
Pallavi Thakur
657 अंक
Motivator
अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उकेर कर संजो लीजिए!
नमस्कार! मैं आकाशवाणी की युवा कलाकार हूँ। लेखन एवं हिंदी भाषा में मेरा अत्यधिक रुझान है। इस रुचि को एक ब्लॉगर के रूप में साकार करने के की कोशिश है।

नमस्कार मित्रों। आजकल एक शब्द चिकित्सा विज्ञान में बहुत प्रसिद्ध होता जा रहा है। वह शब्द है "अवसाद"।
यह समस्या आजकल काफी आम हो गई है। आज से कुछ दशक पहले लोग इसके नाम से भी वाकिफ नहीं थे, लेकिन आजकल यह समस्या काफी गंभीर रूप में हमारे बीच मौजूद है। मित्रों, यदि आप अभी तक अवसाद और इससे जुड़ी जानकारी से वंचित है तो आज का लेख आपको अवश्य पढ़ना चाहिए।
चिकित्सा विज्ञान के लिए यह एक बीमारी है लेकिन आज के इस लेख में हम इसे एक बीमारी से ज्यादा मानसिक स्थिति के तौर पर देखेंगे। तो आइए, सबसे पहले जानते हैं आखिर अवसाद है क्या?
अवसाद मनोभाव के दुख से जुड़ी एक अवस्था है, जो मानसिक तनाव, दुख, किसी अप्रिय घटना के घट जाने अथवा मन में निराशाजनक विचार उत्पन्न होने से विकसित होती है।
यह वह स्थिति है जहां व्यक्ति का मन केवल और केवल नकारात्मक विचारों के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। यह अवस्था मामूली चिंता से भिन्न है क्योंकि चिंता बेहतर स्थिति के साथ बेहतर हो जाती है, लेकिन अवसाद स्थाई रूप से मन को प्रभावित करता है। इसीलिए चिकित्सा विज्ञान में इसे रोग की संज्ञा दी गई है।
लगातार अवसाद के बढ़ते मामलों और लोगों के जीवन पर पड़ रहे इसके प्रभाव ने इसे गंभीर चिंता का विषय बना दिया है। यही कारण है कि हम इस विषय पर आपके लिए एक विस्तृत चर्चा लेकर आए हैं।
आज की चर्चा किस के लिए उपयोगी है?
आज की चर्चा लोगों की तीन श्रेणियों के लिए काफी महत्वपूर्ण और अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होने वाली है। यह तीन श्रेणियां है :
✴ वह लोग जो अवसाद से ग्रसित हैं और इससे बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
✴ दूसरे वह लोग जिनके जीवन में तनावपूर्ण स्थितियां और उतार-चढ़ाव का दौर जारी है, एवं उनकी चिंता उन्हें अवसाद की तरफ लेकर जा रही है।
✴ तीसरे वह जो अब तक अवसाद और इसके उग्र रूप से वाकिफ नहीं हैं। आज की चर्चा उन लोगों को यह बताएगी कि अवसाद के प्रारंभिक लक्षण क्या हैं और इसे कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
अतः इससे आपको पता चलेगा कि अवसाद के प्रति सतर्कता कैसे बरती जाए।
मुख्य रूप से आज की चर्चा आपके लिए सतर्कता की एक घंटी है ताकि आप अपने जीवन में अवसाद के प्रवेश को निषेध कर सकें। ऐसा तभी हो सकता है जब आप इसके हर एक पहलू से वाकिफ हों। इसीलिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
हो सकता है आप में से कई यह सोच रहे होंगे कि आपको यह लेख पढ़ने की, या अवसाद के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप पूर्णतः स्वस्थ हैं और अवसाद से ग्रसित नहीं है। लेकिन मित्रों यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो यह आपकी गलती साबित हो सकता है। यह बहुत खुशी की बात है कि आप में अवसाद नामक बीमारी नहीं है लेकिन आप शत-प्रतिशत रूप से यह नहीं कह सकते कि यह बीमारी आपको कभी नहीं हो सकती।
अवसाद किसी को भी, किसी भी उम्र में हो सकता है। ऐसे में अवसाद के लक्षणों को पहचान पाने की क्षमता विकसित करना अति आवश्यक है ताकि आप शुरुआती दिनों में ही इन लक्षणों को समझ कर अपनी बीमारी को भाप लें और सही समय पर कार्यवाही कर सकें।
कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति के मन के अंदर अवसाद की जड़े पनप रही होती हैं लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं चलता।व्यक्ति अवसाद को मामूली चिंता समझकर नजरअंदाज करता जाता है किंतु वह नहीं जान पाता कि उसकी यह चिंता अब एक बीमारी का रूप ले रही है।
ऐसा इसलिए होता है क्यूँकि अवसाद अन्य रोगों से भिन्न है। अन्य रोग हमारे शरीर या शरीर के किसी अंग पर प्रभाव डालते हैं जिसका पता शरीर में आ रहे बदलावों से लगाया जा सकता है।
किंतु अवसाद पूर्णतः एक मानसिक बीमारी है जिसके आमतौर पर लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसकी गंभीरता को आप इस रूप में समझ सकते हैं कि अवसाद से ग्रसित व्यक्ति सामने से बिल्कुल ठीक और तंदुरुस्त नजर आता है लेकिन मानसिक तौर पर स्थिति इसके ठीक विपरीत होती है।
यदि सालों - साल तक अवसाद इसी स्थिति में व्यक्ति के मस्तिष्क में रहे तो यह अपना प्रभाव शरीर और उसके अंगों पर भी दिखाना शुरू कर देती है। ऐसे में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि अवसाद के कारण व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाए। ऐसे में आज का लेख आपके लिए अत्यंत आवश्यक हो जाता है। ताकि आप अपने अंदर अवसाद एवं उसके हर पहलू के प्रति जागरूकता ला सकें और मामूली चिंता और अवसाद के बीच के फर्क को समझाएं।
चर्चा की शुरुआत में हमने अवसाद की परिभाषा जानी है। अब इसी कड़ी में हम अवसाद के शुरुआती लक्षणों के बारे में बात करेंगे। यहां आपको यह पता चलेगा कि व्यक्ति के वह कौन-कौन से लक्षण है जो इस तरह इशारा करते हैं कि हो सकता है व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हो।
मित्रों, ऐसे तो अवसाद के लक्षणों को समझ पाना मुश्किल है क्योंक हर व्यक्ति कभी ना कभी चिंता और तनावपूर्ण स्थितियों से होकर गुजरता है। ऐसे में यह कह पाना कि यह चिंता है या अवसाद, काफी मुश्किल हो जाता है। और दूसरी तरफ अवसाद के लक्षण भली-भांति तब उभर कर आते हैं, जब यह उग्र रूप ले चुका होता है। फिर भी व्यक्ति के अंदर कुछ ऐसे बदलाव हैं जिन का अवलोकन करके आप यह भाप सकते हैं कि वह अवसाद की ओर जा रहे हैं या नहीं।
✴ अत्यधिक उत्तेजना :
अवसाद से ग्रसित व्यक्ति का मन हमेशा दुख और नकारात्मक विचारों से भरा रहता है, और उसका मन हर वक्त अशांत रहता है। इसीलिए यह मानसिक अस्थिरता उत्तेजना के रूप में बाहर आती है। यह अवसाद का एक मुख्य लक्षण है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति हर छोटी बड़ी बात पर गुस्सा करने लग जाता है। वह हर समय चिड़चिड़ाहट से भरा रहता है और किसी से भी अच्छे से बात नहीं करता।
✴ उसकी भाषा दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है और वह गाली - गलौज भी करने लग जाता है।
अक्सर अवसाद से ग्रसित व्यक्ति ऐसी बातों पर भी गुस्सा हो जाते हैं जिनका कोई आधार नहीं होता। ऐसा लगता है मानो उन्हें क्रोध करने का केवल एक बहाना चाहिए है। सीधी तरह जवाब ना देना, चीजों को तोड़फोड़ करना, लोगों की सलाह पर उत्तेजित हो जाना, धैर्य खो देना, हमेशा ऊंची आवाज में बात करना और भाषा का बिगड़ जाना, यह अवसाद के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।यह सभी लक्षण अवसाद की पुष्टि तब करते हैं जब व्यक्ति पहले ऐसा ना हो। एक ऐसा व्यक्ति जो हंसमुख स्वभाव का हो और शिष्ट हो यदि उसके आचरण में इस प्रकार के बदलाव आए तो यह अवसाद का ही लक्षण है। कोई ना कोई ऐसी बात है जो उन्हें मन ही मन परेशान कर रही है। इसीलिए इन लक्षणों को समझने में देर ना करें और तुरंत व्यक्ति की सहायता करें।
✴ अत्यधिक शंका :
मित्रों, अवसाद की स्थिति में व्यक्ति को हर तरफ केवल निराशा नजर आती है। परिवार, रिश्तेदार, मित्र जन, कोई भी उसे अपना नहीं लगता। धीरे-धीरे उसका विश्वास संबंधों से उठने लग जाता है और यही कारण है कि उसका व्यवहार शंका पूर्ण हो जाता है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति यदि छोटी-छोटी बात पर शंका करने लगे, और साथ ही यदि वह किसी पर भी विश्वास ना करें तो यह एक प्रमुख लक्षण है। दुखी व्यक्ति यह समझने लगता है कि कोई भी उसे नहीं समझता और उसे किसी की भी बातों पर विश्वास नहीं रह जाता। वह हर एक व्यक्ति को, यहां तक कि अपने परिवार के लोगों को भी शंका की नजर से देखने लग जाता है और अजीब सवाल पूछने लग जाता है।
व्यक्ति के अंदर आए इस बदलाव को बिल्कुल नजरअंदाज ना करें। अचानक आए यह लक्षण इस ओर इशारा करते हैं कि व्यक्ति सामाजिक दायरे से खुद को दूर करता जा रहा है और एकाकीपन मैं प्रवेश करता जा रहा है।
✴ अत्यधिक दुखी या शांत रहना :
मित्रों, हर व्यक्ति में अवसाद के लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं। एक तरफ कोई व्यक्ति बहुत अधिक क्रोध करने लग जाता है, तो दूसरी तरफ कोई व्यक्ति बिल्कुल चुप हो जाता है। ऐसे व्यक्ति दिन भर उदास रहते हैं और हर वक्त कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं। उन्हें कितना भी हंसाने की कोशिश की जाए, किंतु उनके चेहरे पर मुस्कान नहीं आती है।
वह किसी भी चीज़ से खुश नहीं होते और हमेशा गंभीर और उदास रहते हैं। इसके साथ ही एक प्रमुख लक्षण है बातचीत बंद या कम कर देना। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति मन में चल रहे द्वंद से इतना अधिक प्रभावित हो जाता है कि वह उसी में उलझ कर रह जाता है।
ऐसे व्यक्ति अक्सर बहुत कम बात करते हैं, या तो बिल्कुल ही बात करना बंद कर देते हैं। यदि आपकी किसी प्रियजन में इस प्रकार के लक्षण दिख रहे हैं तो यह गंभीर चिंता का विषय है। इसका अर्थ यह है कि अवसाद अब काफी आगे बढ़ चुका है और यही वक्त है जब आपको तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।
✴ अनिच्छा :
अवसाद से ग्रसित व्यक्ति में उत्साह और कुछ नया करने का जोश बिल्कुल ही खत्म हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह हर चीज को निराशा और नकारात्मकता भरी नजरों से देखता है। उसके जीवन में आशा की कोई उम्मीद नहीं होती है और उसे यह लगने लगता है कि अब कोई भी चीज करने का कोई फायदा नहीं है।इसका परिणाम यह होता है कि वह किसी भी नई चीज को करने के प्रति अत्यधिक उदासीन हो जाता है। चाहे बात कहीं जाने की हो, त्योहार मनाने की हो या कुछ और करने की हो, हर मौके पर व्यक्ति कोई ना कोई बहाना बनाकर चीजों को टाल दिया करता है।
उसकी उदासीनता अथवा अनिच्छा इस हद तक बढ़ जाती है कि व्यक्ति खुद को एक कमरे तक ही सीमित कर लेता है और दिन भर बैठते हुए या सोते हुए ही बिता देता है। यह अवसाद का लक्षण हो सकता है।
✴ सामाजिक दूरी :
मित्रों, अवसाद से ग्रसित व्यक्ति की स्थिति बहुत बुरी होती है। उसे मन ही मन कई यातनाएं झेलनी पड़ती है। अवसाद के कारण व्यक्ति हर दिन, हर समय दुख, चिंता और निराशा में बिताता है।उसके लिए खुशी का कोई मतलब नहीं रह जाता। वहीं दूसरी तरफ वह स्वयं को ऐसे लोगों के बीच अलग थलग महसूस करता है जो हंसते - बोलते हैं, उत्साहवान, और आशावादी हैं ।
ऐसे लोग खासकर अपने आपको सामाजिक समारोहों से कोसों दूर रखते हैं क्योंकि उन्हें लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं होता। वह हर समय अकेले रहना चाहते हैं और यदि जबरदस्ती उन्हें कई लोगों के बीच ले जाया जाए तो वह या तो बहुत घबरा जाते हैं या तो बहुत अधिक क्रोधित हो जाते हैं।
इसके साथ ही अवसाद के कारण उनका आत्मविश्वास भी बहुत कम हो जाता है जिससे वह लोगों के बीच जाने से झिझकने लगते हैं। यदि आपको ऐसा लग रहा है कि आपका कोई प्रिय जन खुद को सामाजिक घेरे से दूर करता जा रहा है या अपने परिवारजनों और मित्रों से बात नहीं करता, किसी भी सामाजिक समारोह में भाग नहीं लेता, तो आपको इस विषय पर चिंतन करना चाहिए कि आखिर व्यक्ति को क्या दिक्कत है? कहीं ऐसा ना हो कि यह अवसाद का ही लक्षण हो।
✴ शारीरिक लक्षण :
अवसाद एक ऐसी बीमारी है जो मानसिक स्तर पर व्यक्ति के मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। लेकिन इसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर का ही अंग है। इसीलिए यदि मस्तिष्क स्वस्थ नही होता है तो इसका प्रभाव शरीर के अंगों पर भी पड़ता है। अवसाद से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर पीठ, कमर या गर्दन में दर्द की शिकायत होती है। इसके साथ ही अवसाद के सबसे प्रमुख लक्षणों में से एक है नींद की कमी। अवसाद से पीड़ित व्यक्ति बहुत कम सोता है।
कुछ मामलों में तो मरीज़ पूरी रात जागता रह जाता है। वह कितनी भी कोशिश करें पर वह पर्याप्त नींद नहीं ले पाता है। अवसाद से जनित चिरचिरापन नींद की कमी का ही परिणाम होता है। पर्याप्त नींद ना लेने से व्यक्ति दिन के समय अव्यवस्थित और भ्रमित रहता है।
इसके साथ ही अवसाद से पीड़ित व्यक्ति बहुत जल्दी रो पड़ते हैं। पहले से ही उनका मन दुखी होता है, और ऐसे में यदि कोई छोटी सी भी बात उन्हें कह दी जाए तो वह तुरंत ही रो पड़ते हैं। उन्हें छोटी-छोटी बातों का भी बहुत बुरा लग जाता है और वह अपनी भावनाओं पर से नियंत्रण खो देते हैं।
मित्रों, यह तो थे लक्षण। इन लक्षणों के आधार पर हम अवसाद की उपस्थिति को पहचान सकते हैं और उसके उपचार की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं। लेकिन उपचार की बात करने से पहले हम आइए बात करते हैं कि आजकल अवसाद के मामले आखिर क्यों इतने बढ़ रहे हैं।
केवल बड़े या बुजुर्ग ही नहीं बल्कि आजकल युवाओं में अवसाद के मामले कहीं ज्यादा बढ़ चुके हैं। युवाओं में अवसाद का इस प्रकार फैलना गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि कच्ची उम्र में युवा इस मानसिक तकलीफ को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और अक्सर वह गलत रास्ता चुन बैठते हैं।
वर्तमान समय में युवाओं द्वारा की जा रही आत्महत्या और नशीले पदार्थों अवसाद के सबसे बुरे परिणाम साबित हो रहे हैं। इसीलिए आइए जानते हैं कि वह क्या कारण है कि अवसाद सभी उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा है। युवाओं में अवसाद के मुख्य कारण कुछ इस प्रकार है।
✴ माता पिता से प्रेम न मिल पाना
अभिभावकों के बीच चल रहा तनाव या फिर माता पिता का अलग हो जाना बच्चे के मन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। युवावस्था में बच्चे को माता और पिता दोनों के स्नेह की आवश्यकता होती है। ऐसे में अभिभावकों के बीच का तनाव, झगड़े या मन मोटाव युवाओं में अवसाद को जन्म दे सकता है।✴ अच्छे अंक लाने की प्रतियोगिता :
इसके साथ ही आजकल अभिभावकों द्वारा बच्चों पर अच्छे अंक लाने के लिए बहुत प्रेशर बनाया जाता है। अच्छे अंक बच्चे की बुद्धिमता परिचायक बन गए हैं इसीलिए हर अभिभावक यह चाहता है कि उसका बच्चा सबसे अधिक अंक लाए। इसके साथ ही माता पिता अपने बच्चे के अच्छे अंकों को समाज में अपनी प्रतिष्ठा का सूचक समझते हैं । लेकिन अक्सर वह यह भूल जाते हैं कि माता-पिता की यह चाहत बच्चों पर मानसिक दबाव डालती है।यह दबाव यदि आवश्यकता से अधिक हो जाए तो अवसाद का रूप धारण कर सकता है। बच्चों के लिए यह तनाव घातक सिद्ध हो सकता है और यदि वह किसी कारण परीक्षा में अच्छे अंक लाने में सक्षम नहीं हुए तो स्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं। अच्छे अंक ना आने के कारण उन्हें अभिभावकों अपने मित्र जनों और रिश्तेदारों से कठोर बातें सुनने को मिलती है जिसके कारण उनका तनाव अवसाद के रूप में परिवर्तित हो सकता है।
निष्कर्ष :
तो मित्रों, यह था आज का लेख जहाँ आपने जाना कि अवसाद बहुत गंभीर स्थिति बनती जा रही है। यह ऐसी बीमारी है जो किसी भी व्यक्ति को, किसी भी समय अपना शिकार बना सकती है। कई बार हमारे आसपास हमारे रिश्तेदार, प्रिय जन अथवा मित्र अंदर ही अंदर अवसाद के दुख को झेल रहे होते हैं किंतु हम इससे बेखबर रहते हैं।ऐसी स्थिति में आज के लेख में आपको जो जानकारियां प्राप्त हुए हैं, जिन लक्षणों का पता आपको चला है, उनका इस्तेमाल करके आप दूसरों के अंदर अवसाद के लक्षणों को पहचान सकते हैं।
साथ हैं आप खुद भी सतर्क रह सकते हैं ताकि जैसे ही आपके अंदर अवसाद के लक्षण पैदा होने लगे आप इनका पता लगा सके।
मित्रों, अवसाद से ग्रसित व्यक्ति निराशाजनक हो जाता है। यदि इसका उपचार समय पर ना हुआ तो यह व्यक्ति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। आशंका है कि व्यक्ति इस स्थिति से परेशान होकर आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा ले। ऐसे में अवसाद के प्रति जागरूकता कितनी आवश्यक है यह आप जरूर समझ गए होंगे।
यदि इस लेख से जुड़ी राय आपके मन में हो तो हमारे साथ उन्हें साझा करना बिल्कुल ना भूलें।
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सुबह मिलेगा समय चुराने का अवसर !
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने !
समय चुराने का तात्पर्य किसी और के समय को चुराना नहीं है, बल्कि दिन के 24 घंटों में से उस समय का उपयोग करना है जिसे आप यूं ही गवा रहे हैं। यदि आपने बेकार हो रहे समय का इस प्रकार उपयोग कर लिया तो ऐसी स्थिति में आपके पास उस व्यक्ति की तुलना में अधिक समय होता है जो देर तक सोते रहता है।
यदि आप सुबह 8:00 बजे के स्थान पर 5:00 बजे ही उठ जाते हैं, तो सामान्य दिनों की तुलना में आपके पास उस दिन 3 घंटे अधिक होंगे। अब सोचिए कि इन तीन घंटों में आप कितने कार्यों को निपटा सकते हैं।
➤ यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह 3 घंटे आपके लिए अमूल्य होंगे। आप इस समय में अपनी पढ़ाई का बड़ा हिस्सा कवर कर सकते हैं।
➤ कामकाजी लोग इन 3 घंटों में उन कामों को निपटा सकते हैं, जो दिन में व्यस्तता के कारण वह नहीं कर पाते।
➤ यह अतिरिक्त समय उन लोगों के लिए कोहिनूर हीरे समान है जो पूरे दिन में अपने लिए कुछ खास वक्त नहीं निकाल पाते। इस समय को खुद को समर्पित कर के आप अपना मानसिक, भावनात्मक विकास कर सकते हैं।
➤ यदि आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, और समय के अभाव के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो सुबह के यह कुछ घंटे आपके लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
➤ इसके साथ ही यदि आप योग व्यायाम आदि नहीं कर पाते हैं तो आप इस समय को ध्यान, योग - व्यायाम आदि के लिए निकाल सकते हैं।
यदि आप दिन में कुछ अधिक समय की अपेक्षा करते हैं तो भला सुबह के समय से अच्छा और क्या हो सकता है।

मित्रों, जब कभी भी आप सुबह बहुत जल्दी उठते हो तो आपने महसूस किया होगा कि उस दिन आप पूरे दिन तरोताज़ा, चुस्त व सक्रिय महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ देर तक सोते रहने से बाकी के समय भी आप सुस्त महसूस करते हैं।
मित्रों, यदि आप स्वास्थ्य से जुड़ी किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो सुबह जल्दी उठना आपको अपनी बीमारी से छुटकारा पाने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना इस प्रकार से की है, कि हमें रात को जल्दी सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए।
यह नियम प्रकृति ने हमारे शरीर के लिए बनाया है, मानव शरीर के लिए रात सोने के लिए और सुबह जागने के लिए बनाई गयी है। यदि हम इसके अनुरूप कार्य करेंगे, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन यदि हम इसके प्रतिकूल जाएंगे तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
आइये चलते-चलते जाने सुबह उठने के स्वास्थ्य संबंधी लाभों को :
✴ सुबह का समय व्यायाम करने के लिए बेहतरीन समय है। इस समय किया गया योग - व्यायाम और प्रणायाम सबसे अधिक फायदेमंद है।
✴ सुबह की प्रदूषण मुक्त ताजी और ठंडी हवा श्वास संबंधी विकारों, जैसे अस्थमा इत्यादि में राहत पाने के लिए बेहद कारगर है।
✴ यदि बात शरीर को विटामिन डी उपलब्ध कराने की आती है तो सुबह की धूप से अच्छा विकल्प और नहीं है। सबह की धूप शरीर पर लगाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है।
✴ सुबह का समय अवसाद, तनाव से ग्रसित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है। जो लोग मानसिक शांति चाहते हैं वह सुबह के समय सैर कर एवं प्रकृति के साथ समय बिता कर अपनी स्थिति में चमत्कारिक परिवर्तन देख सकते हैं।
मित्रों, आपने तेनालीराम की कई कहानियां सुनी होंगी। उनकी हाजिर-जवाबी और बुद्धिमता के किस्से घर-घर में मशहूर हैं। आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो आपको गुदगुदाएगी भी, और एक महत्वपूर्ण सीख भी देगी।
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय अति उदार स्वभाव के थे। वह अपनी प्रजा की हर आवश्यकता पूरी करते थे। राजा के इसी उदार स्वभाव के कारण विजयनगर के ब्राम्हण बड़े ही लालची हो गए थे। वह हमेशा किसी ना किसी बहाने से अपने राजा से धन वसूल किया करते थे। एक दिन राजा कृष्ण देव राय ने उनसे कहा - "मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? " यह सुनते ही एक ब्राम्हण ने कहा- " यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक-एक आम दान दें तो आपकी मां की आत्मा को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप ही पहुंच जाता है।" सभी ब्राह्मणों में ने इस पर हां में हां मिलाई।
राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों के इस प्रस्ताव से सहमत हुए। उन्होंने ब्राह्मणों को 108 सोने के आम दान कर दिए। इन आमों को पाकर ब्राह्मणों की तो मौज हो गई। जब तेनालीराम को इस घटना की सूचना मिली, तब ब्राह्मणों के इस लालच पर उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन लालची ब्राह्मणों को सबक सिखाने की ठान ली।
जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई, तो 1 महीने बाद उन्होंने ब्राह्मणों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा कि वह भी अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं । खाने-पीने और बढ़िया माल पानी के लालच में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर पर जमा हुए।

✴ जिस प्रकार रोग शरीर का छय करता है, उसी प्रकार क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।
✴ क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाता है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने से प्राणी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
✴ क्रोधी एवं अहंकारी व्यक्ति को दुनिया में कोई अधिक क्षति नहीं पहुंचा सकता, क्योंकि यह 2 गुण ही उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त हैं।
✴ एक क्रोधी व्यक्ति में तीन गुण गौंण होते हैं - धैर्य, बुद्धि, एवं संवेदनशीलता। इन तीन गुणों के नाश के कारण उसकी सफलता, प्रतिष्ठा, एवं संबंधों का नाश हो जाता है।
✴ जब ज्ञान की वर्षा होती है, तब क्रोध की अग्नि धुआं बनकर उड़ जाती हैं। अतः ज्ञान अर्जित करें।
क्या आपने गौर किया है कि जिस दिन आप बहुत सुबह उठ जाते हैं, उस दिन आप तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं?
साथ ही सुबह के वातावरण में घूमने से एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुबह का समय बहुत अद्भुत होता है। यदि आप जल्दी उठते हैं, तो अन्य दिनों के मुकाबले आपके पास दिन के कुछ घंटे और बढ़ जाते हैं, जिसे आप सफलता पाने के लिए निवेश कर सकते हैं।
जी हां दोस्तों ऐसा बहुत कुछ है जो सुबह के समय करने से आप लाभान्वित हो सकते हैं। इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सुबह की वह पांच आदतें जो सफलता पाने में आपकी मदद कर सकते हैं :
कई बार ऐसा होता है कि कुछ चीजों या घटनाओं को लेकर हम इतना अधिक चिंतन मनन करने लगते हैं, कि वह विचार हमें परेशान करने लग जाते हैं। कभी कभार ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है, किंतु यदि आप हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर देर तक सोचनें लगे, तो यह आपके लिए समस्या बन जाएगी।
कुछ लोग तो इस आदत से इस तरह प्रभावित होते हैं, कि छोटी से छोटी चीज़ करने से पहले अनावश्यक ही हजारों बार सोचते हैं, और कुछ कर देने के बाद भी उस पर घंटों तक विचार करते रह जाते हैं। इस तरह अति अधिक सोचने से न जाने कौन-कौन से विचार मन में आने लगते हैं, और व्यक्ति पूरी तरह व्याकुल हो जाता है। साथ ही, आपका आत्मविश्वास भी धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि आप हर कार्य को लेकर संशय में रहने लग जाते हैं।
इस आदत को छोड़ देना ही बेहतर होगा। लेकिन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने ही विचारों में उलझ कर रह जाते हैं। इसीलिए हम आपके लिए कुछ ऐसे बिंदु लेकर आए हैं, जिन पर गौर करने पर आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा सकते हैं :
दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि क्रोध के आवेश में आकर हम लड़ाई - झगड़े में कूद पड़ते हैं, लेकिन जब शांत दिमाग से इस बारे में सोचते हैं, तब हमें अपने कृत्य का पछतावा होता है।
केवल यही नहीं दोस्तों, झगड़े के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। बाद में पछताने से अच्छा है कि हम यह स्थिति आने ही ना दें। अक्सर ऐसी स्थितियों में हम समझ नहीं पाते की क्या उचित है, इसीलिए अंततः हम झगड़े में कूद पड़ते हैं। लेकिन आपको कोशिश करनी चाहिए कि जितना हो सके आप झगड़े को टाल सके, क्योंकि यह किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।

दोस्तों आज हम आपको एक बहुत ही रोचक कहानी सुनाने वाले हैं। यह कहानी है दो बहनों, हल्दी और सोंठ की। हल्दी स्वभाव से परोपकारी और दयालु थी लेकिन सौंठ घमंडी और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह हमेशा अपनी बड़ी बहन हल्दी पर हुक्म जमाया करती थी। दिन यूं ही बीते रहे।
1 दिन दोनों बहनों के घर उनकी बूढ़ी नानी का संदेशा आया। बूढ़ी नानी ने अपनी मदद के लिए एक बहन को बुलाया था। संदेशा पढ़ते ही सौंठ समझ गई कि वहां जाकर उसे ढेरों काम करने पड़ेंगे, इसीलिए उसने तुरंत ही बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। जब हल्दी ने संदेश पढ़ा, वह तुरंत वहां जाकर उनकी सेवा करना चाहती थी। इसीलिए माता पिता की आज्ञा लेकर वहां अपनी नानी के घर के लिए निकल पड़ी।
रास्ते में उससे एक गाय दिखाई दी । हल्दी को देखकर उस गाय ने मदद के लिए उसे पुकारा। हल्दी तुरंत वहां गई और उसने गाय से पूछा कि उसे क्या कष्ट है। इस पर गाय ने कहा कि उसके आस पास बहुत सारा गोबर इकट्ठा हो गया है। तो क्या हल्दी इससे साफ कर देगी। हल्दी अपने परोपकारी स्वभाव के कारण तुरंत गाय की मदद के लिए मान गई और सारा गोबर साफ कर दिया। गाय बहुत प्रसन्न हुई । अब हल्दी ने गाय से विदा ली और आगे चल पड़ी। फिर उसे एक बेर का पेड़ दिखा जिसके आस पास बहुत से पत्ते बिखरे पड़े थे। हल्दी को वहां से गुजरता देख बेर ने भी उस से मदद मांगी, हल्दी ने उसके सभी बिखरे पत्तों को साफ कर दिया और बेर अति प्रसन्न हुआ। फिर कुछ दूर आगे बढ़कर उससे एक पर्वत दिखा जिसके आसपास कई ईट पत्थर थे। हल्दी ने पूरे मन से सभी ईंटों को साफ कर दिया और फिर नानी के घर की ओर चल पड़ी।
जीवन में कभी न कभी हम सबको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसे में इनसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कमज़ोर आर्थिक स्तिथि से निपटने के लिए आपको बहुत धैर्य एवं सकारात्मकता के साथ कदम बढ़ाने होंगे। हालातों से हार मान लेने से काम नहीं चलेगा। आपको इनसे उबरने के लिए अपने हौसले को बनाये रखना होगा। दोस्तों, भूले नहीं कि रात के बाद दिन ज़रूर आता है, इसी तरह दुःख के बाद सुख आना भी निश्चित है। तो आइये जानते हैं, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से आप किस तरह निपट सकते है :
✴ आवश्यकताओं को सीमित करें
जब आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तब आपको पैसे बचाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। आर्थिक हालत चरमरा जाने पर आवश्यकताएं तो उतनी ही रहती हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए पूंजी कम पड़ जाती है। ऐसे में सभी पैसे खर्च कर देना बुद्धिमानी नहीं होगी । अपनी जरूरतों को कम करें, पैसे केवल वहीं लगाएं जहां बहुत जरूरी है। जिसके बिना काम चलाया जा सकता है, उसमें पैसे खर्च ना करें ।
✴ केवल सोंचे नहीं, करें भी
हमारे पास पैसे नहीं है, अब क्या होगा क्या? क्या करना चाहिए? ऐसे सवाल मन में आने स्वभाविक हैं, लेकिन केवल इन पर सोचतें रहने से कुछ बदलने वाला नहीं है।आपको उस दिशा में काम करना होगा। अपनी माली हालत को वापस पटरी पर लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी, या फिर यह कहे कि दोगुना परिश्रम करना होगा। ऐसे में आलस्य का पूर्णतः त्याग कर दें । याद रखें कि आप आज काम करेंगे, तभी कल बेहतर होगा। फिर कभी आप ऐसी स्थिति में ना पहुंचें, इसके लिए कठोर परिश्रम कीजिए और सफल बनिए।
पेश है खेलकूद में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपाय:
☸ सही पोषण
खेलकूद में शारीरिक श्रम होता है। आप खेल के मैदान में अधिक देर तक टिके रहें, इसके लिए आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा होनी चाहिए। यह ऊर्जा वसा एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से प्राप्त होती है। यदि आप स्वस्थ नहीं होंगे, तो खेल में बेहतर प्रदर्शन करना संभव नहीं है। इसीलिए आपको अपने खान-पान पर खास ध्यान देने की जरूरत है। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, अंडे, पनीर, अंकुरित बीज इत्यादि शामिल करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि आपका शारीरिक विकास सही ढंग से हो, और खेल में अधिक ऊर्जा की खपत को आप पूरा कर पाए।
☸ अभ्यास एवं प्रशिक्षण
हीरा जितना घिसा जाता है, उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार आप जितना अभ्यास करेंगे, उतना ही अपने खेल में अच्छे होते जाएंगे । केवल 1 दिन खेल लेने से आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। आपको निरंतर खेल के कौशल को निखारने की जरूरत है। खेल के मैदान में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए आपको कड़ी मेहनत और अभ्यास करना होगा। जिन जगहों पर आप कमजोर हैं, अभ्यास करके उसे अच्छा करें। रोज कुछ घंटे अभ्यास के लिए निकालें। साथ ही एक अच्छे शिक्षक से बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकि आपको अपने खेल के सभी नियम, सभी बारीकियाँ समझ में आए और आपके अभ्यास को सही दिशा मिले।
☸ अनुशासन
खिलाड़ी का अनुशासित होना अत्यावश्यक है। बिना अनुशासित जीवन शैली के आप बेहतर खिलाड़ी नहीं बन सकते। अनुशासन आपको हर चीज में स्थापित करना होगा। कड़ी दिनचर्या का पालन करें, अभ्यास प्रतिदिन एवं समय पर करें, 1 दिन भी अभ्यास छूटने नहीं पाए, समय के पाबंद बनें, आज का काम खत्म करें, भोजन में अनुशासन रखें। तभी जाकर आप अपने खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे ।
दोस्तों, हम यह तो जानते हैं कि सकारात्मकता जब आवश्यकता से अधिक हो जाए, तब वह विषाक्त सकारात्मकता का रूप ले लेती है, जो कि हानिकारक है। हम कब इसके शिकार हो जाते हैं, पता भी नहीं चल पाता। यही नहीं, हमारे आसपास लोग इस से ग्रसित हैं, यह पहचानना भी मुश्किल है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम विषाक्त सकारात्मकता की उपस्थिति को पहचानें, और उसे खत्म करें । आइये जानते हैं विषाक्त सकारात्मकता के लक्षण :
☸ यदि किसी समस्या के आ जाने पर आप उसका सामना नहीं कर पाते, और समस्या से भागने लगते हैं, लेकिन साथ ही आप खुद को और दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करते हैं आप बिल्कुल सकारात्मक हैं, पूरी तरह से ठीक हैं, तो यह विषाक्त सकारात्मकता का लक्षण है। इसीलिए अवलोकन करें कि कोई समस्या आपको अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा परेशान तो नहीं कर रही। यदि आप ऐसी स्थिति में भी केवल दिखावे के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसे तुरंत बदलें।
☸ यदि कोई व्यक्ति अधि तनावपूर्ण बातें नहीं सुन पाता, और हमेशा उनसे भागने की कोशिश करता रहता है, तो यह भी विषाक्त सकारात्मकता का ही 1 लक्षण है। ऐसे लोगों में यह डर होता है कि नकारात्मक बात सुनने से उनकी सकारात्मकता पर प्रभाव पड़ेगा, इसीलिए सबसे अच्छी बातें कहने को कहते हैं, और यदि कोई अपनी समस्या लेकर आए, तो वह उससे मुंह मोड़ लेते हैं।
☸ यदि कोई व्यक्ति बहुत ही बुरी परिस्थितियों में, जहां समस्या की गंभीरता पर बात करनी चाहिए, वहां भी "सब अच्छा है" ऐसा कहता रहता है, तो वह भी विषाक्त सकारात्मकता से ग्रसित है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मकता से समस्या को हल करने पर जोर नहीं देता, बल्कि सकारात्मकता के नाम पर उस समस्या को दबाने की कोशिश करता रहता है।

माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएं। बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई पर लगाएं, इसलिए माता-पिता अक्सर उनके खेल के समय में कटौती कर देते हैं । कई माता-पिता तो खेलकूद को केवल समय की बर्बादी मात्र मानते हैं। पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रेरित करना अच्छी बात है, पर उन्हें खेलकूद से दूर रखना आपकी भूल साबित हो सकती है।
कैसे?
इसका जवाब आपको नीचे लिखे बिंदुओं में मिलेगा। इस लेख में हम बच्चों के जीवन में खेलकूद के महत्व के बारे में बात कर रहे हैं। इन बिंदुओं पर गौर करने के बाद आप की सोच जरूर बदल जाएगी, और आप स्वयं बच्चों को खेल के लिए प्रेरित करेंगे :
शारीरिक मजबूती
खेल बच्चों को मजबूत बनाते हैं। इससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता बढ़ती है, एवं वह अधिक सक्रिय रहते हैं। श्रम करने की आदत आगे जाकर उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, जिससे किसी भी काम को करने में शारीरिक कमजोरी उनके लिए बाधा नहीं बनेगी। खेल के दौरान गिरना एवं चोट लगना उनके दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक सहनशील बनाता है।
मानसिक विकास
भविष्य में जीवन के संघर्षों के सामने टिक पाने के लिए आवश्यक है कि बच्चे मानसिक रूप से भी मजबूत हो। खेल की रणनीति पर चिंतन - मनन बच्चों में बच्चे मानसिक श्रम करते हैं। खेल से मिली हार उन्हें चुनौतियों का सामना करने, एवं हार स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।
कभी नया लिखना होता है तो हम 10 बार सोचते हैं, क्या लिखें? कैसे लिखें? शुरू कैसे करें?
कभी-कभी आपके मन में किसी घटना के बारे में लिखने का विचार आता होगा। आप सहमत होंगे कि बोलना जितना आसान है, लिखना उतना नहीं क्योंकि लिखने का प्रभाव बोलने से अधिक स्थाई और प्रभावी होता है, परंतु शर्त यह है कि हमें प्रभावी ढंग से लिखना आए। जी हाँ, क्योंकि लेखन एक कौशल है। इस लेख में हम यही जानेंगे कि प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जा सकता है:
विचारों की अभिव्यक्ति और भाषा
लिखित अभिव्यक्ति में हमें चाहिए कि विचारों को क्रमबद्ध करके अपने भावों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करें । स्वाभाविक और स्पष्ट लिखने का प्रयास करें। स्वच्छता, सुंदरता और सुडौल अक्षर का निर्माण, चौथाई छोड़कर लिखना, अक्षर, शब्द और वाक्य से वाक्य के बीच की दूरी को ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात्, लेखन सुंदर और शब्दों की वर्तनी शुद्ध हो। वाक्य की बनावट भी ठीक होनी चाहिए। साथ ही उसमें व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि ना हो। जो आप कहना चाहते हैं, वही अर्थ निकले और वही दूसरों तक पहुंचे।
दोस्तों, झिझक या शर्म हम सबों में होती है। किसी में अधिक, तो किसी में कम, लेकिन सब लोग कभी न कभी किसी न किसी स्थिति में शर्माते हैं। किंतु कुछ व्यक्ति तो ज्यादा लोगों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाते।
यह झिझक चिंता का कारण तब बनती है, जब यह आपके विकास में बाधा बन जाती है। तब, जब झिझक के कारण आपकी हानि होने लगे, पढ़ाई या नौकरी में आपका प्रदर्शन खराब होने लगे, या रोजमर्रा के कामों में भी परेशानी खड़ी हो जाए, तब आपको सजग हो जाने की आवश्यकता है। इसे इतना न बढ़ने दें कि आप कुछ भी करना चाहें तो शर्म के कारण पीछे हट जाए।
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह शर्म बीमारी का रूप ले लेती है, जिसे ऐरिथ्रोफोबिया कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति बात-बात पर शर्म आने लग जाता है। तो अपनी शर्म को खत्म करें, ताकि आप हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत प्रदर्शन कर पाएं।
आत्मविश्वास को बल दे :
झिझक का मुख्य कारण है खुद पर विश्वास की कमी। हम हमेशा खुद को कम करके आंकते हैं । हमें लगता है कि हम में कुछ भी अच्छा नहीं है, और सामने वाले हम पर हसेंगे। पर यह केवल आपकी सोच है। सच्चाई ऐसी नहीं है। खुद पर विश्वास रखें और हीन भावना मन में ना आने दे। अपनी कमजोरियों को भी आत्मविश्वास के साथ स्वीकार करें, और अपनी क्षमताओं पर भी भरोसा रखें। यह मानें कि आप अपने आप में खास हैं।

हर कोई चाहता है कि वह अपनी अलग पहचान बनाए, लोगों के बीच पसंदीदा बने। जब भी हम किसी से मिलते हैं, तो किसी न किसी रूप में उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लोगों के ऊपर अपनी छाप छोड़ना एक कला है जो सबको नहीं आती। आप सोचते होंगे कि कैसे कुछ लोग भीड़ में इतने अलग दिखते हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
मित्रों! कुछ लोगों में यह गुण पहले से होता है, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, और कुछ लोग इसे अपने अंदर विकसित करते हैं। आप भी इस कला को सीख सकते हैं और लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे आप खुद को भीर से अलग दिखा सकते हैं I
पहनावे पर ध्यान देना
लोगों की नजर में जो सबसे पहली चीज आती है, वह है आपकी वेशभूषा। अच्छे दिखने वाले व्यक्ति पर स्वतः ही लोगों का ध्यान केंद्रित हो जाता है। किंतु यहाँ अच्छे दिखने का तात्पर्य सुंदर दिखने से नहीं है।
खुद को साफ रखें, वह कपड़े पहने जिन्हें आप पूरे आत्मविश्वास के साथ वहन कर सकें, और जो आपके व्यक्तित्व को निखारे।
बेहतरीन संचार कौशल
अच्छे पहनावे से जितनी जल्दी लोगों का ध्यान आप पर केंद्रित होता है, खराब बातचीत के ढंग से उतनी ही जल्दी लोग आपसे मुंह मोड़ लेते हैं। लोगों को प्रभावित करने के लिए जरूरी है कि आपकी बातें उन्हें आपकी तरफ आकर्षित करें। इसके लिए संचार की बारीकियों पर ध्यान दें। शुद्ध एवं साफ भाषा का प्रयोग करें, आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, आवाज़ के उतार चढ़ाव पर ध्यान दें, शारीरिक हाव-भाव का ख्याल रखें, और बात करते समय आई कांटैक्ट बना कर रखें।

दिन भर सोते रहना कितना अच्छा लगता है ना !
हम उन दिनों की कल्पना करते हैं, जब हम सिर्फ आराम करें। न जाने कितने ही कामों को न करने की इच्छा के कारण हम बहाने बना लिया करते हैं। यह अनिच्छा ही आलस्य है, जिसे हमारे शास्त्रों में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आइए इस श्लोक को पढ़ें :
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्
आधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्
अर्थात आलस करने वाले को विद्या कहां? जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहां? निर्धन व्यक्ति के पास मित्र कहां? और मित्र के बिना सुख कहां?
इसीलिए आप भी सावधान हो जाएं, और आलस करना छोड़ें।
उपाय :
अनुशासन में रहें और नियम बनाएं
आलस को खत्म करने के लिए आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। खुद के लिए कड़े नियम बनाएं, और उन नियमों को तोड़ने की इजाजत खुद को ना दें। मन के बहकावे में बहकने से खुद को रोकें, और मन ना होने पर भी किसी भी काम को नजरअंदाज ना करें।
नियम टूटने पर सजा के लिए तैयार रहें
खुद के बनाए नियम तोड़ना आसान है, क्योंकि आपको सजा देने वाला कोई नहीं होता। हम बड़ी आसानी से तय किए गए नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं इसीलिए नियमों के साथ सजा भी तय करें। जब भी नियम टूटें, तो खुद को कड़ा दंड दें। इससे आपको ना चाहते हुए भी आलस को त्यागना ही होगा।
खुद को सक्रिय बनाएं
ऐसी क्रियाओं में स्वयं को संलग्न करें, जिनमें आपकी सक्रियता बढे। सुबह दौर लगाएं, शारीरिक कार्य करें, खेल खेले इत्यादि। इससे आपकी आलसी प्रवृत्ति बदलेगी और आप सक्रिय हो पाएंगे।
दृढ़ संकल्प
बिना दृढ़ संकल्प के आपके सारे प्रयास निरर्थक रह जाएंगे। इसीलिए मन में ठान लीजिए, कि आपको आलस छोड़ना है। साथ ही बीच-बीच में स्वयं को इस दिशा में बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करें।
आजकल हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रोग का शिकार है। पहले की तुलना में अब लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं। यहां तक कि नवजात शिशु भी जन्म के साथ ही जॉन्डिस, निमोनिया जैसे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। यदि आज से कुछ दशक पहले की तस्वीर देखी जाए, तो लोग अधिक स्वस्थ हुआ करते थे, और कहीं अधिक लंबा जीवन जिया करते थे। स्वास्थ्य के स्तर में इतनी गिरावट का सबसे मुख्य कारण है बदलती जीवनशैली।
आधुनिक जीवनशैली उपकरणों से घिरी हुई है। हम प्रकृति से दिन-ब-दिन दूर होते जा रहे हैं।
घर में पेड़ पौधे नहीं, बल्कि मोबाइल फ्रिज जैसे ढेरों उपकरण हैं। सूर्य एवं चंद्रमा की रोशनी छोड़ हम बनावटी लाइटों के बीच रहते हैं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ हमारा भोजन हैं, कच्चे फल सब्जियों की जगह हम जंक फूड खाना पसंद करते हैं, व्यायाम की जगह स्थूल जीवन शैली के हम आदी हो गए हैं, यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, और जिस जल को ग्रहण करते हैं, वह भी शुद्ध नहीं है। ऐसे में कैसे स्वास्थ्य की गुणवत्ता बनाई रखी जा सकती है?
अपने आसपास देखिए। प्रकृति है?
नहीं!
जिस प्रकृति का हम हिस्सा हैं, जिसने हमें बनाया है, उससे दूर होकर हम कैसे ठीक रह सकते हैं ? अपने शरीर की संरचना को समझिये। यह मशीनों के लिए नहीं बनी है। इसीलिए स्वस्थ रहना तब तक पूरी तरह संभव नहीं है, जब तक आप खुद को प्रकृति से नहीं जोड़ेंगे।
यह सच है कि आप पूरी तरह से आधुनिकता के इस मशीनी माहौल से नहीं बच सकते हैं, लेकिन अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो आप कर सकते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति की गोद में फिर से लौटने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं:

आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा, कि कुछ बच्चे कम पढ़कर भी अच्छे अंक कैसे ले आते हैं?
जबकि कुछ बच्चे जी तोड़ मेहनत करते हैं, पर उनके अंक उस मेहनत के अनुरूप नहीं होते। जब बच्चे साल भर पूरी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, और तब भी उनके अंक संतोषजनक नहीं होते, तब उनका मनोबल टूट जाता है। वह बहुत निराश हो जाते हैं। ऐसे में बच्चे तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। बच्चों के कोमल मन पर निराशा की यह छाया नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह नन्हे फूल मुरझा जाएंगे।
इस स्थिति में फंसे बच्चों की मदद करने के लिए आज के लेख में हम बताने जा रहे हैं, कि आपको अच्छे अंक लाने के लिए कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है :
☸ सबसे पहली सीख, रटे नहीं, कंठस्थ करें।
रटंत विद्या बहुत हानिकारक है। बिना भावार्थ समझें केवल शब्दों या वाक्य को याद कर लेने से आपके ज्ञान में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी चीजें आपको बस कुछ समय तक ही याद रहती है। इस तरह से याद करने वाले बच्चे, तब पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जब सवाल थोड़ा भी घुमा दिया जाता है। क्योंकि आपने जो रट लिया, आपको बस उतना ही आता होता है। इसीलिए याद रखे बच्चों, आप जो भी पढ़ रहे हैं, उससे रटे नहीं, बल्कि समझे कि पाठ में आपको क्या समझाया जा रहा है। एक बार जब विषय वस्तु आपके समझ में आ जाएगी, तब आप उससे संबंधित प्रश्नों को हर तरह से हल कर पाएंगे ।

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