों को सुख का परित्याग कर देना चाहिए। सुख की इच्छा रखने वाले व्यक्ति जीवन में कोई कष्ट नहीं उठाना चाहते, वह कठोर परिश्रम नहीं करना चाहते, एवं आरामदायक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। किंतु आराम में विद्या कहां ?
विद्या ग्रहण करने के लिए निद्रा, आराम एवं सभी अन्य सुखों का त्याग कर कठोर परिश्रम करना पड़ता है। जो दिन-रात श्रम नहीं करता, उसे विद्या नहीं मिलती। अतः जो वास्तव में विद्या प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए। सुख एवं विद्या एक साथ नहीं मिल सकते।
इस श्लोक से विद्यार्थियों को यह शिक्षा मिलती है कि विद्यार्थी जीवन में यदि सुख की कामना की जाए, तो विद्या नहीं प्राप्त की जा सकती।
अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वह अपने सभी आराम त्याग कर खुद को केवल अध्ययन में संलग्न करें।
2 ) गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः ।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः।।
प्रस्तुत श्लोक में पाठक के उन गुणों का वर्णन किया गया है, जिनके रहते व्यक्ति उत्तम पाठक नहीं बन सकता। श्लोक में कहा गया है कि पुस्तक में लिखे शब्दों को गा - गा कर पढ़ना, शीघ्रता अर्थात जल्दी - जल्दी पढ़ना, जिसके कारण शब्द स्पष्ट रूप से पता ना चल पाए, पढ़ते हुए सिर हिलाना, केवल लिखा हुआ पढ़ जाना, विषय वस्तु का अर्थ समझे बिना पढ़ना एवं कंठ से धीमी आवाज का निकलना। प्रायः यह सभी एक पाठक के छः दोष हैं।
इस प्रकार पढ़ने से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि कोई व्यक्ति उत्तम पाठक बनना चाहता है, तो उसे इन छः दोषों का त्याग करना होगा। इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अच्छे पाठक को पढ़ते समय कैसा आचरण करना चाहिए। एक उत्तम पाठक को पढ़ने के समय गाकर नहीं पढ़ना चाहिए। इससे शब्दों के सही अर्थ में परिवर्तन आ जाता है।
शब्दों का उच्चारण एक निश्चित अनुतान में होना चाहिए, अर्थात पढ़ते समय स्वरों के उतार-चढ़ाव पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, शब्दों को आराम से एवं पर्याप्त समय देकर पढ़ना चाहिए, ताकि प्रत्येक शब्द का उच्चारण स्पष्ट रूप से सुनाई दे।
पाठक को सही मुद्रा में बैठना चाहिए, जहां शरीर का हर अंग सीधा एवं तना हुआ हो। एक अच्छा पाठक केवल लिखित विषय वस्तु को नहीं पढ़ता, बल्कि यदि लिखित विषय में कुछ त्रुटियां हो तो वह उसे सुधार कर पढता है। अर्थात पाठक की अपने विषय पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। इसके अलावा पाठक की आवाज तेज़ व स्पष्टता से सुनाई देने वाली होनी चाहिए ताकि सामने बैठे श्रोता हर शब्द को आसानी से समझ सके।
3 ) नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
श्लोक की प्रथम पंक्ति का तात्पर्य है कि विद्या के समान कोई और भाई - बंधु नहीं है। न ही इस संसार में विद्या जैसा कोई मित्र है। श्लोक की दूसरी पंक्ति के अनुसार विद्या समान कोई वित्त अर्थात धन नहीं है, और न ही विद्या प्राप्ति के समानांतर संसार में कोई और सुख है।
अतः प्रस्तुत श्लोक में विद्या को संसार में सभी से श्रेष्ठ बताया गया है। विद्या हर कठिनाई में मनुष्य का मार्गदर्शन करती है एवं सदैव उसके साथ रहती है, इसीलिए विद्या को बंधु के समान कहा गया है। मित्र की ही भाँति विद्या हर दुख एवं सुख में व्यक्ति का साथ देती है। विद्या ग्रहण करके ही व्यक्ति स्वयं का अवलोकन कर अपने गुण एवं अवगुण को जान पाता है।
साथ ही विपत्ति पर जाने पर अध्ययन से मिला ज्ञान ही व्यक्ति को विकट परिस्थितियों से उबारता है। अतः विद्या ही सबसे बड़ी मित्र है। विद्या के बल पर ही व्यक्ति प्रतिष्ठा, उच्च पद, मान - सम्मान एवं शक्ति पाता है। विद्या होने पर ही धन की प्राप्ति होती है। इसीलिए विद्या ही सर्वश्रेष्ठ धन है ।
विद्या ग्रहण करके मिला ज्ञान व्यक्ति को जीवन के यथार्थ से परिचित कराता है, जिसके कारण वह संतोष जैसे गुणों को सीख पाता है। इन गुणों के ज्ञान के पश्चात व्यक्ति हर परिस्थिति में समान एवं सुखी रहता है। अतः विद्या के समानांतर संसार में और कोई सुख नहीं है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विद्या ही मनुष्य के जीवन का आधार है। अतः हमें सदैव स्वयं को विद्या प्राप्ति में संलग्न रखना चाहिए।
4 ) न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
प्रस्तुत दोहे में विद्या की तुलना धन से की गई है और कहा गया है कि विद्या सभी धनों में श्रेष्ठ है। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि विद्या रूपी धन को चोरों द्वारा हरण नहीं किया जा सकता है, अर्थात कोई चोर इसे चुरा नहीं सकता।
न ही यह किसी राजा के द्वारा हरी जा सकती है। अर्थात कोई राजा इसे अपनी शक्ति एवं पद के बल पर जबरन नहीं छीन सकता। संपत्ति की भांति भाइयों में विद्या का कोई भाग नहीं नहीं होता है। अतः इसे किसी के साथ बांटना नहीं पड़ता है, और ना ही विद्या रूपी इस धन का कोई अतिरिक्त भार होता हैI विद्या रूपी यह अनमोल धन खर्च करने से निरंतर और अधिक बढ़ता ही जाता है। अतः विद्याधन सभी धनों में प्रमुख एवं श्रेष्ठ है।
इस श्लोक से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य का सबसे बहुमूल्य खजाना उसकी विद्या ही है। यह वह धन है जिसे पा लेने वाला व्यक्ति हर चिंता से मुक्त हो कर हमेशा सुखी रहता है। इससे श्रेष्ठ और इससे बहुमूल्य संसार में और कुछ नहीं है। अतः हमें चाहिए कि हम अपने जीवन में विद्या का स्थान सर्वोपरि रखें एवं निरंतर विद्या प्राप्ति की दिशा में बढ़ते रहें।
5 ) रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
प्रस्तुत श्लोक में विद्या के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। श्लोक की पहली पंक्ति के अनुसार, कोई व्यक्ति चाहे कितना भी रूपवान क्यों ना हो, चाहे वह पूर्णतः यौवन से संपन्न हो अथवा कितने ही ऊंचे कुल में पैदा क्यों ना हुआ हो, किंतु यदि वह विद्याहीन है, अर्थात उसे विद्या नहीं प्राप्त हुई है, तब वह रूप, यौवन एवं कुल से परिपूर्ण होने पर भी शोभनीय नहीं रह जाता।
सुंदरता एवं प्रतिष्ठा के सभी मानक उसकी शोभा नहीं बढ़ा पाते। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार केसुड़े का फूल चाहे कितना भी सुंदर व आकर्षक क्यों न हो, किंतु यदि उसमें सुगंध ना हो, तो वह शोभा नहीं देता। केसुड़े के पुष्प का महत्व उसकी सुगंध से होता है, इसी प्रकार व्यक्ति की शोभा उसकी विद्या से होती है, न कि रूप अथवा यौवन से। अतः जीवन में सबसे बड़ी प्राथमिकता विद्या अर्जित करना होनी चाहिए।
6 ) माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।
प्रस्तुत दोहे में यह संदेश प्रतिपादित किया गया है कि बालकों के लिए समुचित शिक्षा कितनी आवश्यक है। श्लोक की प्रथम पंक्ति के अनुसार वह माता अपने बालक की शत्रु के समान है, एवं वह पिता अपनी संतान के बैरी ( दुश्मन ) हैं, जो अपने बालक को नहीं पढ़ाते हैं।
शिक्षा ना मिलने पर वह बालक बड़ा होकर अन्य शिक्षित लोगों की तुलना में अनपढ़ रह जाता है, जिसके कारण उसे सम्मान नहीं मिलता। कवि ने इसकी तुलना हंस एवं बगुले से करते हुए कहा है कि जिस प्रकार सुंदर हंसों के झुंड के मध्य बगुला शोभा नहीं देता, उसी प्रकार बुद्धिमानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पाता।
वह बुद्धिमानों के बीच उपहास का पात्र बन जाता है। अतः बाल्यकाल में शिक्षा प्राप्ति अत्यंत आवश्यक है। इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वह अपने संतानों को उचित एवं उच्च शिक्षा प्राप्त करवाएं ताकि उनकी संतान हर प्रकार से योग्य बने ।
7) मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते। कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् I किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।।
प्रस्तुत श्लोक में व्यक्ति के जीवन में विद्या की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। श्लोक की प्रथम पंक्ति कहती है कि विद्या माता की तरह रक्षा करती है एवं जिस प्रकार पिता अपनी संतानों का भला करते हैं, उसी प्रकार विद्या मनुष्य का हित करती है।
पत्नी के ही समान विद्या सारी थकान मिटा कर मन को रमाती, रिझाती व मनोरंजन करती है। लक्ष्मी की भांति वित्त, अर्थात धन की प्राप्ति कर व्यक्ति शोभा बढ़ाती है और चारों दिशाओं में यश व कीर्ति फैलाती है।
ऐसा क्या है जो विद्या द्वारा सिद्ध नहीं होता ?
सत्य ही है कि यह विद्या कल्पवृक्ष के समान है, जो व्यक्ति के सभी मनोरथों, इच्छाओं व अभिलाषाओं को सिद्ध करती है। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति करने का एक मात्र साधन है, और वह है विद्या प्राप्ति। विद्या प्राप्ति द्वारा ही सब कुछ संभव है।
8 ) विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।
उपर्युक्त श्लोक यह संदेश प्रतिपादित करता है कि किस प्रकार विद्या मनुष्य में विभिन्न गुणों को विकसित करती है। इन गुणों के कारण ही व्यक्ति जीवन में धन, यश, कीर्ति एवं सुख प्राप्त करता है।
श्लोक की प्रथम पंक्ति का आशय है कि विद्या व्यक्ति को विनय, अर्थात विनम्रता देती है। विद्या विहीन मनुष्य में आचार एवं व्यवहार की महिमा का ज्ञान नहीं होता है। यह ज्ञान विद्या द्वारा ही प्राप्त किया जाता है जिससे मनुष्य विनम्र बनता है। विनम्रता उसे पात्रता, अर्थात किसी कार्य को करने की योग्यता प्रदान करती है। इसी योग्यता के बल पर व्यक्ति धन का अर्जन एवं संचय कर पाता है।
इस संचित धन से व्यक्ति दान - धर्म का अपना कर्तव्य निभा कर विभिन्न धार्मिक कर्मकांड, पूजन, यज्ञ, अनुष्ठान आदि करता है एवं धर्म का पालन करने से व्यक्ति को अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
अतः प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विद्या ही सभी सुखों की कुंजी है। विद्या रहित मनुष्य में विनम्रता नहीं होती है। ऐसा मनुष्य अयोग्य रह जाता है, जिसके कारण उसे धन की प्राप्ति नहीं होती है। धन के बिना धर्म नहीं होता और धर्म किए बिना व्यक्ति सुखी कैसे रहेगा? अतः मनुष्य को सदा ज्ञानार्जन करना चाहिए।
निष्कर्ष :
तो मित्रों, इन श्लोकों के माध्यम से आपने जाना कि मनुष्य के जीवन में विद्या का स्थान सर्वोपरि है। अतः हमें विद्या को अपने जीवन की प्राथमिकता बनाकर निरंतर ज्ञान प्राप्ति में संलग्न रहना चाहिए।पोस्ट
सुबह मिलेगा समय चुराने का अवसर !
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने !
समय चुराने का तात्पर्य किसी और के समय को चुराना नहीं है, बल्कि दिन के 24 घंटों में से उस समय का उपयोग करना है जिसे आप यूं ही गवा रहे हैं। यदि आपने बेकार हो रहे समय का इस प्रकार उपयोग कर लिया तो ऐसी स्थिति में आपके पास उस व्यक्ति की तुलना में अधिक समय होता है जो देर तक सोते रहता है।
यदि आप सुबह 8:00 बजे के स्थान पर 5:00 बजे ही उठ जाते हैं, तो सामान्य दिनों की तुलना में आपके पास उस दिन 3 घंटे अधिक होंगे। अब सोचिए कि इन तीन घंटों में आप कितने कार्यों को निपटा सकते हैं।
➤ यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह 3 घंटे आपके लिए अमूल्य होंगे। आप इस समय में अपनी पढ़ाई का बड़ा हिस्सा कवर कर सकते हैं।
➤ कामकाजी लोग इन 3 घंटों में उन कामों को निपटा सकते हैं, जो दिन में व्यस्तता के कारण वह नहीं कर पाते।
➤ यह अतिरिक्त समय उन लोगों के लिए कोहिनूर हीरे समान है जो पूरे दिन में अपने लिए कुछ खास वक्त नहीं निकाल पाते। इस समय को खुद को समर्पित कर के आप अपना मानसिक, भावनात्मक विकास कर सकते हैं।
➤ यदि आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, और समय के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो सुबह के यह कुछ घंटे आपके लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
➤ इसके साथ ही यदि आप योग व्यायाम आदि नहीं कर पाते हैं तो आप इस समय को ध्यान, योग - व्यायाम आदि के लिए निकाल सकते हैं।
यदि आप दिन में कुछ अधिक समय की अपेक्षा करते हैं तो भला सुबह के समय से अच्छा और क्या हो सकता है।
मित्रों, जब कभी भी आप सुबह बहुत जल्दी उठते हो तो आपने महसूस किया होगा कि उस दिन आप पूरे दिन तरोताज़ा, चुस्त व सक्रिय महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ देर तक सोते रहने से बाकी के समय भी आप सुस्त महसूस करते हैं।
मित्रों, यदि आप स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो सुबह जल्दी उठना आपको अपनी बीमारी से छुटकारा पाने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना इस प्रकार से की है, कि हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए।
यह नियम प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए बनाया है, मानव शरीर के लिए रात सोने के लिए और सुबह जागने के लिए बनाई गयी है। यदि हम इसके अनुरूप कार्य करेंगे, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन यदि हम इसके प्रतिकूल जाएंगे तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
आइये चलते-चलते जाने सुबह उठने के स्वास्थ्य संबंधी लाभों को :
✴ सुबह का समय व्यायाम करने के लिए बेहतरीन समय है। इस समय किया गया योग - व्यायाम और प्रणायाम सबसे अधिक फायदेमंद है।
✴ सुबह की प्रदूषण मुक्त ताजी और ठंडी हवा श्वास संबंधी विकारों, जैसे अस्थमा इत्यादि में राहत पाने के लिए बेहद कारगर है।
✴ यदि बात शरीर को विटामिन डी उपलब्ध कराने की आती है तो सुबह की धूप से अच्छा विकल्प और नहीं है। सबह की धूप शरीर पर लगाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है।
✴ सुबह का समय अवसाद, तनाव से ग्रसित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है। जो लोग मानसिक शांति चाहते हैं वह सुबह के समय सैर कर एवं प्रकृति के साथ समय बिता कर अपनी स्थिति में चमत्कारिक परिवर्तन देख सकते हैं।
मित्रों, आपने तेनालीराम की कई कहानियां सुनी होंगी। उनकी हाजिर-जवाबी और बुद्धिमता के किस्से घर-घर में मशहूर हैं। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो आपको गुदगुदाएगी भी, और एक महत्वपूर्ण सीख भी देगी।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अति उदार स्वभाव के थे। वह अपनी प्रजा की हर आवश्यकता पूरी करते थे। राजा के इसी उदार स्वभाव के कारण विजयनगर के ब्राम्हण बड़े ही लालची हो गए थे। वह हमेशा किसी ना किसी बहाने से अपने राजा से धन वसूल किया करते थे। एक दिन राजा कृष्ण देव राय ने उनसे कहा - "मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? " यह सुनते ही एक ब्राम्हण ने कहा- " यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम दान दें तो आपकी मां की आत्मा को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप ही पहुंच जाता है।" सभी ब्राह्मणों में ने इस पर हां में हां मिलाई।
राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों के इस प्रस्ताव से सहमत हुए। उन्होंने ब्राह्मणों को 108 सोने के आम दान कर दिए। इन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मौज हो गई। जब तेनालीराम को इस घटना की सूचना मिली, तब ब्राह्मणों के इस लालच पर उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन लालची ब्राह्मणों को सबक सिखाने की ठान ली।
जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई, तो 1 महीने बाद उन्होंने ब्राह्मणों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं । खाने-पीने और बढ़िया माल पानी के लालच में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर पर जमा हुए।
✴ जिस प्रकार रोग शरीर का छय करता है, उसी प्रकार क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।
✴ क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाता है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने से प्राणी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
✴ क्रोधी एवं अहंकारी व्यक्ति को दुनिया में कोई अधिक क्षति नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि यह 2 गुण ही उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त हैं।
✴ एक क्रोधी व्यक्ति में तीन गुण गौंण होते हैं - धैर्य, बुद्धि, एवं संवेदनशीलता। इन तीन गुणों के नाश के कारण उसकी सफलता, प्रतिष्ठा, एवं संबंधों का नाश हो जाता है।
✴ जब ज्ञान की वर्षा होती है, तब क्रोध की अग्नि धुआं बनकर उड़ जाती हैं। अतः ज्ञान अर्जित करें।
क्या आपने गौर किया है कि जिस दिन आप बहुत सुबह उठ जाते हैं, उस दिन आप तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं?
साथ ही सुबह के वातावरण में घूमने से एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुबह का समय बहुत अद्भुत होता है। यदि आप जल्दी उठते हैं, तो अन्य दिनों के मुकाबले आपके पास दिन के कुछ घंटे और बढ़ जाते हैं, जिसे आप सफलता पाने के लिए निवेश कर सकते हैं।
जी हां दोस्तों ऐसा बहुत कुछ है जो सुबह के समय करने से आप लाभान्वित हो सकते हैं। इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सुबह की वह पांच आदतें जो सफलता पाने में आपकी मदद कर सकते हैं :
कई बार ऐसा होता है कि कुछ चीजों या घटनाओं को लेकर हम इतना अधिक चिंतन मनन करने लगते हैं, कि वह विचार हमें परेशान करने लग जाते हैं। कभी कभार ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है, किंतु यदि आप हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर देर तक सोचनें लगे, तो यह आपके लिए समस्या बन जाएगी।
कुछ लोग तो इस आदत से इस तरह प्रभावित होते हैं, कि छोटी से छोटी चीज़ करने से पहले अनावश्यक ही हजारों बार सोचते हैं, और कुछ कर देने के बाद भी उस पर घंटों तक विचार करते रह जाते हैं। इस तरह अति अधिक सोचने से न जाने कौन-कौन से विचार मन में आने लगते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह व्याकुल हो जाता है। साथ ही, आपका आत्मविश्वास भी धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि आप हर कार्य को लेकर संशय में रहने लग जाते हैं।
इस आदत को छोड़ देना ही बेहतर होगा। लेकिन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने ही विचारों में उलझ कर रह जाते हैं। इसीलिए हम आपके लिए कुछ ऐसे बिंदु लेकर आए हैं, जिन पर गौर करने पर आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा सकते हैं :
दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि क्रोध के आवेश में आकर हम लड़ाई - झगड़े में कूद पड़ते हैं, लेकिन जब शांत दिमाग से इस बारे में सोचते हैं, तब हमें अपने कृत्य का पछतावा होता है।
केवल यही नहीं दोस्तों, झगड़े के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। बाद में पछताने से अच्छा है कि हम यह स्थिति आने ही ना दें। अक्सर ऐसी स्थितियों में हम समझ नहीं पाते की क्या उचित है, इसीलिए अंततः हम झगड़े में कूद पड़ते हैं। लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए कि जितना हो सके आप झगड़े को टाल सके, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।
दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही रोचक कहानी सुनाने वाले हैं। यह कहानी है दो बहनों, हल्दी और सोंठ की। हल्दी स्वभाव से परोपकारी और दयालु थी लेकिन सौंठ घमंडी और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह हमेशा अपनी बड़ी बहन हल्दी पर हुक्म जमाया करती थी। दिन यूं ही बीते रहे।
1 दिन दोनों बहनों के घर उनकी बूढ़ी नानी का संदेशा आया। बूढ़ी नानी ने अपनी मदद के लिए एक बहन को बुलाया था। संदेशा पढ़ते ही सौंठ समझ गई कि वहां जाकर उसे ढेरों काम करने पड़ेंगे, इसीलिए उसने तुरंत ही बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। जब हल्दी ने संदेश पढ़ा, वह तुरंत वहां जाकर उनकी सेवा करना चाहती थी। इसीलिए माता पिता की आज्ञा लेकर वहां अपनी नानी के घर के लिए निकल पड़ी।
रास्ते में उससे एक गाय दिखाई दी । हल्दी को देखकर उस गाय ने मदद के लिए उसे पुकारा। हल्दी तुरंत वहां गई और उसने गाय से पूछा कि उसे क्या कष्ट है। इस पर गाय ने कहा कि उसके आस पास बहुत सारा गोबर इकट्ठा हो गया है। तो क्या हल्दी इससे साफ कर देगी। हल्दी अपने परोपकारी स्वभाव के कारण तुरंत गाय की मदद के लिए मान गई और सारा गोबर साफ कर दिया। गाय बहुत प्रसन्न हुई । अब हल्दी ने गाय से विदा ली और आगे चल पड़ी। फिर उसे एक बेर का पेड़ दिखा जिसके आस पास बहुत से पत्ते बिखरे पड़े थे। हल्दी को वहां से गुजरता देख बेर ने भी उस से मदद मांगी, हल्दी ने उसके सभी बिखरे पत्तों को साफ कर दिया और बेर अति प्रसन्न हुआ। फिर कुछ दूर आगे बढ़कर उससे एक पर्वत दिखा जिसके आसपास कई ईट पत्थर थे। हल्दी ने पूरे मन से सभी ईंटों को साफ कर दिया और फिर नानी के घर की ओर चल पड़ी।
जीवन में कभी न कभी हम सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसे में इनसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कमज़ोर आर्थिक स्तिथि से निपटने के लिए आपको बहुत धैर्य एवं सकारात्मकता के साथ कदम बढ़ाने होंगे। हालातों से हार मान लेने से काम नहीं चलेगा। आपको इनसे उबरने के लिए अपने हौसले को बनाये रखना होगा। दोस्तों, भूले नहीं कि रात के बाद दिन ज़रूर आता है, इसी तरह दुःख के बाद सुख आना भी निश्चित है। तो आइये जानते हैं, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से आप किस तरह निपट सकते है :
✴ आवश्यकताओं को सीमित करें
जब आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तब आपको पैसे बचाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। आर्थिक हालत चरमरा जाने पर आवश्यकताएं तो उतनी ही रहती हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए पूंजी कम पड़ जाती है। ऐसे में सभी पैसे खर्च कर देना बुद्धिमानी नहीं होगी । अपनी जरूरतों को कम करें, पैसे केवल वहीं लगाएं जहां बहुत जरूरी है। जिसके बिना काम चलाया जा सकता है, उसमें पैसे खर्च ना करें ।
✴ केवल सोंचे नहीं, करें भी
हमारे पास पैसे नहीं है, अब क्या होगा क्या? क्या करना चाहिए? ऐसे सवाल मन में आने स्वभाविक हैं, लेकिन केवल इन पर सोचतें रहने से कुछ बदलने वाला नहीं है।आपको उस दिशा में काम करना होगा। अपनी माली हालत को वापस पटरी पर लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी, या फिर यह कहे कि दोगुना परिश्रम करना होगा। ऐसे में आलस्य का पूर्णतः त्याग कर दें । याद रखें कि आप आज काम करेंगे, तभी कल बेहतर होगा। फिर कभी आप ऐसी स्थिति में ना पहुंचें, इसके लिए कठोर परिश्रम कीजिए और सफल बनिए।
पेश है खेलकूद में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपाय:
☸ सही पोषण
खेलकूद में शारीरिक श्रम होता है। आप खेल के मैदान में अधिक देर तक टिके रहें, इसके लिए आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। यह ऊर्जा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से प्राप्त होती है। यदि आप स्वस्थ नहीं होंगे, तो खेल में बेहतर प्रदर्शन करना संभव नहीं है। इसीलिए आपको अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, अंडे, पनीर, अंकुरित बीज इत्यादि शामिल करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि आपका शारीरिक विकास सही ढंग से हो, और खेल में अधिक ऊर्जा की खपत को आप पूरा कर पाए।
☸ अभ्यास एवं प्रशिक्षण
हीरा जितना घिसा जाता है, उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार आप जितना अभ्यास करेंगे, उतना ही अपने खेल में अच्छे होते जाएंगे । केवल 1 दिन खेल लेने से आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। आपको निरंतर खेल के कौशल को निखारने की जरूरत है। खेल के मैदान में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको कड़ी मेहनत और अभ्यास करना होगा। जिन जगहों पर आप कमजोर हैं, अभ्यास करके उसे अच्छा करें। रोज कुछ घंटे अभ्यास के लिए निकालें। साथ ही एक अच्छे शिक्षक से बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकि आपको अपने खेल के सभी नियम, सभी बारीकियाँ समझ में आए और आपके अभ्यास को सही दिशा मिले।
☸ अनुशासन
खिलाड़ी का अनुशासित होना अत्यावश्यक है। बिना अनुशासित जीवन शैली के आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। अनुशासन आपको हर चीज में स्थापित करना होगा। कड़ी दिनचर्या का पालन करें, अभ्यास प्रतिदिन एवं समय पर करें, 1 दिन भी अभ्यास छूटने नहीं पाए, समय के पाबंद बनें, आज का काम खत्म करें, भोजन में अनुशासन रखें। तभी जाकर आप अपने खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे ।
दोस्तों, हम यह तो जानते हैं कि सकारात्मकता जब आवश्यकता से अधिक हो जाए, तब वह विषाक्त सकारात्मकता का रूप ले लेती है, जो कि हानिकारक है। हम कब इसके शिकार हो जाते हैं, पता भी नहीं चल पाता। यही नहीं, हमारे आसपास लोग इस से ग्रसित हैं, यह पहचानना भी मुश्किल है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम विषाक्त सकारात्मकता की उपस्थिति को पहचानें, और उसे खत्म करें । आइये जानते हैं विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण :
☸ यदि किसी समस्या के आ जाने पर आप उसका सामना नहीं कर पाते, और समस्या से भागने लगते हैं, लेकिन साथ ही आप खुद को और दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करते हैं आप बिल्कुल सकारात्मक हैं, पूरी तरह से ठीक हैं, तो यह विषाक्त सकारात्मकता का लक्षण है। इसीलिए अवलोकन करें कि कोई समस्या आपको अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही। यदि आप ऐसी स्थिति में भी केवल दिखावे के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसे तुरंत बदलें।
☸ यदि कोई व्यक्ति अधि तनावपूर्ण बातें नहीं सुन पाता, और हमेशा उनसे भागने की कोशिश करता रहता है, तो यह भी विषाक्त सकारात्मकता का ही 1 लक्षण है। ऐसे लोगों में यह डर होता है कि नकारात्मक बात सुनने से उनकी सकारात्मकता पर प्रभाव पड़ेगा, इसीलिए सबसे अच्छी बातें कहने को कहते हैं, और यदि कोई अपनी समस्या लेकर आए, तो वह उससे मुंह मोड़ लेते हैं।
☸ यदि कोई व्यक्ति बहुत ही बुरी परिस्थितियों में, जहां समस्या की गंभीरता पर बात करनी चाहिए, वहां भी "सब अच्छा है" ऐसा कहता रहता है, तो वह भी विषाक्त सकारात्मकता से ग्रसित है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मकता से समस्या को हल करने पर जोर नहीं देता, बल्कि सकारात्मकता के नाम पर उस समस्या को दबाने की कोशिश करता रहता है।
माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएं। बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई पर लगाएं, इसलिए माता-पिता अक्सर उनके खेल के समय में कटौती कर देते हैं । कई माता-पिता तो खेलकूद को केवल समय की बर्बादी मात्र मानते हैं। पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रेरित करना अच्छी बात है, पर उन्हें खेलकूद से दूर रखना आपकी भूल साबित हो सकती है।
कैसे?
इसका जवाब आपको नीचे लिखे बिंदुओं में मिलेगा। इस लेख में हम बच्चों के जीवन में खेलकूद के महत्व के बारे में बात कर रहे हैं। इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद आप की सोच जरूर बदल जाएगी, और आप स्वयं बच्चों को खेल के लिए प्रेरित करेंगे :
शारीरिक मजबूती
खेल बच्चों को मजबूत बनाते हैं। इससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता बढ़ती है, एवं वह अधिक सक्रिय रहते हैं। श्रम करने की आदत आगे जाकर उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, जिससे किसी भी काम को करने में शारीरिक कमजोरी उनके लिए बाधा नहीं बनेगी। खेल के दौरान गिरना एवं चोट लगना उनके दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक सहनशील बनाता है।
मानसिक विकास
भविष्य में जीवन के संघर्षों के सामने टिक पाने के लिए आवश्यक है कि बच्चे मानसिक रूप से भी मजबूत हो। खेल की रणनीति पर चिंतन - मनन बच्चों में बच्चे मानसिक श्रम करते हैं। खेल से मिली हार उन्हें चुनौतियों का सामना करने, एवं हार स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।
कभी नया लिखना होता है तो हम 10 बार सोचते हैं, क्या लिखें? कैसे लिखें? शुरू कैसे करें?
कभी-कभी आपके मन में किसी घटना के बारे में लिखने का विचार आता होगा। आप सहमत होंगे कि बोलना जितना आसान है, लिखना उतना नहीं क्योंकि लिखने का प्रभाव बोलने से अधिक स्थाई और प्रभावी होता है, परंतु शर्त यह है कि हमें प्रभावी ढंग से लिखना आए। जी हाँ, क्योंकि लेखन एक कौशल है। इस लेख में हम यही जानेंगे कि प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जा सकता है:
विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा
लिखित अभिव्यक्ति में हमें चाहिए कि विचारों को क्रमबद्ध करके अपने भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करें । स्वाभाविक और स्पष्ट लिखने का प्रयास करें। स्वच्छता, सुंदरता और सुडौल अक्षर का निर्माण, चौथाई छोड़कर लिखना, अक्षर, शब्द और वाक्य से वाक्य के बीच की दूरी को ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात्, लेखन सुंदर और शब्दों की वर्तनी शुद्ध हो। वाक्य की बनावट भी ठीक होनी चाहिए। साथ ही उसमें व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि ना हो। जो आप कहना चाहते हैं, वही अर्थ निकले और वही दूसरों तक पहुंचे।
दोस्तों, झिझक या शर्म हम सबों में होती है। किसी में अधिक, तो किसी में कम, लेकिन सब लोग कभी न कभी किसी न किसी स्थिति में शर्माते हैं। किंतु कुछ व्यक्ति तो ज्यादा लोगों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाते।
यह झिझक चिंता का कारण तब बनती है, जब यह आपके विकास में बाधा बन जाती है। तब, जब झिझक के कारण आपकी हानि होने लगे, पढ़ाई या नौकरी में आपका प्रदर्शन खराब होने लगे, या रोजमर्रा के कामों में भी परेशानी खड़ी हो जाए, तब आपको सजग हो जाने की आवश्यकता है। इसे इतना न बढ़ने दें कि आप कुछ भी करना चाहें तो शर्म के कारण पीछे हट जाए।
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह शर्म बीमारी का रूप ले लेती है, जिसे ऐरिथ्रोफोबिया कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति बात-बात पर शर्म आने लग जाता है। तो अपनी शर्म को खत्म करें, ताकि आप हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत प्रदर्शन कर पाएं।
आत्मविश्वास को बल दे :
झिझक का मुख्य कारण है खुद पर विश्वास की कमी। हम हमेशा खुद को कम करके आंकते हैं । हमें लगता है कि हम में कुछ भी अच्छा नहीं है, और सामने वाले हम पर हसेंगे। पर यह केवल आपकी सोच है। सच्चाई ऐसी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें और हीन भावना मन में ना आने दे। अपनी कमजोरियों को भी आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करें, और अपनी क्षमताओं पर भी भरोसा रखें। यह मानें कि आप अपने आप में खास हैं।
हर कोई चाहता है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए, लोगों के बीच पसंदीदा बने। जब भी हम किसी से मिलते हैं, तो किसी न किसी रूप में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लोगों के ऊपर अपनी छाप छोड़ना एक कला है जो सबको नहीं आती। आप सोचते होंगे कि कैसे कुछ लोग भीड़ में इतने अलग दिखते हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
मित्रों! कुछ लोगों में यह गुण पहले से होता है, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, और कुछ लोग इसे अपने अंदर विकसित करते हैं। आप भी इस कला को सीख सकते हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे आप खुद को भीर से अलग दिखा सकते हैं I
पहनावे पर ध्यान देना
लोगों की नजर में जो सबसे पहली चीज आती है, वह है आपकी वेशभूषा। अच्छे दिखने वाले व्यक्ति पर स्वतः ही लोगों का ध्यान केंद्रित हो जाता है। किंतु यहाँ अच्छे दिखने का तात्पर्य सुंदर दिखने से नहीं है।
खुद को साफ रखें, वह कपड़े पहने जिन्हें आप पूरे आत्मविश्वास के साथ वहन कर सकें, और जो आपके व्यक्तित्व को निखारे।
बेहतरीन संचार कौशल
अच्छे पहनावे से जितनी जल्दी लोगों का ध्यान आप पर केंद्रित होता है, खराब बातचीत के ढंग से उतनी ही जल्दी लोग आपसे मुंह मोड़ लेते हैं। लोगों को प्रभावित करने के लिए जरूरी है कि आपकी बातें उन्हें आपकी तरफ आकर्षित करें। इसके लिए संचार की बारीकियों पर ध्यान दें। शुद्ध एवं साफ भाषा का प्रयोग करें, आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, आवाज़ के उतार चढ़ाव पर ध्यान दें, शारीरिक हाव-भाव का ख्याल रखें, और बात करते समय आई कांटैक्ट बना कर रखें।
दिन भर सोते रहना कितना अच्छा लगता है ना !
हम उन दिनों की कल्पना करते हैं, जब हम सिर्फ आराम करें। न जाने कितने ही कामों को न करने की इच्छा के कारण हम बहाने बना लिया करते हैं। यह अनिच्छा ही आलस्य है, जिसे हमारे शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आइए इस श्लोक को पढ़ें :
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्
आधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्
अर्थात आलस करने वाले को विद्या कहां? जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहां? निर्धन व्यक्ति के पास मित्र कहां? और मित्र के बिना सुख कहां?
इसीलिए आप भी सावधान हो जाएं, और आलस करना छोड़ें।
उपाय :
अनुशासन में रहें और नियम बनाएं
आलस को खत्म करने के लिए आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। खुद के लिए कड़े नियम बनाएं, और उन नियमों को तोड़ने की इजाजत खुद को ना दें। मन के बहकावे में बहकने से खुद को रोकें, और मन ना होने पर भी किसी भी काम को नजरअंदाज ना करें।
नियम टूटने पर सजा के लिए तैयार रहें
खुद के बनाए नियम तोड़ना आसान है, क्योंकि आपको सजा देने वाला कोई नहीं होता। हम बड़ी आसानी से तय किए गए नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं इसीलिए नियमों के साथ सजा भी तय करें। जब भी नियम टूटें, तो खुद को कड़ा दंड दें। इससे आपको ना चाहते हुए भी आलस को त्यागना ही होगा।
खुद को सक्रिय बनाएं
ऐसी क्रियाओं में स्वयं को संलग्न करें, जिनमें आपकी सक्रियता बढे। सुबह दौर लगाएं, शारीरिक कार्य करें, खेल खेले इत्यादि। इससे आपकी आलसी प्रवृत्ति बदलेगी और आप सक्रिय हो पाएंगे।
दृढ़ संकल्प
बिना दृढ़ संकल्प के आपके सारे प्रयास निरर्थक रह जाएंगे। इसीलिए मन में ठान लीजिए, कि आपको आलस छोड़ना है। साथ ही बीच-बीच में स्वयं को इस दिशा में बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें।
आजकल हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग का शिकार है। पहले की तुलना में अब लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं। यहां तक कि नवजात शिशु भी जन्म के साथ ही जॉन्डिस, निमोनिया जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। यदि आज से कुछ दशक पहले की तस्वीर देखी जाए, तो लोग अधिक स्वस्थ हुआ करते थे, और कहीं अधिक लंबा जीवन जिया करते थे। स्वास्थ्य के स्तर में इतनी गिरावट का सबसे मुख्य कारण है बदलती जीवनशैली।
आधुनिक जीवनशैली उपकरणों से घिरी हुई है। हम प्रकृति से दिन-ब-दिन दूर होते जा रहे हैं।
घर में पेड़ पौधे नहीं, बल्कि मोबाइल फ्रिज जैसे ढेरों उपकरण हैं। सूर्य एवं चंद्रमा की रोशनी छोड़ हम बनावटी लाइटों के बीच रहते हैं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ हमारा भोजन हैं, कच्चे फल सब्जियों की जगह हम जंक फूड खाना पसंद करते हैं, व्यायाम की जगह स्थूल जीवन शैली के हम आदी हो गए हैं, यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और जिस जल को ग्रहण करते हैं, वह भी शुद्ध नहीं है। ऐसे में कैसे स्वास्थ्य की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है?
अपने आसपास देखिए। प्रकृति है?
नहीं!
जिस प्रकृति का हम हिस्सा हैं, जिसने हमें बनाया है, उससे दूर होकर हम कैसे ठीक रह सकते हैं ? अपने शरीर की संरचना को समझिये। यह मशीनों के लिए नहीं बनी है। इसीलिए स्वस्थ रहना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है, जब तक आप खुद को प्रकृति से नहीं जोड़ेंगे।
यह सच है कि आप पूरी तरह से आधुनिकता के इस मशीनी माहौल से नहीं बच सकते हैं, लेकिन अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो आप कर सकते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति की गोद में फिर से लौटने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं:
आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा, कि कुछ बच्चे कम पढ़कर भी अच्छे अंक कैसे ले आते हैं?
जबकि कुछ बच्चे जी तोड़ मेहनत करते हैं, पर उनके अंक उस मेहनत के अनुरूप नहीं होते। जब बच्चे साल भर पूरी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, और तब भी उनके अंक संतोषजनक नहीं होते, तब उनका मनोबल टूट जाता है। वह बहुत निराश हो जाते हैं। ऐसे में बच्चे तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। बच्चों के कोमल मन पर निराशा की यह छाया नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह नन्हे फूल मुरझा जाएंगे।
इस स्थिति में फंसे बच्चों की मदद करने के लिए आज के लेख में हम बताने जा रहे हैं, कि आपको अच्छे अंक लाने के लिए कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है :
☸ सबसे पहली सीख, रटे नहीं, कंठस्थ करें।
रटंत विद्या बहुत हानिकारक है। बिना भावार्थ समझें केवल शब्दों या वाक्य को याद कर लेने से आपके ज्ञान में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी चीजें आपको बस कुछ समय तक ही याद रहती है। इस तरह से याद करने वाले बच्चे, तब पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जब सवाल थोड़ा भी घुमा दिया जाता है। क्योंकि आपने जो रट लिया, आपको बस उतना ही आता होता है। इसीलिए याद रखे बच्चों, आप जो भी पढ़ रहे हैं, उससे रटे नहीं, बल्कि समझे कि पाठ में आपको क्या समझाया जा रहा है। एक बार जब विषय वस्तु आपके समझ में आ जाएगी, तब आप उससे संबंधित प्रश्नों को हर तरह से हल कर पाएंगे ।